फिल्म समीक्षा : द लंचबाक्स
मर्मस्पर्शी और स्वादिष्ट -अजय ब्रह्माात्मज रितेश बत्रा की 'द लंचबॉक्स' सुंदर, मर्मस्पर्शी, संवेदनशील, रियलिस्टिक और मोहक फिल्म है। हिंदी फिल्मों में मनोरंजन की आक्रामक धूप से तिलमिलाए दर्शकों के लिए यह ठंडी छांव और बार की तरह है। तपतपाते बाजारू मौसम में यह सुकून देती है। 'द लंचबॉक्स' मुंबई के दो एकाकी व्यक्तियों की अनोखी प्रेमकहानी है। यह अशरीरी प्रेम है। दोनों मिलते तक नहीं, लेकिन उनके पत्राचार में प्रेम से अधिक अकेलेपन और समझदारी का एहसास है। यह मुंबई की कहानी है। किसी और शहर में 'द लंचबॉक्स' की कल्पना नहीं की जा सकती थी। 'द लंचबॉक्स' आज की कहानी हे। मुंबई की भागदौड़ और व्यस्त जिंदगी में खुद तक सिमट रहे व्यक्तियों की परतें खोलती यह फिल्म भावना और अनुभूति के स्तर पर उन्हें और दर्शकों को जोड़ती है। संयोग से पति राजीव के पास जा रहा इला का टिफिन साजन के पास पहुंच जाता हे। पत्नी के निधन के बाद अकेली जिंदगी जी रहे साजन घरेलू स्वाद और प्यार भूल चुके हैं। दोपहर में टिफिन का लंच और रात में प्लास्टिक थैलियों में लाया डिनर ही उनका भोजन