फिल्म समीक्षा - जीना इसी का नाम है
फिल्म रिव्यू विंटेज कार और किरदार जीना इसी का नाम है - अजय ब्रह्मात्मज केशव पनेरी निर्देशित ‘ जीना इसी का नाम है ’ एक मुश्किल फिल्म है। यह दर्शकों की भी मुश्किल बढ़ाती है। 170 मिनट की यह फिल्म विंटेज कार और किरदारों की असमाप्त कथा की तरह चलती है। फिल्म के दौरान हम राजस्थान,मुंबई और न्यूयार्क की यात्रा कर आते हैं। फिल्म की मुख्य किरदार के साथ यह यात्रा होती है। आलिया के साथ फिल्म आगे बढ़ती रहती है,जिसके संसर्ग में भिन्न किरदार आते हैं। कभी कुंवर विक्रम प्रताप सिंह,कभी शौकत अली मिर्जा तो कभी आदित्य कपूर से हमारी मुलाकातें होती हैं। इन किरदारों के साथ आलिया की क्रिया-प्रतिक्रिया ही फिल्म की मुख्य कहानी है। 21 वीं सदी के 17 वें साल में देखी जा रही यह फिल्म कंटेंट में आज का ध्येय रखती है। आलिया के बचपन से ही बालिकाओं के प्रति असमान व्यवहार की जमीन बन जाती है। बाद में बालिकाओं की भ्रूण हत्या के मुद्दे को उठाती इस फिल्म में लक्ष्मी(सुप्रिया पाठक) उत्प्रेरक है,अपने महान कृत्य के बाद उनकी अर्थी ही दिखती है। फिल्म में उनकी मौजूदगी या कुंवर