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Showing posts from November, 2008

रंग रसिया:दो तस्वीरें

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केतन मेहता की फ़िल्म 'रंग रसिया' की दो तस्वीरें देखें.यह १९ वीं सदी के मशहूर पेंटर राज रवि वर्मा के जीवन से प्रेरित है.इस फ़िल्म में रणदीप हुडा ने राज रवि वर्मा की भूमिका निभाई है तो नंदना सेन उनकी प्रेमिका सुगुना बाई बनी हैं.यह फ़िल्म विदेशों में दिखाई जा चुकी है.भारत में इसका प्रदर्शन अगले साल होगा .इसे A प्रमाण पत्र मिला है.

फ़िल्म समीक्षा:ओए लकी! लकी ओए!

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हंसी तो आती है *** -अजय ब्रह्मात्मज सब से पहले इस फिल्म के संगीत का उल्लेख जरूरी है। स्नेहा खानवलकर ने फिल्म की कहानी और निर्देशक की चाहत के हिसाब से संगीत रचा है। इधर की फिल्मों में संगीत का पैकेज रहता है। निर्माता, निर्देशक और संगीत निर्देशक की कोशिश रहती है कि उनकी फिल्मों का संगीत अलग से पॉपुलर हो जाए। इस कोशिश में संगीत का फिल्म से संबंध टूट जाता है। स्नेहा खानवलकर पर ऐसा कोई दबाव नहीं था। उनकी मेहनत झलकती है। उन्होंने फिल्म में लोकसंगीत और लोक स्वर का मधुर उपयोग किया है। मांगेराम और अनाम बच्चों की आवाज में गाए गीत फिल्म का हिस्सा बन गए हैं। बधाई स्नेहा और बधाई दिबाकर बनर्जी। दिबाकर बनर्जी की पिछली फिल्म 'खोसला का घोसलाÓ की तरह 'ओए लकी।़ लकी ओए।़Ó भी दिल्ली की पृष्ठभूमि पर बनी है। पिछली बार मध्यवर्गीय विसंगति और त्रासदी के बीच हास्य था। इस बार निम्नमध्यवर्गीय विसंगति है। उस परविार का एक होशियार बच्चा लकी (अभय देओल)दुनिया की बेहतरीन चीजें और सुविधाएं देखकर लालयित होता है और उन्हें हासिल करने का आसान तरीका अपनाता है। वह चोर बन जाता है। चोरी में उसकी चतुराई देख कर हंसी आती ह

फ़िल्म समीक्षा:सॉरी भाई

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नयी सोच की फिल्म ** -अजय ब्रह्मात्मज युवा ओर प्रयोगशील निर्देशक ओनिर की 'सॉरी भाई' रिश्तों में पैदा हुए प्रेम और मोह को व्यक्त करती है। हिंदी फिल्मों में ऐसे रिश्ते को लेकर बनी यह पहली फिल्म है। एक ही लडक़ी से दो भाइयों के प्रेम की फिल्में हम ने देखी है, लेकिन बड़े भाई की मंगेतर से छोटे भाई की शादी का अनोखा संबंध 'सॉरी भाई' में दिखा है। रिश्ते के इस बदलाव के प्रति आम दर्शकों की प्रतिक्रिया सहज नहीं होगी। हर्ष (संजय सूरी)और आलिया (चित्रांगदा सिंह)की शादी होने वाली है। दोनों मारीशस में रहते हैं। हर्ष अपने परिवार को भारत से बुलाता है। छोटा भाई सिद्धार्थ, मां और पिता आते हैं। मां अनिच्छा से आई है, क्योंकि वह अपने बेटे से नाराज है। बहरहाल, मारीशस पहुंचने पर सिद्धार्थ अपनी भाभी आलिया के प्रति आकर्षित होता है। आलिया को भी लगता है कि सिद्धार्थ ज्यादा अच्छा पति होगा। दोनों की शादी में मां एक अड़चन हैं। नयी सोच की इस कहानी में 'मां कसम' का पुराना फार्मूला घुसाकर ओनिर ने अपनी ही फिल्म कमजोर कर दी है। शरमन जोशी और चित्रांगदा सिंह ने अपने किरदारों को सही

करीना कपूर:एक तस्वीर

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इस बार सिर्फ़ एक तस्वीर करीना कपूर की.आप की टिप्पणियों का स्वागत है.क्या सोचते हैं आप? कुछ तो लिखें!

