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कैसे याद रखेंगे दिग्गजों को?

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  एक सप्ताह के अंदर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के दो दिग्गज दिवंगत हो गए। पहले दारा सिंह और फिर राजेश खन्ना.., दोनों अपने समय के खास कलाकार थे। अपने-अपने हिसाब से दोनों ने दर्शकों का मनोरंजन किया। उनके निधन के पश्चात पुरानी फिल्मों की तस्वीरों, फुटेज और यादगार लम्हों से उनके करियर और जीवन की जानकारी मिली। सच कहें तो आज के युवा दर्शकों को पहली बार दारा सिंह और राजेश खन्ना के महत्व का पता चला। लोकप्रिय संस्कृति का यह बड़ा दोष है कि वह मुख्य रूप से वर्तमान से संचालित होती है। अभी जो पॉपुलर है, हम उसी के बारे में सब कुछ जानते हैं। दोनों दिग्गजों की मौत के बाद मुमकिन है कि सभी ने महसूस किया हो कि ज्यादातर चैनलों पर उथली जानकारियां ही परोसी जा रही थीं। विकीपीडिया, आईएमडीबी और फिल्मी वेबसाइट से उठाई गई जानकारियों को ही रोचक तरीके से पेश किया जा रहा था। वैसे कहने को तो देश में हजारों फिल्म पत्रकार हैं और लाखों दर्शक-प्रशंसक सोशल मीडिया नेटवर्क पर अपने विचार प्रकट करते रहते हैं। ज्यादातर विचारों में सोच और संगति नहीं रहती। पूरे देश में एक भी ऐसी लाइब्रेरी, संग्रहाल

शौर्य,साहस और संरक्षक के सिंबल रहे दारा सिंह

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  1987 में आरंभ हुए टीवी सीरियल रामायण ने दारा सिंह को हनुमान की छवि दी। उनकी इस छवि को सराहा और पूजा गया। आज के अधिकांश युवक उन्हें इसी रूप में जानते और पहचानते हैं, लेकिन 40 की उम्र पार कर चुके किसी भी भारतीय नागरिक के मन में दारा सिंह की अन्य छवियां और किंवदंतियां हैं। उन दिनों न तो मीडिया का ऐसा प्रचार-प्रसार था और न मीडिया ऐसी हस्तियों को अधिक तूल देता थी। फिर भी दारा सिंह अपने किस्सों के साथ बिहार के सुदूर बगहा और बेतिया जैसे कस्बों और छोटे शहरों तक में धूम मचाए रहते थे। उनकी लोकप्रियता कहीं न कहीं भारत के गौरव से जुड़ी थी। तभी तो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनसे सपरिवार मिलने में संकोच नहीं होता था। दारा सिंह की एक पॉपुलर तस्वीर में वह अपने छोटे भाई रंधावा के साथ इंदिरा गांधी के परिवार से मिल रहे हैं। उस तस्वीर के एक कोने में फिल्मों में आने के पहले के अमिताभ बच्चन भी खड़े हैं। हम सभी ने अपने बचपन में उनके कुछ किस्से सुने हैं। खुद दारा सिंह बनने की कोशिश की है या किसी को चुनौती के रूप में देख कर ललकारा है-अपने आप को दारा सिंह समझते हो क्य