फिल्म समीक्षा: अलादीन
फैंटैसी से सजी है अलादीन -अजय ब्रह्मात्मज अलादीन और उसके जादुई चिराग का जिन्न हिंदी फिल्मों में आए तो हिंदी फिल्मों की सबसे बड़ी समस्या प्यार में उलझ गए। लड़के और लड़की का मिलन हिंदी फिल्मों की ऐसी समस्या है, जो हजारों फिल्मों के बाद भी जस की तस बनी हुई है। हर फिल्म में यह समस्या नए सिरे से शुरू होती है। अलादीन को जिन्न मिलता है, लेकिन अलादीन की तीन इच्छाएं प्रेम तक ही सीमित हैं- जैसमीन, जैसमीन और जैसमीन। अलादीन को जैसमीन से मिलाने में ही जिन्न का वक्त निकलता है। बीच में थोड़ी देर के लिए खलनायक रिंग मास्टर आता है। सुजॉय घोष ने अलादीन और उसके जिन्न को लेकर आधुनिक फैंटेसी गढ़ी है। इस फैंटैसी में स्पेशल इफेक्ट का सुंदर और उचित उपयोग किया गया है। काल्पनिक शहर ख्वाहिश और उसका विश्वविद्यालय भव्य हैं। इस शहर में ऐसा लगता है कि मुख्य रूप से स्टूडेंट ही रहते हैं, क्योंकि शहर की गलियों में दूसरे चरित्र नहीं दिखाई पड़ते। हां, डांस सीन हो, पार्टी हो या नाच-गाना हो तो अचानक सैकड़ों जन आ जाते हैं। फैंटेसी फिल्म है, इसलिए कुछ भी संभव है। ऊपर से हिंदी फिल्म की फैंटेसी है तो लेखक-निर्देशको हर तरह की छ