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इरशाद कामिल : विभाग के बदले बॉलीवुड जाने का मतलब

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चवन्‍न्‍ाी के पाठकों के लिए विनीत कुमार का विशेष आलेख। इसे रचना सिंह के संपादन में निकली दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय की हस्‍तलिखित पत्रिका हस्‍ताक्षर से लिया गया है।                                             -विनीत कुमार  “ ये , ये sss     हो तुम , जिसकी लिखी चीजें छापने से संपादक मना कर दिया करते हैं. असल में तुम यही हो , वह इरशाद कामिल नहीं जिसकी तारीफ लोग करते हैं.   मेरी पत्नी ,   पत्रिकाओं से अस्वीकृत रचनाएं खासकर पहल और उस पर ज्ञानरंजन की चिठ्ठियां दिखाते हुए अक्सर कहती है. ऐसा करके खास हो जाने के गुरुर में जीने से रोकती है. वो तो फिल्मफेयर और रेडियो मिर्ची से मिले अवार्ड से कहीं ज्यादा इन अस्वीकृत रचनाओं और न छापने के पीछे की वजह से लिखी ज्ञानरंजन और दूसरे संपादकों के खत ज्यादा संभालकर रखती है. उनका बस चले तो ड्राइंगरुम में अवार्ड की जगह इन्हें ही सजाकर रक्खे ताकि दुनिया जान सके कि असल में इरशाद कामिल है क्या और उसकी हैसियत क्या है   ?   ” तब इरशाद के गिलास का रंग बदला नहीं था. हम गिलास के आर-पार सबकुछ साफ देख पा रहे थे और साथ ही उन्हें भी. उत्साह और मुस्कराहट के