फिल्म समीक्षा : मंजुनाथ
-अजय ब्रह्मात्मज लालच और उपभोक्तावाद के इस दौर में मंजुनाथ की ईमानदारी और निष्ठा पर अधिकांश व्यक्तियों की यही प्रतिक्रिया होगी, 'इडियट था साला'। क्या मंजुनाथ षणमुगम सचमुच इडियट था? क्या उसने अपनी जिद्द के साथ आ रही मौत की आहट नहीं सुनी होगी? ऐसी क्या बात थी कि वह ऑयल माफिया से टकरा गया? संदीप वर्मा की फिल्म 'मंजुनाथ' मंजुनाथ षणमुगम के बॉयोपिक में इन सवालों से सीधे नहीं टकराती। वह षणमुगम की सरल ईमानदारी को ज्यों का त्यों पेश कर देती है। उसे देखते हुए हमें मंजुनाथ के साहस का एहसास होता है। भ्रष्ट संसार पर गुस्सा आता है और खुद पर शर्म आती है। आखिर क्यों हम सभी ने 'चलता है' एटीट्यूड अपना लिया है? भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने और टकराने के बजाए हम क्यों खामोश और ठंडे पड़ जाते हैं? मंजुनाथ का व्यक्तित्व इस फिल्म के माध्यम सक हमारे जमीर को झकझोरता है। संदीप वर्मा ने मंजुनाथ की इस कहानी के लिए हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय चेहरों का सहारा नहीं लिया है। मंजुनाथ की शीर्षक भूमिका में सशो सतीश सारथी का चयन उल्लेखनीय है। सतीश सारथी के अभिनय और चरित्रांकन में