फिल्म समीक्षा : हाफ गर्लफ्रेंड
फिल्म रिव्यू हाफ गर्लफ्रेंड शब्दों में लिखना और दृश्यों में दिखाना दो अलग अभ्यास हैं। पन्ने से पर्दे पर आ रही कहानियों के साथ संकट या समस्या रहती है कि शब्दों के दृश्यों में बदलते ही कल्पना को मूर्त रूप देना होता है। अगर कथा परिवेश और भाषा की जानकारी व पकड़ नहीं हो तो फिल्म हाफ-हाफ यानी अधकचरी हो जाती है। मोहित सूरी निर्देशित ‘ हाफ गर्लफ्रेंड ’ के साथ यही हुआ है। फिल्म का एक अच्छा हिस्सा बिहार में है और यकीनन मुंबई की ‘ हाफ गर्लफ्रेंड ’ टीम को बिहार की सही जानकारी नहीं है। बिहार की कुछ वास्तविक छवियां भी धूमिल और गंदिल रूप में पेश की गई हैं। भाषा,परिवेश और माहौल में ‘ हाफ गर्लफ्रेंड ’ में कसर रह जाता है और उसके कारण अंतिम असर कमजोर होता है। उपन्यास के डुमरांव को फिल्म में सिमराव कर दिया गया है। चेतन भगत ने उपन्यास में उड़ान ली थी। चूंकि बिल गेट्स डुमरांव गए थे,इसलिए उनका नायक डुमरांव का हो गया। इस जोड़-तोड़ में वे नायक माधव को झा सरनेम देने की चूक कर गए। इस छोटी सी चूक की भरपाई में उनकी कहानी बिगड़ गई। मोहित सूरी के सहयोगियों ने भाषा,परिवेश और माह