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दरअसल : कब बदलेगी वितरण प्रणाली (डिस्‍ट्रीब्‍यूशन सिस्‍टम)

-अजय ब्रह्मात्मज     हिंदी फिल्मों के बाजार के विकास के साथ इसकी वितरण प्रणाली तालमेल नहीं बिठा पा रही है। मल्टीप्लेक्स आने के बाद प्रदर्शन में सुधार हुआ है। अब वितरण में सुधार आवश्यक है। दर्शकों तक फिल्म पहुंचाने के तीन चरणों में निर्माण, वितरण और प्रदर्शन में वितरण ही वह कड़ी है, जो फिल्मों को थिएटर तक ले जाती है। फिल्मों के प्रदर्शन का विस्तार हो चुका है। अब केवल थिएटर ही माध्यम नहीं रह गया है। रिलीज होने के बाद हर फिल्म देर-सबेर सैटेलाइट, टीवी, इंटरनेट, मोबाइल, डीवीडी आदि के जरिए दर्शकों तक पहुंच रही है। आम दर्शक विभिन्न माध्यमों से फिल्में देख रहे हैं, जबकि पुरानी वितरण प्रणाली अभी तक थिएटर को ही ध्यान में रख कर रणनीति बनाती है। थिएटर रिलीज में भी बड़ी और महंगी फिल्में छोटी फिल्मों के शो निगल जाती हैं। सम्यक सोच और व्यवस्था के अभाव में छोटी फिल्में दर्शकों के बावजूद थिएटर से उतार दी जाती हैं। वक्त आ गया है कि निर्माता और फिल्मकार वितरण के आवश्यक सुधार पर ध्यान दें और पहल करें।     थिएटर में वीकएंड कलेक्शन पर जोर दिया जाता है। बड़ी फिल्मों के अधिकतम प्रिंट एक साथ जारी किए ज