फिल्म समीक्षा : प्रेम रतन धन पायो
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-अजय ब्रह्मात्मज ‘ प्रेम रतन धन पायो ’ सूरज बड़जात्या की रची दुनिया की फिल्म है। इस दुनिया में सब कुछ सुंदर,सारे लोग सुशील और स्थितियां सरल हैं। एक फिल्मी लोक है,जिसमें राजाओं की दुनिया है। उनके रीति-रिवाज हैं। परंपराओं का पालन है। राजसी ठाट-बाट के बीच अहंकार और स्वार्थ के कारण हो चुकी बांट है। कोई नाराज है तो कोई आहत है। एक परिवार है,जिसमें सिर्फ भाई-बहन बचे हैं और बची हैं उनके बीच की गलतफहमियां। इसी दुनिया में कुछ साधारण लोग भी हैं। उनमें प्रेम दिलवाला और कन्हैया सरीखे सीधे-सादे व्यक्ति हैं। उनके मेलजोल से एक नया संसार बसता है,जिसमें विशेष और साधारण घुलमिल जाते हैं। सब अविश्वसनीय है,लेकिन उसे सूरज बड़जात्सा भावनाओं के वर्क में लपेट कर यों पेश करते हैं कि कुछ मिनटों के असमंजस के बाद यह सहज और स्वाभाविक लगने लगता है। सूरज बड़जात्या ने अपनी सोच और अप्रोच का मूल स्वभाव नहीं बदला है। हां,उन्होंने अपने किरदारों और उनकी भाषा को माडर्न स्वर दिया है। वे पुरानी फिल्मों की तरह एलियन हिंदी बोलते नजर नहीं आते। हालांकि शुरू में भाषा(हिंग्लिश) की यह आधुनिकता खटकत