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मैं अनपेक्षित भंगिमाओं का अभिनेता हूं-राजकुमार राव

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-अजय ब्रह्मात्मज     हाल ही में सफल हुई  ‘क्वीन’ में राजकुमार राव ने विजय की भूमिका में दर्शकों की घृणा हासिल की। उस किरदार की यही खासियत थी। विजय ऐन शादी के मौके पर रानी को रिजेक्ट कर देता है। इस रिजेक्शन से बिसूरने के पश्चात रानी अकेली हनीमून पर निकलती है। वहां से लौटने के बाद वह रानी से क्वीन बन चुकी होती है। राजकुमार राव इन दिनों नासिक में  ‘डॉली की डोली’ की शूटिंग कर रहे हैं। शूटिंग के लिए निकलने से ठीक पहले उन्होंने झंकार से खास बातचीत की। -  ‘क्वीन’ की कामयाबी के बाद का समय कैसा चल रहा है? 0 पार्टियां चल रही हैं। कभी कंगना की बर्थडे पार्टी तो कभी  ‘क्वीन’ की सक्सेस पार्टी। दोस्तों की छोटी-मोटी पार्टियां बीच-बीच में चलती रहती है। हम सभी बहुत खुश हैं। फिल्म दर्शकों को पसंद आई। फिल्म ने अच्छा बिजनेस किया। ऐसी सफलता से  ‘क्वीन’ जैसी फिल्मों में सभी का विश्वास बढ़ता है। - इस कामयाबी को आप कितना एंज्वॉय कर सके? 0 मेरे लिए हर कामयाबी क्षणिक होती है। बहुत खुश हूं। इससे जयादा नहीं सोचता हूं। अभी  ‘डॉली की डोली’ पर फोकस आ गया है। -  ‘क्वीन’ के विजय को आप कैसे देखते हैं? 0 मेरे

फिल्‍म समीक्षा : शाहिद

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गैरमामूली शख्सियत का सच -अजय ब्रह्मात्‍मज शाहिद सच्ची कहानी है शाहिद आजमी की। शाहिद आजमी ने मुंबई में गुजर-बसर की। किशोरावस्था में सांप्रदायिक दंगे के भुक्तभोगी रहे शाहिद ने किसी भटके किशोर की तरह आतंकवाद की राह ली, लेकिन सच्चाई से वाकिफ होने पर वह लौटा। फिर पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया और जेल में डाल दिया। सालों की सजा में शाहिद ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। बाहर निकलने पर वकालत की पढ़ाई की। और फिर उन बेकसूर मजलूमों के मुकदमे लड़े, जो सत्ता और समाज के कानूनी शिकंजे में लाचार जकड़े थे। शाहिद ने ताजिंदगी बेखौफ उनकी वकालत की और उन्‍हें आजाद आम जिंदगी दिलाने में उनकी मदद की। शाहिद की यह हरकत समाज के कुछ व्यक्तियों को नागवार गुजरी। उन्होंने उसे चेतावनी दी। वह फिर भी नहीं डरा तो आखिरकार उसके दफ्तर में ही उसे गोली मार दी। हंसल मेहता की फिल्म 'शाहिद' यहीं से आंरभ होती है और उसकी मामूली जिंदगी में लौट कर एक गैरमामूली कहानी कहती है। 'शाहिद' हंसल मेहता की साहसिक क्रिएटिव कोशिश है। अमूमन ऐसे व्यक्तियों पर दो-चार खबरों के अलावा कोई गौर नहीं करता। इनकी लड़ाई, जीत और मौत

ताजातरीन बॉयोपिक ‘शाहिद’

