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Showing posts from March, 2010

वेल डन अब्‍बा : बोमन ईरानी का जलवा - मृत्युंजय प्रभाकर

अच्छे अभिनेताओं की कद्र हमेशा रही है और रहेगी। बोमन ईरानी ने अपनी अभिनय प्रतिभा से अपनी खास पहचान बनाई है और एक अच्छा-खासा दर्शक वर्ग भी। वह जितने सहज तरीके से अपनी भूमिका उत्कृष्टता से निभा ले जाते हैं इस हफ्ते प्रदर्शित दोनों ही फिल्में इस बात की गवाह हैं। दो फिल्में और भूमिकाएं तीन। श्याम बेनेगल निर्देशित फिल्म "वेल डन अब्बा" में बोमन जु़ड़वा भाइयों की दोहरी भूमिका में हैं तो कबीर कौशिक की फिल्म "हम, तुम और घोस्ट" में भूत की भूमिका में। तीनों पात्रों को बोमन ने जितने नेचुरल तरीके से प्ले किया है वह देखने लायक है। बोमन के दर्शकों के लिए यह हफ्ता सच में खास है। श्याम बेनेगल की फिल्मों में गांव और कस्बायी समाज हमेशा से प्रमुखता से रहा है। उनकी पिछली फिल्म "वेलकम टू सज्जनपुर" भी कस्बायी धरातल की फिल्म थी और लोगों को पसंद आई थी। "वेल डन अब्बा" में बेनेगल एक बार फिर गांव की ओर लौटे हैं और सरकारी लोककल्याणकारी योजनाओं की जो हालत है उसका परीक्षण किया है। हाल ही में आई सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में मुस्लिम समाज का जो अक्स दिखाया गया है फिल्म उसकी पुष्टि कर

फिल्‍म समीक्षा : वेल डन अब्बा:

 हंसी-खुशी के  बेबसी -अजय  ब्रह्मात्‍मज इन दिनों हम कामेडी फिल्मों में क्या देखते-सुनते हैं? ऊंची आवाज में बोलते एक्टर, बैकग्राउंड का लाउड म्यूजिक, हीरोइन के बेवजह डांस, गिरते-पड़ते भागते कैरेक्टर, फास्ट पेस में घटती घटनाएं और कुछ फूहड़-अश्लील लतीफों को लेकर लिखे गए सीन ़ ़ ़ यही सब देखना हो तो वेल डन अब्बा निराश करेगी। इसमें ऊपर लिखी कोई बात नहीं है, फिर भी हंसी आती है। एहसास होता है कि हमारी जिंदगी में घुस गए भ्रष्टाचार का वायरस कैसे नेक इरादों की योजनाओं को निगल रहा है। श्याम बेनेगल ने बावड़ी (कुआं) के बहाने देश की डेमोक्रेसी को कतर रहे करप्शन को उद्घाटित किया है। उन्होंने आम आदमी की आदत बन रही तकलीफ को जाहिर किया है। अरमान अली मुंबई में ड्राइवर है। वह अपनी बेटी मुस्कान की शादी के लिए छुट्टी लेकर गांव जाता है। गांव से वह तीन महीनों के बाद नौकरी पर लौटता है तो स्वाभाविक तौर पर बॉस की डांट सुनता है। अपनी नौकरी बचाने के लिए वह गांव में अपने साथ घटी घटनाएं सुनाता है और हमारे सामने क्रमवार दृश्य खुलने लगते हैं। अनपढ़ अरमान अली सरकार की कपिल धारा योजना के अंतर्गत बावड़ी के लिए आवे

