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फिल्‍म समीक्षा : साला खड़ूस

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खेल और ख्‍वाब का मैलोड्रामा -अजय ब्रह्मात्‍मज     हर विधा में कुछ फिल्‍में प्रस्‍थान बिंदु होती हैं। खेल की फिल्‍मों के संदर्भ में हर नई फिल्‍म के समय हमें प्रकाश झा की ‘ हिप हिप हुर्रे ’ और शिमित अमीन की ‘ चक दे इंडिया ’ की याद आती है। हम तुलना करने लगते हैं। सुधा कोंगरे की फिल्‍म ‘ साला खड़ूस ’ के साथ भी ऐसा होना स्‍वाभाविक है। गौर करें तो यह खेल की अलग दुनिया है। सुधा ने बाक्सिंग की पृष्‍ठभूमि में कोच मदी(आर माधवन) और बॉक्‍सर(रितिका सिंह) की कहानी ली है। कहानी के मोड़ और उतार-चढ़ाव में दूसरी फिल्‍मों से समानताएं दिख सकती हैं,लेकिन भावनाओं की जमीन और परफारमेंस की तीव्रता भिन्‍न और सराहनीय है।     आदि के साथ देव(जाकिर हुसैन) ने धोखा किया है। चैंपियन बॉक्‍सर होने के बावजूद आदि को सही मौके नहीं मिले। कोच बनने के बाद भी देव उसे सताने और तंग करने से बाज नहीं आता। देव की खुन्‍नस और आदि की ईमानदारी ने ही उसे खड़ूस बना दिया है। अभी कर्तव्‍यनिष्‍ठ और ईमानदार व्‍यक्ति ही घर,समाज और दफ्तर में खड़ूस माना जाता है। देव बदले की भावना से आदि का ट्रांसफर चेन्‍नई करवा देता है। च

खेल के साथ रिश्‍तों की कहानी है ‘साला खड़ूस’-राजकुमार हिरानी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज     राजकुमार हिरानी ‘ पीके ’ से सहनिर्माता बन गए थे। उसके पहले वे विधु विनोद चापड़ा की ‘ परिणीता ’ , ’ एकलव्‍य ‘ और ‘ फरारी की सवारी ’ में क्रिएटिव प्रड्यूसर रहे। स्‍वतंत्र निर्माता के तौर पर उनकी पहली फिल्‍म ‘ साला खड़ूस ’ होगी। इस फिल्‍म में आर माधवन और रितिका सिंह ने मुख्‍य भूमिकाएं निभाई हैं। प्रस्‍तुत है बतौर निर्माता राजकुमार हिरानी से हुई बातचीत के अंश.....- निर्माता बनने का खयाल क्‍यों और कैसे आया ? 0 यह संयोग से हुआ। चाहता था कि कुछ प्रड्यूस करूं। इंतजार था कि कोई अच्‍छी स्क्रिप्‍ट आए या कोई असिस्‍टैंट तैयार हो। हुआ यों कि एक दिन माधवन मेरे पास आ गए। उन्‍होंने  20 मिनट में एक कहानी सुनाई। वे चाहते थे कि मैं उसे प्रेजेंट करूं। कहानी अच्‍छी लगी तो मु लगा कि इनवॉल्‍व होना चाहिए। उन्‍होंने साथ आने का प्रस्‍ताव दिया और मैंने स्‍वीकार कर लिया।- बाधवन से आप की दोस्‍ती और स्क्रिप्‍ट दोनों ने आप को राजी किया या...0 माधवन के साथ मैंने काम किया है। उन्‍हें अर्से से जानता हूं। मिलना-जुलना रहता ही है। हमारी मुलाकात के समय तक माधवन अपनी बॉडी पर काम

फिल्‍म समीक्षा : तनु वेड्स मनु रिटर्न्‍स

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-अजय ब्रह्मात्म्ज ‘एक बार जो मैंने कमिटमेंट कर दी,फिर मैं अपने आप की भी नहीं सुनता’... पर्दे पर सलमान खान के बोले इस पॉपुलर संवाद को ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स ’(तवेमरि) में मनोज शर्मा उर्फ मनु अपने अंदाज में फेरबदल के साथ बोलते हैं तो पप्पू टोकता है कि तुम क्या सलमान खान हो? सिनेमा और उनके स्टार और गाने हमारी जिंदगी में प्रवेश कर चुके हैं। ‘तवेमरि’ में शाहरुख खान का भी जिक्र आता है। सुनसान सड़कों पर अकेली भटकती तनु के लिए एक पुराना गाना भी गूंजता है ‘जा जा रे बेवफा’। ‘तवेमरि’ में पॉपुलर कल्चर के प्रभाव सिनेमा से ही नहीं लिए गए हैं। उत्तर भारत में प्रचलित ठेठ शब्दों के साथ ‘बहुत हुआ सम्मा न तेरी...’ जैसे मुहावरा बन चुकी पंक्तियों का भी सार्थक इस्तेूमाल हुआ है। याद करें ‘तेलहंडा’ और ‘झंड’ जैसे शब्द आप ने फिल्मों में सुना था क्या ? नहीं न ? ‘तवेमरि’ हमारे समय की ऐसी फिल्मे है,जो उत्तर भारत की तहजीब और तरीके को बगैर संकोच के पेश करती है। इस फिल्म को देखते हुए उत्तर भारत के दर्शक थोड़ा सा हंसेंगे, क्योंकि शब्दक,संवाद और मुहावरे उनकी रोजमर्रा जिंदगी के हैं। शहरी दर्शकों का आन

