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हिंदी टाकीज 2 (5) : सिनेमा विनेमा से सिनेमा सिनेमा तक.... :प्रतिभा कटियार

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हिंदी टाकीज सीरिज में इस बार प्रतिभा कटियार। उन्‍होंने मेरा आग्रह स्‍वीकार किया और यह संस्‍मरण लिखा। प्रतिभा को मैं पढ़ता रहा हूं और उनकी गतिविधियों से थोड़ा-बहुत वाकिफ रहा हूं। वह निरंतर लिख रही हैं। उन्‍होंने साहित्‍य और पत्रकारिता की भिन्‍न विधाओं में लेखन किया है। उनका यह संस्‍मरण नौवें दशक के आखिरी सालों और पिछली सदी के अंतिम दशक में लखनऊ की किशोरियों और युवतियों के सिनेमाई व्‍यवहार की भी झलक देता है। यह संस्‍मरण सिनेमा के साथ प्रतिभा कटियार के गाढ़े होते संबंध की भी जानकारी देता है। - प्रतिभा कटियार  स्मृतियों का कुछ पता नहीं कब किस गली का फेरा लगाने पहुंच जायें और जाने क्या-क्या न खंगालने लगें। ऐसे ही एक रोज सिनेमा की बात चली तो वो बात जा पहुंची बचपन की उन गलियों में जहां यह तक दर्ज नहीं कि पहली फिल्म कौन थी।  भले ही न दर्ज हो किसी फिल्म का नाम लेकिन सिनेमा की किसी रील की तरह मेरी जिंदगी में सिनेमा की आमद, बसावट और उससे मुझ पर पड़े असर के न जाने कितने पन्ने फड़फडाने लगे।  महबूब सी आमद- कनखियों से इधर-उधर देखता, छुपते-छुपाते, सहमते हुए डरते हुए से दाखिल

हिन्दी टाकीज-जिंदगी है तो सिनेमा है और सिनेमा ही जिंदगी है-सोनाली सिंह

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हिन्दी टाकीज-४८ सोनाली से चवन्नी की मुलाक़ात नहीं है। तस्वीर से ऐसा लगता है कि वह खूबसूरत और खुले दिल की हैं। जुगनुओं के पीछे भागती लड़की के हजारों सपने होंगे और उनसे जुड़ी लाखों ख्वाहिशे होंगी। चवन्नी चाहेगा कि रोज़ उनकी कुछ खेअहिशें पूरी हों.वैसे सोनाली कम से कम २२-२३ चीजों पर पक्का यकीं करती हैं। यकीनयाफ्ता सोनाली निश्चित ही ज़िन्दगी को भरपूर अंदाज़ में जीती होंगी। चवन्नी ने उनकी कहानियाँ नहीं पढ़ी हैं,पर भरोसे के करीबियों से उनकी तारीफें सुनी है। उनके लेखन का एक नमूना यहाँ लिखे शब्द भी है...आप उनसे संपर्क करना चाहें तो पता है... sonalisingh.smile@gmail.com चवन्‍नी के हिन्‍दी टाकीज का कारवां जल्‍दी ही 50वे पड़ाव पर पहुंच जाएगा। सफर जार रहेगा और आप के संस्‍मरण ही चवन्‍नी के हमसफ़र होंगे। आप भी लिखें और पोस्‍ट कर दें ... chavannichap@gmail.com यूं तो मैं जब तीन माह की थी, मैंने अपनी मौसी के साथ सिनेमा देखने जाना शुरू कर दिया था। मौसी बताती हैं कि मैं बिना शोरगुल किये चुपचाप बड़े शौक से तीन घंटे तक पिक्‍चर देख लिया करती थी। कुछ बड़ी हुई तो चाचा लोगों के साथ सिनेमा हॉल जाना शुरू कर दिय