13 खिलाड़ी 1 प्रियंका चोपड़ा

प्रियंका चोपड़ा जल्द ही कलर्स के रिएलिटी शो 'खतरों के खिलाड़ी' के नए सीजन में मेजबान की भूमिका निभाएंगी। इससे पहले भी वह 'डॉन' और 'द्रोण' में एक्शन के कारनामे दिखा चुकी हैं। एक खास बातचीत में उन्होंने बताया कि मेरे पास टीवी शो के आफर आते रहते हैं। मैंने खतरों के खिलाड़ी के लिए इसलिए हां किया कि यह मेरी पर्सनालटी से मेल खाता है। मैं बहुत ही एडवेंचरस, आउटगोइंग और स्पोर्टी हूं। मुझे लगा कि इस शो को मैं अच्छी तरह कर सकती हूं। प्रियंका मानती हैं कि अक्षय कुमार पिछले दो सीजन में इसे एक ऊंचाई पर ले जा चुके थे। मुझे सिर्फ उसे आगे लेकर जाना है। प्रियंका बताती हैं कि मैं अभी 'डॉन-2' की तैयारी कर रही हूं। उसमें भी काफी एक्शन है। फिल्मों के एक्शन एसपीरिएंस मेरे काम आएंगे। इस शो के लिए मुझे थोड़ी ट्रेनिंग लेनी होगी और ज्यादा फिट होना होगा। इस बार शो को रोमांचक बनाने के लिए प्रतियोगियों के रूप में 13 भारतीय और इंटरनेशनल क्रिकेट खिलाड़ी चुने जाएंगे। चूंकि सारे प्रतियोगी पुरूष हैं, इसलिए खतरों का लेवल ऊंचा रहेगा। कुछ स्टंट तो मैं खुद भी करूंगी ताकि प्रतियोगियों को प्रोत्साहन

फिल्‍म समीक्षा : शापित

डराने में सफल  -अजय  ब्रह्मात्‍मज हिंदी में बनी डरावनी फिल्में लगभग एक जैसी होती हैं। किसी अंधविश्वास को आधार बनाकर कहानी गुंथी जाती है और फिर तकनीक के जरिए दर्शकों को चौंकाने की कोशिश की जाती है। साउंड इफेक्ट से दृश्यों का झन्नाटेदार अंत किया जाता है और हम अपेक्षित ढंग से अपनी सीट पर उछल पड़ते हैं। विक्रम भट्ट अपनी डरावनी फिल्मों में कुछ अलग करते हैं और दर्शकों में डर पैदा करने में सफल होते हैं। शापित में अमन अपनी प्रेमिका काया के परिवार को मिले पुराने शाप को खत्म करने के लिए आत्मा की तलाश में निकलता है। इस खोज में डॉ ़पशुपति उसके साथ हैं। पता चलता है किएक दुष्ट आत्मा सदियों पहले दिए अभिशाप की रक्षा कर रही है। उस आत्मा की मुक्ति के बाद ही शाप से मुक्त हुआ जा सकता है। चूंकि अमन और काया के बीच बेइंतहा प्यार है, इसलिए अमन हर जोखिम के लिए तैयार है। विक्रम भट्ट ने स्पेशल इफेक्ट से दृश्यों को डरावना बनाने के साथ उनके पीछे एक लॉजिक भी रखा है। अपनी खासियत के मुताबिक उन्होंने मुख्य किरदारों की प्रेमकहानी में दुष्टात्मा को विलेन की तरह पेश किया है। अतीत में लौटने केदृश्य सुंदर हैं। विक्रम

‘आमिर’ होने में कोई बुराई नहीं ......................................

आमिर के जन्मदिन के मौके पर कनिष्क क यह लेख चवन्नी के पाठकों के लिए है.आप भ चाहें तो यहाँ लिख सकते हैं.अपने लेख chavannichap@gmail.com पर पोस्ट करें.साथ इस लेख पर अपनी राय दें.युवा लेखक को प्रोत्साहन मिलेगा। 14 मार्च जन्‍मदिन पर विशेष - कनिष्क राज सिंह चौहान परफ़ेक्‍शनिस्‍ट और भेरोसेमंद के इतर आमिर के लिए अब ज़िम्‍मेदार या ज़वाबदेह जुमले का इस्‍तेमाल किया जाए तो ज़्यादा बेहतर होगा. पिछले 10 सालों में आई उनकी फ़िल्‍में उन्‍हें ज़्यादा ज़वाबदेह साबित करती है. जवाबदेही दर्शकों , सिनेमा और बाज़ार के प्रति. और कुछ हद तक समाज के लिए भी. आमिर के चाहने वालों की तादाद में अचानक से काफ़ी बढ़ोत्तरी हुई है ख़ासकर युवा वर्ग ने एक रोल मॉडल की तरह उसे अख्तियार किया है. इसकी वजह उसकी फ़िल्‍मों से ज़्यादा उसका परसोना है , जो दृढ़ , विश्‍वसनीय और नैतिक है. इसी व्यक्तित्व को दर्शक उसके किरदारों से भी जुड़ा पाते हैं. होली से इडियट्स तक उसने गज़ब की तरक्‍की की है. शुरुआती अंतराल में कुछ ' डिज़ाज़्टर ' भी उसके नाम रही लेकिन संभलते हुए आगे दोहराव से बचा रहा. उसे कबूलने में भी हर्ज़ न

