निदा फाजली : तंज और तड़प है उनके लेखन में
![Image](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiesm-eIhsnOJRC8Wp-IqJC1bSDlSvbWmgxBdgEmeNV6bmWagBgsppZSo9Go_XXH3sMQAdZSiIZg8m7KHhv0y6LkbtvGwhq5AWP2-5T7CLkVvCovldk6DyY7AWKLegrvAQcxJC3R-ST1hw/s320/nida+fazli+8+feb+16.png)
-अजय ब्रह्मात्मज खार दांडा में स्थित उनका फ्लैट मुंबई आए और बसे युवा पत्रकारों और साहित्यकारों का अड्डा था। न कोई निमंत्रण और ना ही कोई रोक। उनके घर का दरवाजा बस एक कॉल बेल के इंतजार में खुलने के लिए तैयार रहता था। आप किसी के साथ आएं या खुद पहुंच जाएं। उनकी बैठकी में सभी के लिए जगह होती थी। पहली मुलाकात में ही बेतकल्लुफ हो जाना और अपनी जिंदादिली से कायल बना लेना उनका बेसिक मिजाज था। बातचीत और बहस में तरक्कीपसंद खयालों से वे लबालब कर देते थे। विरोधी विचारों को उन्हें सुनने में दिक्कत नहीं होती थी, लेकिन वे इरादतन बहस को उस मुकाम तक ले जाते थे, जहां उनसे राजी हो जाना आम बात थी। हिंदी समाज और हिंदी-उर्दू साहित्य की प्रगतिशील धाराओं से परिचित निदा फाजली के व्यक्तित्व, शायरी और लेखन में आक्रामक बिंदासपन रहा। वे मखौल उड़ाते समय भी लफ्जों की शालीनता में यकीन रखते थे। शायरी की शालीनता और लियाकत उनकी बातचीत और व्यवहार में भी नजर आती थी। आप अपनी व्यक्तिगत मुश्किलें साझा करें तो बड़े भाई की तरह उनके पास हल रहते थे। और कभी पेशे से संबंधित खयालों की उलझन हो तो वे अपने अनु