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Showing posts from October, 2019

सिनेमालोक : बड़े सितारों की चूक

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सिनेमालोक बड़े सितारों की चूक - अजय ब्रह्मात्मज पिछले हफ्ते आई साजिद नाडियाडवाला की   फिल्म ' हाउसफुल 4' ने दर्शकों और समीक्षकों को निराश किया. इसकी वजह से फिल्म का कारोबार अपेक्षा से बहुत कम रहा. निर्माता को उम्मीद थी की दिवाली के मौके पर रिलीज हो रही यह फिल्म पहले 3 दिनों में ही 100 करोड़ का आंकड़ा पार कर लेगी. ट्रेड पंडितों का अनुमान था कि पहले दिन ही फिल्म का कारोबार 25 से 35 करोड़ के बीच होगा. अक्षय कुमार   समेत तीन अभिनेताओं और कृति ससैनन समेत तीन अभिनेत्रियों की यह फिल्म रिलीज के पहले से तहलका मचा रही थी.   एक गीत ' बाला बाला बाला शैतान का साला ' विचित्र नृत्य मुद्राओं की वजह से लोकप्रिय हो गया था.बाला चैलेंज के तहत फिल्म बिरादरी के सदस्य और आम प्रशंसक हास्यास्पद वीडियो सोशल मीडिया पर डाल रहे थे. उन्हें निर्माता रिट्वीट कर रहे थे. यूँ लग रहा था कि फ़िल्म को इस श्रेणी की पुरानी फिल्मों की तरह भारी कामयाबी मिलेगी. ऐसा नहीं हो सका. अक्षय कुमार की लोकप्रियता से पहले दिन थोड़े दर्शक आये , लेकिन अगले दिन दर्शक सससससस Z कम हो गए. कामयाब फिल्मों का एक ट्रेंड है क

सिनेमालोक : गांधी के विचारों पर बनेगी फिल्में

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सिनेमालोक गांधी के विचारों पर बनेगी फिल्में -अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों आमिर खान, शाह रुख खान,राजकुमार हिरानी और एकता कपूर समेत फ़िल्म बिरादरी के 45-50 सदस्य प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से मिले. छन्नू लाल मिश्र और एक-दो शास्त्रीय गायक भी इस मुलाकात में शामिल थे. सेल्फी सक्रिय फ़िल्म बिरादरी ने मुलाकात के बाद सोशल मीडिया पर प्रधान मंत्री के पहल और सुझाव की तारीफ की झड़ी लगा दी. प्रधानमंत्री ने उनके ट्वीट के जवाब दिए और उनके प्रयासों की सराहना की. सभी ने अलग-अलग शब्दों और बयानों में मोदी जी की बात दोहराई और जुछ ने महात्मा गांधी की प्रासंगिकता की भी बात कही। इस साल 2 अक्टूबर से गांधी की 150वीं जयंती की शुरुआत हो चुकी है. सरकार और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने गंफ़ही जयंती पर कोई खास सक्रियता नहीं डिझायी है. खबर तो यह थी कि दो साल पहले ही एक समिति बनी थी,जिसे 150 वीं जयंती की रणनीति तय करनी थी। क्या रणनीति बनी? बहरहाल, प्रधान मंत्री से फ़िल्म बिरादरी के सदस्यों की मुलाक़ात और विशेष बैठक उल्लेखनीय है. इसका महत्व तब और बढ़ जाता है,जब हम देखते हैं कि कुछ सालों पहले भक्तों के निशाने पर आएआम

