फिल्म समीक्षा : फीवर
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एकरूप किरदारों की उलझन -अजय ब्रह्मात्मज राजीव झावेरी का इरादा ‘ फीवर ’ को रोचक और रोमांचक फिल्म के रूप में पेश करने का रहा होगा। वे भरपूर कोशिश करते हैं। उन्हें राजीव खंडेलवाल के रूप में एक समर्थ अभिनता भी हासिल है। वह विस्मृति का शिकार होने पर भी दर्शकों को बांधे रखने और मूल कहानी पर परिचित चरित्रों के बीच पहुंचना वाहता है। उसके जीवन में आई लड़कियां उसे उलझाए रखती हैं या यूं कहें कि अपनी विस्मृति की वजह से वह उन्हें बार-बार उलझन में डाल देता है। एक समय के बाद रिया,काव्या,पूजा सभी गड्डमड्ड होने लगती हैं। ’ फीवर ’ में तीन लड़कियां हैं। इन दिनों ज्यादातर लड़कियों के लुक और पहनावे में ऐसी एकरूपता रहती है कि उन्हें अलग करना मुश्किल होता है। खास कर नई अभिनेत्रियां हों और उनकी अपनी पहचान न हो तो मुश्किल बढ़ जाती है। ‘ फीवर ’ में एक तो इन चरित्रों को गूढ़ तरीके से गढ़ गया है और फिर संवाद अदायगी,चाल-ढाल,लुक और पहनावे की समानता में दर्शकों को भी विस्मृति के कगार पर ले जाती हैं। अकेले राजीव खंडेलवाल माले के धागे की तरह फिल्म के सभी फूलों को जोड़े रखने की कोशिश करते हैं