तनु वेड्स मनु रिटर्न्‍स

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-हालत देख रहे हैं ? अदरख हो गया है यह आदमी। कहीं से भी बढ़ रहा है। -शादी से पहले मैं रितिक रोशन था क्‍या ? ( यो रितिक रोशन का भी तलाक हो ताता है, है ना ?) >>>>>>>> >>>>>> >> थारे लागाई लागै तो म्‍हारै जैसी ही है। पर मैं थारै लगााई ना हूं। म्‍हारै नाम है कुमारी कुसुम सांगवान। कुमारी कुसुम संगवान और मनोहर शर्मा के बीच क्‍या होगा ? आनंद राय लेकर आ गए हैं तनु वेड्स मनु की अगली कड़ी। चार सालों के बाद आ रहे इस सीक्‍वल में सभी चार साल बड़े हो गए हैं। हालांकि कहानी ने सात साल का जंप लिया है। कुछ नए किरदार भी आ गए हैं। अपने पप्‍पी भैया तो हैं हीत्र कुमारी कुसुम सांगवान भी गजब ढा रही है। यह एथलीट खेलने के समान बोलने में भी तेज है और बेलाग बातें करती है। आखिर मेंशरमा भी जाती है अपना नाम लेते हुए।

फिल्‍म समीक्षा : जोड़ी ब्रेकर्स

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-अजय ब्रह्मात्‍मज हाल-फिलहाल में किसी हिंदी फिल्म में ऐसा सामान्य हीरो नहीं दिखा है। अश्रि्वनी चौधरी ने आर माधवन का नायक की भूमिका देकर जोखिम और साहस का काम किया है। आर माधवन ने अश्रि्वनी की दी हुई चुनौती को स्वीकार किया है और गानों से लेर रोमांटिक और चुंबन दृश्यों तक में भी नार्मल रहने और दिखने की कोशिश की है। कुंआरा गीत में उनकी मेहनत दिखाई पड़ती है। फिल्म में उनकी जोड़ी बिपाशा बसु के साथ बनाई गई है। हॉट बिपाशा बसु जोड़ी ब्रेकर्स के कुछ दृश्यों में बेहद सुंदर लगी है। अपने नाम पर बने गीत में वह जरूरत के मुताबिक देह दर्शन करवाने में भी नहीं झेंपती हैं। अश्रि्वनी चौधरी ने एक अनोखे विषय पर रोमांटिक ड्रामा तैयार किया है। हिंदी फिल्मों में धूप से शुरुआत करने के बाद अश्रि्वनी चौधरी ने अगली फिल्म से राह बदल ली। उन्होंने हिंदी की मसाला फिल्मों की लंबी और भीड़ भरी राह चुनी है। अपनी सोच,संवेदना और राजनीतिक समझ को किनारे रख कर वे मेनस्ट्रीम हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान खोज रहे हैं। उनके चुनाव से कोई गुरेज नहीं है। पिछली कुछ फिल्मों के असफल प्रयास के बाद वह जोड़ी ब्रेकर्स में यह साबित कर देते हैं

हिन्दी फिल्मों में मौके मिल रहे हैं-आर माधवन

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-अजय ब्रह्मात्मज आर माधवन का ज्यादातर समय इन दिनों मुंबई में गुजरता है। चेन्नई जाने और दक्षिण की फिल्मों में सफल होने के बावजूद उन्होंने मुंबई में अपना ठिकाना बनाए रखा। अगर रहना है तेरे दिल में कामयाब हो गयी रहती, तो बीच का समय कुछ अलग ढंग से गुजरा होता। बहरहाल, रंग दे बसंती के बाद आर माधवन ने मुंबई में सक्रियता बढ़ा दी है। फोटोग्राफर अतुल कसबेकर के स्टूडियो में आर माधवन से बातचीत हुई। आपकी नयी फिल्म सिकंदर आ रही है। कश्मीर की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में क्या खास है? सिकंदर दो बच्चों की कहानी है। कश्मीर के हालात से हम सभी वाकिफ हैं। वहां बच्चों के साथ जो हो रहा है, जिस तरीके से उनकी मासूमियत छिन रही है। इन सारी चीजों को थ्रिलर फार्मेट में पेश किया गया है। वहां जो वास्तविक स्थिति है, उसका नमूना आप इस फिल्म में देख सकेंगे। क्या इसमें आतंकवाद का भी उल्लेख है? हां, यह फिल्म आतंकवाद की पृष्ठभूमि में है। आतंकवाद से कैसे लोगों की जिंदगी तबाह हो रही है, लेकिन लंबे समय सेआतंकवाद के साए में जीने के कारण यह उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। उन्हें ऐसी आदत हो गयी है कि लाश, हत्या या