फिल्म समीक्षा : गैंग्ा ऑफ घोस्ट्स
   -अजय ब्रह्मात्मज    सतीश कौशिक को रीमेक फिल्मों का उस्ताद निर्देशक कहा जा सकता है। आम  तौर पर वे दक्षिण भारत की फिल्मों की रीमेक निर्देशित करते रहे हैं। इस बार  उन्होंने अंकित दत्ता की बंगाली फिल्म 'भूतेर भविष्यत' को हिंदी में 'गैंग  ऑफ घोस्ट्स' नाम से बनाया है। हिंदी फिल्म के मिजाज के मुताबिक उन्होंने  मूल फिल्म में थोड़ा बदलाव किया है। देश भर के दर्शकों को रिझाने की फिक्र  में उन्होंने विषय और प्रस्तुति का गाढ़ापन छोड़ दिया है। फिल्म थोड़ी हल्की  हो गई है, फिर भी विषय की नवीनता और सिद्ध कलाकारों के सहयोग से मनोरंजन  करने में सफल रहती है।        'गैंग ऑफ घोस्ट्स' भूतों के भविष्य के बहाने शहरी समाज के वर्तमान की  कहानी है। मुंबइ में मॉल और मल्टीप्लेक्स कल्चर आने के बाद पुराने बंगले और  मिल टूटते जा रहे हैं। उजाड़ बंगलों को अपना डेरा बनाए भूतों की रिहाइश का  संकट बढ़ता जा रहा है। ऐसे में भूत संगठित होकर कुछ करना चाहते हैं।  'रागिनी एमएमस-2' की तरह यहां भी एक फिल्म बनती है, जिसमें भूतों का एक  प्रतिनिधि ही लेखक बन जाता है। वह अपने समय के किरदारों की भूतिया...