आदित्य चोपड़ा लेकर आ रहे हैं'रब ने बना दी जोड़ी'

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-अजय ब्रह्मात्मज लगभग बीस साल पहले यश चोपड़ा के बड़े बेटे आदित्य चोपड़ा ने तय किया कि वे अपने पिता की तरह ही फिल्म निर्देशन में कदम रखेंगे। यश चोपड़ा 'चांदनी' के निर्देशन की तैयारी में थे। आदित्य के उत्साह को देखते हुए यश चोपड़ा ने उन्हें फिल्म कंटीन्यूटी, कॉस्ट्यूम और कलाकारों को बुलाने की जिम्मेदारी दे दी। शूटिंग में शामिल होने के पहले आदित्य चोपड़ा ने भारतीय फिल्मकारों में राज कपूर, विजय आनंद, राज खोसला, मनोज कुमार, बिमल राय, बी आर चोपड़ा और अपने पिता यश चोपड़ा की सारी फिल्में सिलसिलेवार तरीके से देख ली थीं। उन दिनों वे सिनेमाघरों में जाकर फस्र्ट डे फस्र्ट शो देखने के अलावा नोट्स भी लेते थे और बाद में वास्तविक स्थिति से उनकी तुलना करते थे। आदित्य की इन गतिविधियों पर यश चोपड़ा की नजर रहती थी और उन्हें अपने परिवार में एक और निर्देशक की संभावना दिखने लगी थी। उन्होंने आदित्य की राय को तरजीह देना शुरू किया था, लेकिन अभी उन्हें इतना भरोसा नहीं हुआ था कि स्वतंत्र रूप से फिल्म का निर्देशन सौंप दें। 1989 से लेकर 1995 में 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के प्रदर्शन तक आदित्य चोप

फ़िल्म समीक्षा:युवराज

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पुरानी शैली की भावनात्मक कहानी युवराज देखते हुए महसूस होता रहा कि मशहूर डायरेक्टर अपनी शैली से अलग नहीं हो पाते। हर किसी का अपना अंदाज होता है। उसमें वह सफल होता है और फिर यही सफलता उसकी सीमा बन जाती है। बहुत कम डायरेक्टर समय के साथ बढ़ते जाते हैं और सफल होते हैं। सुभाष घई की कथन शैली, दृश्य संरचना, भव्यता का मोह, सुंदर नायिका और चरित्रों का नाटकीय टकराव हम पहले से देखते आ रहे हैं। युवराज उसी परंपरा की फिल्म है। अपनी शैली और नाटकीयता में पुरानी। लेकिन सिर्फ इसी के लिए सुभाष घई को नकारा नहीं जा सकता। एक बड़ा दर्शक वर्ग आज भी इस अंदाज की फिल्में पसंद करता है। युवराज तीन भाइयों की कहानी है। वे सहोदर नहीं हैं। उनमें सबसे बड़ा ज्ञानेश (अनिल कपूर) सीधा और अल्पविकसित दिमाग का है। पिता उसे सबसे ज्यादा प्यार करते हैं। देवेन (सलमान खान) हठीला और बदमाश है। उसे अनुशासित करने की कोशिश की जाती है, तो वह और अडि़यल हो जाता है। पिता उसे घर से निकाल देते हैं। सबसे छोटा डैनी (जाएद खान) को हवाबाजी अच्छी लगती है। देवेन और डैनी पिता की संपत्ति हथियाने में लगे हैं। ज्ञानेश रुपये-पैसों से अनजान होने के बावजू

