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फिल्‍म समीक्षा : परी

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अनुष्‍का शर्मा का साहसिक प्रयास फिल्‍म समीक्षा : परी -अजय ब्रह्मात्‍मज प्रोसित राय निर्देशित ‘परी’ की नायिका और निर्माता अनुष्‍का शर्मा हैं। बतौर निर्माता यह उनकी तीसरी फिल्‍म है। 10 सालों के अपने करिअर में ‘परी’ समेत 16 फिल्‍में कर चुकी अनुष्‍का शर्मा की हिम्‍म्‍त की दाद देनी होगी कि उन्‍होंने स्‍वनिर्मित हर फिल्‍म में कुछ नया करने की कोशिश की है। हालांकि हर फिल्‍म में वह स्‍वयं नायिका हैं,लेकिन इससे उनके प्रयास आत्‍मकेंद्रित नहीं हो जाते। उन्‍होंने तीनों ही फिल्‍मों में अलहदा और अनोखे विषय उठाए हैं। और सबसे खास बात है कि उन्‍होंने बिल्‍कुल नए निर्देशकों को मौका दिया है। ‘एनएच 10’ के निर्देशक नवदीप सिंह ने एक फिल्‍म जरूर डायरेक्‍ट की थी,लेकिन ‘फिल्‍लौरी’ और ‘ परी’ के निर्देशक नए रहे हैं। दोनों की यह पहली फिल्‍म है। ‘परी’... इसके टैग लाइन में निर्माताओं ने सही लिखा है कि ‘इट्स नॉट अ फेअरीटेल’। सच्‍ची,यह परिकथा नही है। इसकी कथा-पटकथा निर्देशक प्रोसित रॉय ने अभिषेक बनर्जी के साथ मिल कर लिखी है। संवाद अन्विता दत्‍त के हैं। हिंदी फिल्‍मों की यह खास परंपरा है,जिसमें फिल्‍म क

...और कितने देवदास

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-अजय ब्रह्मात्मज शरत चंद्र चंट्टोपाध्याय की पुस्तक देवदास 1917 में प्रकाशित हुई थी। उनकी यह रचना भले ही बंगला और विश्व साहित्य की सौ महान कृतियों में स्थान नहीं रखती हो, लेकिन फिल्मों में उसके बार-बार के रूपांतर से ऐसा लगता है कि मूल उपन्यास और उसके किरदारों में ऐसे कुछ लोकप्रिय तत्व हैं, जो आम दर्शकों को रोचक लगते हैं। दर्शकों का यह आकर्षण ही निर्देशकों को देवदास को फिर से प्रस्तुत करने की हिम्मत देता है। संजय लीला भंसाली ने 2002 में देवदास का निर्देशन किया था। तब लगा था कि भला अब कौन फिर से इस कृति को छूने का जोखिम उठाएगा? हो गया जो होना था। सन् 2000 के बाद हिंदी सिनेमा और उसके दर्शकों में भारी परिवर्तन आया है। फिल्मों की प्रस्तुति तो बदल ही गई है, अब फिल्मों की देखने की वृति और प्रवृत्ति में भी बदलाव नजर आने लगा है। पिछले आठ सालों में जिस तरह की फिल्में पॉपुलर हो रही हैं, उनके आधार पर कहा जा सकता है कि दुख, अवसाद और हार की कहानियों पर बनी फिल्मों में दर्शकों को कम आनंद आता है। एक समय था कि ऐसी ट्रेजिक फिल्मों को दर्शक पसंद करते थे और दुख भरे गीत गाकर अपना गुबार निकालते थे। एकाध अपवा