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Showing posts from March, 2019

संडे नवजीवन : मोदी चरित की हड़बड़ी

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मोदी चरित की हड़बड़ी -अजय ब्रह्मात्मज चुनाव के मौसम में नेताओं के जीवन की झांकियां शब्दों में प्रस्तुत की जाती रही हैं.कोई चालीसा लिखता है तो कोई पुराण...कुछ पॉपुलर फ़िल्मी धुनों पर गीत बनाते हैं.चुनाव के दौरान ऑडियो-वीडियो के जरिये नेताओं और संबंधित पार्टियों के बारे में आक्रामक प्रचार किया जाता है. एक ही कोशिश रहती है कि मतदाताओं को को लुभाया जा सके.पहली बार ऐसा हो रहा है कि सत्ताधारी प्रधानमंत्री के जीवन पर एक फिल्म और एक वेब सीरीज की तैयारी चल रही है.इन्हें भाजपा की तरफ से आधिकारिक तौर पर नहीं बनवाया जा रहा है,लेकिन उक्त पार्टी का मौन व मुग्ध समर्थन है.पूरी कोशिश है कि चुनाव के पहले इन्हें दर्शकों के बीच लाकर उनके मतों को प्रभावित किया जाए. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बड़े परदे के साथ डिजिटल प्लेटफार्म पर पेश करने की हड़बड़ी स्पष्ट है. फिल्म ‘पीएम नरेन्द्र मोदी’ और वेब सीरीज ‘मोदी’ का निर्माण चुनाव के मद्देनज़र ही हो रहा है. निर्माता संदीप सिंह,सुरेश ओबेरॉय,आनंद पंडित और आचार्य मनीष ने जनवरी के पहले हफ्ते में ‘पीएम नरेन्द्र मोदी’ का फर्स्ट लुक अनेक राष्ट्रिय भाषाओँ में जरी कि

सिनेमालोक : सही फैसला है कंगना का

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सिनेमालोक सही फैसला है कंगना का -अजय ब्रह्मात्मज तीन दिनों पहले कंगना रनोट के जन्मदिन पर ‘जया’ फिल्म की घोषणा हुई. इसे तमिल में ‘थालैवी’ और हिंदी में ‘जया’ नाम से बनाया जा रहा है. निर्देशक हैं विजय और इसे लिख रहे हैं केवी विजयेंद्र प्रसाद. ‘बाहुबली’ के विख्यात लेखक ने ही कंगना रनोट की पिछली फिल्म ‘मणिकर्णिका’ लिखी थी. यह फिल्म तमिल फिल्मों की अभिएत्री और तमिलनाडु की भूतपूर्व मुख्यमंत्री जयललिता का बायोपिक है. इस फिल्म की घोषणा के साथ कंगना ने जाहिर किया है कि अब वह अपनी बायोपिक पर काम नहीं करेंगी.’मणिकर्णिका’ की रिलीज के समय कंगना ने बताया था कि वह अपनी आत्मकथा सेल्यूलाइड पर पेश करना चाहती हैं. इसे वह खुद ही लिखना और निर्देशित करना चाहती थीं.हिंदी फिल्मों के इतिहास में अपने ढंग का यह पहला प्रयास होता. फ़िलहाल कंगना रनोट ने इरादा बदल दिया है. और यह सही किया.कंगना अपने करियर के उठान पर हैं. अभी उन्हें आने ऊंचाइयां और उपलब्धियां हासिल करनी हैं.लम्बे अपमान,तिरस्कार और संघर्ष के बाद वह यहाँ तक पहुंची हैं.आगे का रास्ता फिलहाल आसन नहीं दिख रहा है,क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री के कथित ता

सिनेमालोक : खुश्बू हैं निदा फाजली

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सिनेमालोक खुश्बू हैं निदा फाजली -अजय ब्रह्मात्मज अपनी फिल्म पत्रकारिता में कुछ अफ़सोस रह ही जायेंगे.उनका निदान या समाधान नहीं हो सकता.उसे सुधारा ही नहीं जा सकता. एक समय था कि लगभग हर हफ्ते निदा साहब से मुलाक़ात होती थी.मुंबई के खार डांडा की अम्रर बिल्डिंग के पहले माले के उनके फ्लैट का दरवाज़ा सभी पत्रकारों और साहित्यकारों के लिए खुला रहता था. मुझे अफ़सोस है कि उनके जीते जी मैंने कभी उनसे उनके फ़िल्मी करियर के बारे में विस्तृत बातचीत क्यों नहीं की? या कभी उन पर लिखने का ख्याल क्यों नहीं आया? शायद करीबी और पहुँच में रहने वली हतियों के प्रति यह नाइंसाफी इस सनक में हो जाती है कि उनसे तो कभी भी बात कर लेंगे. फ्रीलांसिंग के दिनों में किसी संपादक या प्रभारी ने उन पर कुछ लिखने के लिए भी नहीं कहा. बहरहाल,पिछले दिनों उनकी पत्नी मालती जोशी और मित्र हरीश पाठक के निमंत्रण पर निदा फाजली पर कुछ पढने और बोलने का मौका मिला.मुझे केवल उनके फ़िल्मी पक्ष पर बोलना था...बतौर गीतकार.पता चला कि उन्होंने फिल्मों के लिए 348 गीत लिखे. निदा साहब ग्वालियर के मोल निवासी थे,जहाँ उनका परिवार कश्मीर से आकर बसा था.