दरअसल:फिल्मों के प्रोडक्शन डिजाइनर

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-अजय ब्रह्मात्मज हॉलीवुड की तर्ज पर अब उन्हें प्रोडक्शन डिजाइनर कहा जाने लगा है। फिल्म की प्रचार सामग्रियों में उनका नाम प्रमुखता से छापा जाता है। माना यह जा रहा है कि फिल्म के निर्देशक, लेखक, गीतकार और संगीतकार की तरह प्रोडक्शन डिजाइनर भी महत्वपूर्ण होते हैं। वे फिल्मों को डिजाइन करते हैं। फिल्म की कहानी के आधार पर वे परिवेश, काल और वेशभूषा की कल्पना करते हैं। किसी भी फिल्म का लुक इन तीन कारकों से ही निर्धारित होता है। इसी कारण उन्हें प्रोडक्शन डिजाइनर का नाम दिया गया है। दरअसल, नितिन देसाई देश के प्रमुख प्रोडक्शन डिजाइनर हैं। हिंदी की ज्यादातर बड़ी फिल्में उन्होंने ही डिजाइन किए हैं। उनके अलावा, समीर चंदा, संजय दभाड़े और मुनीश सप्पल आदि के नाम भी लिए जा सकते हैं। एक समय में नितिश राय काफी सक्रिय थे। रामोजी राव स्टूडियो की स्थापना और सज्जा की व्यस्तता के कारण उन्होंने फिल्मों को डिजाइन करने का काम लगभग बंद कर दिया है। वैसे, एक सच यह भी है कि नितिश राय ने ही हिंदी फिल्मों की डिजाइन में विश्वसनीयता का रंग भरा। श्याम बेनेगल के साथ डिस्कवरी ऑफ इंडिया करते समय उन्होंने सेट डिजाइन की अवधार

युवराज भव्य सिनेमाई अनुभव देगा: सुभाष घई

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सुभाष घई का अंदाज सबसे जुदा होता है। इसी अंदाज का एक नजारा युवराज में दर्शकों को मिलेगा। युवराज के साथ अन्य पहलुओं पर प्रस्तुत है बातचात- आपकी युवराज आ रही है। इस फिल्म की झलकियां देख कर कहा जा रहा है कि यह सुभाष घई की वापसी होगी? मैं तो यही कहूंगा कि कहीं गया ही नहीं था तो वापसी कैसी? सुभाष घई का जन्म इस फिल्म इंडस्ट्री में हुआ है। उसका मरण भी यहीं होगा। हां, बीच के कुछ समय में मैं आने वाली पीढ़ी और देश के लिए कुछ करने के मकसद से फिल्म स्कूल की स्थापना में लगा था। पंद्रह साल पहले मैंने यह सपना देखा था। वह अभी पूरा हुआ। ह्विस्लिंग वुड्स की स्थापना में चार साल लग गए। पचहत्तर करोड़ की लागत से यह इंस्टीट्यूट बना है। मैं अपना ध्यान नहीं भटकाना चाहता था, इसलिए मैंने फिल्म निर्देशन से अवकाश ले लिया था। पिछले साल मैंने दो फिल्मों की योजना बनायी। एक का नाम ब्लैक एंड ह्वाइट था और दूसरी युवराज थी। पहली सीरियस लुक की फिल्म थी। युवराज कमर्शियल फिल्म है। मेरी ऐसी फिल्म का दर्शकों को इंतजार रहा है, इसलिए युवराज के प्रोमो देखने के बाद से ही सुभाष घई की वापसी की बात चल रही है। सुभाष घई देश के प्रमुख ए

हिन्दी टाकीज:जूते पहन कर जा सकते थे उस मन्दिर में-मुन्ना पांडे (कुणाल)

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हिन्दी टाकीज-१७ इस बार मुन्ना पाण्डेय(कुणाल).कुणाल के ब्लॉग मुसाफिर से इसे लिया गया है.वहां मुन्ना पाण्डेय ने बहुत खूबसूरती के साथ श्याम चित्र मन्दिर की झांकी पेश की है। यह झांकी किसी भी छोटे शहर की हो सकती है.मुन्ना पाण्डेय का परिचय उनके ही शब्दों में लिखें तो,'तब जिंदगी मजाक बन गयी थी,दिल्ली आया था घर छोड़कर कि कुछ काम-धंधा करुं और मजाक बनी जिंदगी को कुछ मतलब दूं। लेकिन यहां आकर मजाक-मजाक में पढ़ने लग गया। रामजस कॉलेज से बीए करने के बाद एमए करने का मूड हो आया. तब तक किताबों का चस्का लग गया था और इसी ने मुझे एमए में गोल्ड मेडल तक दिला दिया। एम.फिल् करने लग गया। अब हंसिए मत, सच है कि मजाक-मजाक में ही जेआरएफ भी हो गया औऱ अब॥अब क्या। हबीब तनवीर के नाटक पर डीयू से रिसर्च कर रहा हूं। जिस मजाक ने मुझे नक्कारा करार देने की कोशिश की आज भी उसी मजाक के लिए भटकता-फिरता हूं। पेशे से रिसर्चर होते हुए भी मिजाज से घुमक्कड़ हूं। फिल्में खूब देखता हूं,बतगुज्जन पर भरोसा है और पार्थसारथी पर बार-बार रात बिताने भागता रहता हूं। अब तो जिंदगी और मजाक दोनों से प्यार-सा हो गया है।' gopalganj अग्निपथ स