फिल्‍म समीक्षा : राइट या रांग,न घर के न घाट के,हाइड एंड सीक

-अजय ब्रह्मात्‍मज राइट या रांग पुरानी शैली का अपना आकर्षण होता है। हम आज भी पुरानी फिल्में पसंद करते हैं। उन्हें देखते हैं। ठीक उसी तरह पुरानी शैली में बनी नई फिल्म भी पसंद आ सकती है। नीरज पाठक ने कसी हुई स्क्रिप्ट लिखी है। वे दर्शकों को कुछ और सोचने का मौका नहीं देते, इसी वजह से कुर्सी पर लाचार बैठे सनी देओल को देखकर भी कोफ्त नहीं होती। इंटरवल में हाल से बाहर निकलने और फिर लौटने के बीच हम आगे की कहानी बुनते हैं, लेकिन नीरज पाठक रोमांचक झटका देते हैं। फिल्म एक नया मोड़ लेती है, जिसमें राइट और रॉन्ग के बीच का फर्क मिटने लगता है। अजय और विनय की इस कहानी में अजय की बीवी, विनय की बहन और अजय का कजिन शामिल हैं। ईमानदार, जांबाज और विलपावर का धनी अजय रिश्तों के पेंच से टूट जाता है। वह एक फूलप्रूफ व्यूह रचता है। बदला लेने के बाद सभी की आंखों में धूल झोंक कर कोर्ट से बाइज्जत बरी हो जाता है, लेकिन वह अपने राइट दोस्त को रॉन्ग होते नहीं देख पाता। उसे सच बता देता है। दोस्ती, प्रतिद्वंद्विता, छल, विवाहेतर संबंध, लोभ, वासना और पिता-पुत्र के रिश्तों को समेटती राइट या रॉन्ग आखिर तक दिलचस्प बनी रह

दरअसल : हिंदी फिल्में और क्रिकेट

-अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी फिल्में किसी आपदा, विपदा, खुशी और गम से संचालित नहीं होतीं। हर समय और मौसम में उनकी मांग बनी रहती है। आम दर्शक को इससे सस्ता मनोरंजन नहीं मिलता, इसलिए वे हर सूरत में सिनेमाघरों की ओर रुख करते हैं, लेकिन पिछले दो साल से आयोजित आईपीएल के क्रिकेट मैचों ने इस धारणा को बदला है। 2008 में आयोजित पहले आईपीएल के समय यह संभावना व्यक्त की गई थी कि इससे फिल्मों का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन प्रभावित होगा। वास्तविक आंकड़े कभी नहीं मिल पाते, लेकिन ट्रेड पंडितों ने बताया कि आईपीएल की वजह से फिल्में अपेक्षित व्यवसाय नहीं कर सकीं। पिछले साल आईपीएल दक्षिण अफ्रीका चला गया था, फिर भी हिंदी फिल्मों का व्यवसाय प्रभावित हुआ। इस साल आईपीएल की तारीखों की घोषणा के साथ बड़ी फिल्मों ने किनारा कर लिया है। कुछ फिल्में आईपीएल के पहले और कुछ बाद में खिसक गई। सबने बिजनेस और कलेक्शन को ध्यान में रखकर ऐसा किया। अभी तक जो संभावना और धारणा थी, वह वास्तविकता बन चुकी है। फिल्म निर्माता और इस कारोबार से जुड़े सभी व्यक्तियों ने स्वीकार कर लिया है कि आईपीएल के दौरान फिल्में रिलीज करना जोखिम का काम है। कुछ फिल्म

स्‍टार प्रोफाइल : अजय देवगन

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-अजय ब्रह्मात्‍मज मुंबई के लोकप्रिय स्टारों के नाम डालकर इंटरनेट सर्च करें तो नतीजों से आप चौंक जाएंगे। कम लोगों को सर्च रिजल्ट पर यकीन होगा। थोड़ी देर के लिए आप भी हैरत में पड़ जाएंगे कि क्या सचमुच अजय देवगन अपनी पीढ़ी के सबसे व्यस्त अभिनेता हैं? उनकी अतिथि तुम कब जाओगे अभी रिलीज हुई है और पांच फिल्में कतार में हैं। उनमें से टुनपूर का सुपरहीरो और राजनीति पूरी हो चुकी है। बाकी तीन गरम हवा, वन्स अपऑन अ टाइम इन मुंबई और गोलमाल-3 निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं। लंबे समय के बाद अजय देवगन की एक्शन फिल्म दिसंबर में आरंभ हो जाएगी, जिसे उनके चहेते डायरेक्टर रोहित शेट्टी डायरेक्ट करेंगे। [काफी व्यस्त है शेड्यूल] बगैर शोरगुल और मीडिया हाइप के अजय देवगन अपने काम में मशगूल रहते हैं। शूटिंग ने इतना व्यस्त कर रखा है कि वे अपने ही घर में अतिथि की तरह आते हैं। पिछले दिनों तमिलनाडु के मदुरै शहर में गरम हवा के सेट पर उनसे मुलाकात हुई, बताने लगे, ''इस फिल्म की शूटिंग के बाद मुंबई लौटूंगा। वहां चंद दिनों की शूटिंग करने के बाद गोलमाल-3 के लिए गोवा चला जाऊंगा। इस बीच वन्स अप ऑन अ टाइम की बाकी