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-अजय ब्रह्मात्मज     हंसल मेहता की ‘शाहिद’ किसी व्यक्ति की जिंदगी पर बने ताजातरीन बॉयोपिक है। फरवरी 2010 में वकील शाहिद आजमी की हत्या उनके दफ्तर में कर दी गई थी। शाहिद ने ताजिंदगी उन असहायों की सहायता की, जो गलत तरीके से शक के आधार पर कैद कर लिए गए थे। उन्होंने ऐसे अनेक आरोपियों को मुक्त करवाया। शाहिद ने इसे अपनी जिंदगी का मुहिम बना लिया था, क्योंकि किशोरावस्था में वे खुद ऐसे झूठे आरोप में टाडा के अंतर्गत गिरफ्तार होकर पांच सालों तक जेल में रहे थे। पांच भाइयों में से एक शाहिद ने आक्रोश में आतंकवादी ट्रेनिंग के लिए कश्मीर की भी यात्रा की थी। वहां के तौर-तरीकों से मोहभंग होने पर मुंबई लौटे तो उन्हें टाडा के तहत सजा हो गई। जेल में ही उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और जेल से निकलने के बाद वकालत की पढ़ाई की। वे कुछ समय तक मशहूर वकील माजिद मेनन के सहायक रहे। फिर अपनी वकालत शुरू की।     शाहिद की हत्या के तीन सालों के अंदर हंसल मेहता ने समीर गौतम सिंह की मदद से उनकी जिंदगी की छानबीन की और इस फिल्म की कहानी लिखी। सच्ची घटनाओं और तथ्यों पर आधारित ‘शाहिद’ में कल्पना का सहारा धागे की तरह किया गया

फिल्‍मों की कास्टिंग और मुकेश छाबड़ा

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कैमरे के पीछे सक्रिय विभागों में कास्टिंग एक महत्‍वपूर्ण विभाग है। पहले इसे स्‍वतंत्र विभाग का दर्जा और सम्‍मान हासिल नहीं था। पिछले पांच सालों में परिदृश्‍य बदल गया है। कोशिश है कि चवन्‍नी के पाठक इस के बारे में विस्‍तार से जान सकें।  कास्टिंग परिद्श्‍य -अजय ब्रह्मात्मज     फिल्म निर्माण में इस नई जिम्मेदारी को महत्व मिलने लगा है। इधर रिलीज हो रही फिल्मों में कास्टिंग डायरेक्टर के नाम को भी बाइज्जत क्रेडिट दिया जाता है। हाल ही में रिलीज हुई ‘काय पो छे’ की कास्टिंग की काफी चर्चा हुई। इसके मुख्य किरदारों की कास्टिंग नई और उपयुक्त रही। सुशांत सिंह राजपूत, अमित साध, अमृता पुरी, राज कुमार यादव और मानव कौल आदि मुख्य किरदारों में दिखे। सहायक किरदारों में भी परिचित चेहरों के न होने से एक ताजगी बनी रही। कास्टिंग डायरेक्टर के महत्व और भूमिका को अब निर्देशक और निर्माता समझने लगे हैं।     हालांकि अभी भी निर्माता-निर्देशक स्टारों के चुनाव में कास्टिंग डायरेक्टर के सुझाव को नजरअंदाज करते हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के स्ट्रक्चर में स्टार के पावरफुल और निर्णायक भूमिका (डिसाइडिंग फैक्टर) में होने

मुझे फिल्मों में ही आना था- राज कुमार

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-अजय ब्रह्मात्मज उन्होंने अपने नाम से यादव हटा दिया है। आगामी फिल्मों में राज कुमार यादव का नाम अब सिर्फ राज कुमार दिखेगा। इसकी वजह वे बताते हैं, ‘पूरा नाम लिखने पर नाम स्क्रीन के बाहर जाने लगता है या फिर उसके फॉन्ट छोटे करने पड़ते हैं। इसी वजह से मैंने राज कुमार लिखना ही तय किया है। इसके अलावा और कोई बात नहीं है।’ राज कुमार की ताजा फिल्म ‘शाहिद’ इस साल टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई। पिछले दिनों अनुराग कश्यप की फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर-2’ में उन्होंने शमशाद की जीवंत भूमिका निभाई। उनकी ‘चिटगांव’ जल्दी ही रिलीज होगी। एफटीआईआई से एक्टिंग में ग्रेजुएट राज कुमार ने चंद फिल्मों से ही, अपनी खास पहचान बना ली है। इन दिनों वे ‘काए पो चे’ और ‘क्वीन’ की शूटिंग कर रहे हैं।     -आप एफटीआईआई के ग्रेजुएट हैं, लेकिन आप की पहचान मुख्य रूप से थिएटर एक्टर की है। ऐसा माना जाता है कि आप भी एनएसडी से आए हैं? 0 इस गलतफहमी से मुझे कोई दिक्कत नहीं होती। दरअसल शुरू में लोग पूछते थे कि आप ने फिल्मों से पहले क्या किया है, तो मेरा जवाब थिएटर होता था। फिल्मों में लोग थिएटर का मतलब एनएसडी ही समझते हैं, इसल