सिनेमालोक : मामी फिल्म फेस्टिवल

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सिनेमालोक मामी  फिल्म फेस्टिवल - अजय ब्रह्मात्मज   मामी (मुंबई एकेडमी ऑफ मूवी इमेजेज) के नाम से मशहूर मुंबई का इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल पिछले 20 सालों में फिल्मों के चयन, प्रदर्शन और विमर्श से ऐसे मुकाम पर आ गया है कि देश भर के सिनेप्रेमी सात दिनों के लिए मुंबई पहुंचते हैं. देश में और भी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल हैं. छोटे शहरों और कस्बों से लेकर मीडिया घरानों तक के अपने-अपने फेस्टिवल चल रहे हैं और कमाल है कि सभी इंटरनेशनल हैं. इनके आयोजन और लोकप्रियता से बढ़ती फिल्मों की समझदारी के बावजूद देश में ‘वॉर’ और ‘कबीर सिंह’ जैसी हिंदी फिल्में अपार कामयाबी हासिल कर लेती हैं. पिछले सालों में देश-विदेश की बेहतरीन फिल्में देखने का सिलसिला बढ़ा है. लेकिन हम या तो विदेशियों को सिखा-बता रहे हैं या उनसे ही सीख-समझ रहे हैं. देश की भाषाओँ में बनी फिल्मों की हमें खास जानकारी नहीं रहती. मुझे लगता है कि फिलहाल देश में एक राष्ट्रीय यानि कि नेशनल फेस्टिवल की जरूरत है. सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधीन कार्यरत फिल्म निदेशालय और एनएफडीसी पुणे स्थित राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार की मदद से पहल कर सकते है

सिनेमालोक : अपने-अपने अमिताभ

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सिनेमालोक अपने-अपने अमिताभ  पिछले 50 सालों में अमिताभ बच्चन ने ‘सात हिंदुस्तानी’( 1969 ) से लेकर ‘बदला’( 2019 ) तक के फिल्मी सफर में हर रंग,भाव,विधा और शैली की फिल्मों में काम किया है. ‘जंजीर’ से मिली एंग्री यंग मैन की छवि उनके साथ ऐसी चिपकी की उसने उनकी एक्टिंग के अन्य आयामों को धूमिल कर दिया. ‘एंग्री यंग मैन’ की छवि की फिल्मों को जबरदस्त लोकप्रियता मिली. उन्हें बार-बार देखा गया,उन लिखा गया. देश की सामाजिक और राजनीती हलचलों से जोड़ कर उन पर विमर्श हुआ. हिंदी फिल्मों के इतिहास का यह महत्वपूर्ण अध्याय है और उसके अमिताभ बच्चन नायक हैं. आने वाले सालों में भी उनकी चर्चा चलती रहेगी. पिछले 50 वर्षों में अमिताभ बच्चन ने अनेक पीढ़ियों का मनोरंजन किया है. उन्हें प्रभावित किया है और अपना मुरीद बना दिया है. मंचों और टीवी शो में सबसे ज्यादा उनकी नकल की जाती है. आवाज को भारी कर उनके मशहूर संवाद बोलते ही हर प्रशंसक खुद में अमिताभ बच्चन को महसूस करता है...हें. वास्तव में यह एक महान अभिनेता के अभिनय की सरलता है कि कोई भी उसके नकल कर लेता है. अमिताभ बच्चन प्रशिक्षित अभिनेता नहीं है. उन्होंन

सिनेमालोक : कुछ फिल्में गांधी की

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सिनेमालोक   कुछ फिल्में गांधी की   - अजय ब्रह्मात्मज   भक्त विदुर ( 1921) - निर्देशक कांजीलाल राठौड़ ने कोहिनूर फिल्म कंपनी के लिए ' भक्त विदुर ' का निर्देशन किया था. फिल्म के निर्माता द्वारकादास संपत और माणिक लाल पटेल थे. दोनों ने फिल्म में क्रमशः विदुर और कृष्ण की भूमिकाएं निभाई थीं. इस फिल्म में विदुर ने गांधी टोपी और खद्दर धारण किया था. यह मूक फ़िल्म दर्शकों को भा गई थी. इतनी भीड़ उमड़ी थी कि पुलिस को लाठीचार्ज भी करना पड़ा. इस फिल्म को ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था. आदेश में लिखा था , ' हमें पता है कि आप क्या कर रहे हैं ? यह विदुर नहीं है , यह गांधी है और हम इसकी अनुमति नहीं देंगे. ' ' भक्त विदुर ' भारत की पहली प्रतिबंधित फ़िल्म थी. महात्मा गांधी टॉक्स(1931) – अमेरिका की फॉक्स मूवीटोन कंपनी ने गांधी जी से बातचीत रिकॉर्ड की थी. इसके लिए वे बोरसाद गांव गए थे. गांधी जी की आधुनिक तकनीकी चीजों में कम रूचि थी, फिर भी उन्होंने इसे रिकॉर्ड की अनुमति दी. वैसे उन्होंने कहा भी कि ‘मैं ऐसी चीजें पसंद नहीं करता, लेकिन मैंने खुद को समझा लिया है. महात्