फिल्म समीक्षा : अतिथि तुम कब जाओगे?,थैंक्स माँ,रोड मूवी

-अजय ब्रह्मात्मज अतिथि तुम कब जाओगे? सामान्य जीवन के हास्य प्रसंग पिछले कुछ सालों में लाउड कामेडी ने यह स्थापित किया है कि ऊंची आवाज मैं चिल्लाना, गिरना-पड़ना और बेतुकी हरकतें करना ही कामेडी है। प्रियदर्शन और डेविड धवन ऐसी कामेडी के उस्ताद माने जाते हैं। उनकी कामयाबी ने दूसरे निर्देशकों को गुमराह किया है। दर्शक भी भूल गए है कि कभी हृषीकेष मुखर्जी, गुलजार और बासु चटर्जी सरीखे निर्देशक सामान्य जीवन के हास्य को साधारण चरित्रों से पेश करते थे। अश्रि्वनी धीर की अतिथि तुम कब जाओगे? उसी श्रेणी की फिल्म है। यह परंपरा आगे बढ़नी चाहिए। पुनीत फिल्मों का संघर्षशील लेखक है। वह कानपुर से मुंबई आया है। उसकी पत्‍‌नी मुनमुन बंगाल की है। दोनों का एक बेटा है। बेटा नहीं जानता कि अतिथि क्या होते हैं? एक दिन चाचाजी उनके घर पधारते हैं, जो खुद को पुनीत का दूर का रिश्तेदार बताते हैं। शुरू में उनकी ठीक आवभगत होती है, लेकिन छोटे से फ्लैट में उनकी मौजूदगी और गंवई आदतों से पुनीत और मुनमुन की जिंदगी में खलल पड़ने लगती है। चाचाजी को घर से भगाने की युक्तियों में बार-बार विफल होने के क्रम में ही पुनीत और मुनम

दरअसल : ख्वाबों को जगाते थे साहिर

-अजय ब्रह्मात्‍मज किस्सा मशहूर है कि गीतकार-शायर साहिर लुधियानवी अपनी फिल्मों के पारिश्रमिक के तौर पर संगीतकार से एक रुपया ज्यादा लिया करते थे। इसी बात पर कभी एस.डी.बर्मन से उनकी ठन गई थी। दोनों ने प्यासा के बाद कभी साथ काम नहीं किया। आज जब गीतकार रॉयल्टी और कॉपीराइट की लड़ाई लड़ रहे हैं, तब साहिर की कैफियत ज्यादा मौजू हो जाती है। आजादी की राह पर से लेकर लक्ष्मी तक उन्होंने केवल 113 फिल्मों के गाने लिखे। अपने गानों से उन्होंने बेजोड़ मकबूलियत हासिल की। उनके फिल्मी गीतों में उनकी गजलों और नज्मों के कथ्य की गहराई झलकती है। ऐसा लगता है कि अपनी सामाजिक और राजनीतिक समझदारी का जोड़न (जामन) डालकर उन्होंने फिल्मी गीतों को जमाया है। 8 मार्च, 1921 को लुधियाना में जन्मे साहिर का बचपन मां सरदार बेगम के साथ बीता। उनके पिता जागीरदार चौधरी फजल अहमद थे। कहते हैं, अपने पति की बारहवीं शादी से तंग आकर सरदार बेगम ने उनकी हवेली छोड़ दी थी। उन्होंने तलाक ले लिया और बेटे साहिर को अकेले दम पाला। मां के जुझारू व्यक्तित्व के साए में पले साहिर का साबका प्रोग्रेसिव सोच से हुआ। वे छोटी उम्र में ही जागरूक और संजीदा