रोज़ाना : क्यों नहीं होती दक्षिण भारत के फिल्मकारों की चर्चा
रोज़ाना क्यों नहीं होती दक्षिण भारत के फिल्मकारों की चर्चा -अजय ब्रह्मात्मज हिंदी सिनेमा की चर्चा और खबरों के बीच हमारा ध्यान दक्षिण भारत की भाषाओं की फिल्मों की ओर कम ही जाता है। हम वहां के कलाकारों और निर्देशकों से अपरिचित हैं। तमिल फिल्मों के रजनीकांत और कमल हासन के अलावा हम तेलुगू,कन्नड़ और मलयालम के कलाकरों के नाम तक नहीं जानते। हालांकि टीवी पर इन दिनों दक्षिण भारतीय भाषाओं की डब फिल्मों की बहार है। पिछले साल तूलुगू के पावर स्टार पवन कल्याण ने बताया था कि बनारस भ्रमण के दौरान वे इस तथ्य से चौंक गए कि वहां की गलियों में भी लोगों ने उन्हें पहचाल लिया। पता चला के टीवी के जरिए ही उनकी यह पहचान बनी थी। भारत सरकार और प्रदेशों के सिनेमा संबंधी मंत्रालय देश में ही सभी भाषाओं की फिल्मों के आदान-प्रदान और प्रदर्शन में यकीन नहीं रख्ते। पिछले साल बिहार सरकार में फिल्म वित्त निगम के अध्यक्ष बनने पर गंगा कुमार प्रादेशिक भाषाओं की फिल्मों का फस्टिवल किया था। ऐसी कोशिशें हर प्रदेश में होनी चाहिए। हाल ही में तेलुगू के श्रेष्ठ फिल्मकार के विश्वनाथ को दादा साहे