फिल्म समीक्षा : समीर
फिल्म समीक्षा समीर -अजय ब्रह्मात्मज दक्षिण छारा ने आतंकवाद और अहमदाबाद की पृष्ठभूमि पर ‘ समीर ’ का लेखन और निर्देशन किया है। यह फिल्म एक प्रासंगिक विषय को अलग नजरिए से उठाती है। सत्ता,राजनीति और आतंकवाद के तार कहां मिले होत हैं ? आम नागरिक इनसे अनजान रहता है। वह अपनी गली और मोहल्लों में चल रही हवा से तय करता है कि बाहर का तापमान क्या हो सकता है ? उसे नहीं मालूम रहता कि यह हवा और तापमान भी कोई या कुछ लोग नियंत्रित करते हैं। हम कभी उन्हें पुलिस तो कभी राजनेता और कभी भटके नौजवानों के रूप में देखते हैं। दक्षिण छारा ने पुलिस,प्रशासन,नेता और आतंकवाद की इसी मिलीभगत को नए पहलुओं से उकेरने की कोशिश की है। हमें निर्दोष दिख रहे किरदार साजिश में शामिल दिखते हैं। हक के लिए लिख रही रिपोर्टर अचानक सौदा कर लेती है। ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभा रहा पुलिस अधिकारी खुद को मोहरे के रूप में देखता है। बिल्कुल आज के समाज की तरह फिल्म में सब कुड गड्डमड्ड है। फिल्म संकेत देती है कि सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी अपना वर्चस्व और गद्दी बचाए रखने के लिए प्रशासन और पुलिस के साथ मिलकर कोई