दरअसल : बॉयोपिक में हूबहू चेहरा
-अजय ब्रह्मात्मज इस महीने की आखिरी तारीख 30 सितंबर को ‘ एमएस धौनी ’ रिलीज हो रही है। इसे नीरज पांडे ने निर्देशित किया है। फिलम में शीर्षक भूमिका सुशांत सिंह राजपूत निभा रहे हैं। उन्होंने ढाई सालों की कड़ी महनत के बाद धौनी के किरदार को स्क्रीन पर चरितार्थ किया है। उन्होंने सधी महनत और लगन से धौनी की चाल-ढाल पकड़ी है। उनकी तरह विकेट कीपिंग,फील्डिंग और बैटिंग करने का तरीका सीखा है। उम्मीद है धौनी की भूमिका में वे पसंद आएं। हम ने कुछ महीनों और सालों पहले ‘ सरबजीत ’ , ’ मैरी कॉम ’ , ’ मिल्खा सिंह ’ और ‘ पान सिंह तोमर ’ आदि फिल्में देखीं। इनमें से किसी भी फिल्म में कलाकार का चेहरा किरदार से नहीं मिल रहा था। हो सकता है कि उनकी बॉडी लैंग्वेज मिल रही हो,लेकिन उनका तुलनात्मक अध्ययन नहीं हुआ है। सवाल है कि क्या बॉयोपिक में किरदार और कलाकार के चहरे की साम्यता जरूरी नहीं है ? अगर है तो हम हिंदी फिल्मों में उस पर ध्यान क्यों नहीं दे रहे हैं ? एक मान्यता है कि सिनेमा में अशिक्षित हिंदी दर्शकों को कुछ भी इमोशन और एंगेजिंग परोस दो तो वे संतुष्ट हो जाते हैं। उनका मनोरंजन