रब ने बना दी जोड़ी में अलग लग रहे हैं शाहरूख खान

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12 दिसंबर को रब ने बना दी जोड़ी रिलीज होगी। दरअसल, यह फिल्म शाहरुख खान से ज्यादा आदित्य चोपड़ा के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि मोहब्बतें के निर्देशन के आठ साल बाद वे रब.. लेकर आ रहे हैं। फिल्म के पोस्टर और पहले गाने को देखकर ऐसा लग रहा है कि यह फिल्म उनकी पहले की फिल्मों से अलग होगी। वैसे, यह शाहरुख के लिए इस लिहाज से भी खास हो जाती है कि ओम शांति ओम के बाद यह उनकी पहली कायदे की फिल्म होगी। शाहरुख इस बार ओम शांति ओम की तरह आक्रामक जरूर नहीं दिख रहे हैं, लेकिन इस फिल्म को दर्शकों तक ले जाने और उन्हें इस फिल्म के लिए तैयार करने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर भी है। इसी कारण उन्होंने अपने जन्मदिन के मौके पर मीडिया को मन्नत में बुलाया। कोशिश यह थी कि जन्मदिन के मौके पर रब.. की चर्चा आरंभ हो जाए। यशराज और शाहरुख इस रणनीति में सफल रहे। शाहरुख ने विस्तार से फिल्म के बारे में बताया। उन्होंने आदित्य के साथ हुई विमर्श की जानकारी भी दी। जैसे कि पहले पोस्टर में प्रौढ़ शाहरुख को पेश करना। पहले राय बनी थी कि इससे दर्शक निराश होंगे। उन्हें लगेगा कि शाहरुख बूढ़े हो गए हैं। शाहरुख की राय थी, हमें

फ़िल्म समीक्षा:दोस्ताना

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भारतीय परिवेश की कहानी नहीं है -अजय ब्रह्मात्मज कल हो न हो में कांता बेन के मजाक की लोकप्रियता को करण जौहर ने गंभीरता से ले लिया है। अबकि उन्होंने इस मजाक को ही फिल्म की कहानी बना दिया। दोस्ताना दो दोस्तों की कहानी है, जो किराए के मकान के लिए खुद को समलैंगिक घोषित कर देते हैं। उन्हें इस झूठ के नतीजे भी भुगतने पड़ते हैं। संबंधों की इस विषम स्थिति-परिस्थिति में फिल्म के हास्य दृश्य रचे गए हैं। आशचर्य नहीं की इसे शहरों के युवा दर्शक पसंद करें। देश के स्वस्थ्य मंत्री ने भी सुझाव दिया है कि समलैंगिक संबंधों को कानूनी स्वीकृति मिल जानी चाहिए। सम्भव है कि कारन कि अगली फ़िल्म समलैंगिक संबंधो पर हो। करण की दूसरी फिल्मों की तरह इस फिल्म की शूटिंग भी विदेश में हुई है। इस बार अमेरिका का मियामी शहर है। वहां भारतीय मूल के दो युवकों को मकान नहीं मिल पा रहा है। एक मकान मिलता भी है तो मकान मालकिन अपनी भतीजी की सुरक्षा के लिए उसे लड़कों को किराए पर नहीं देना चाहती। मकान लेने के लिए दोनों खुद को समलैंगिक घोषित कर देते हैं। फिल्म को देखते समय याद रखना होगा कि यह भारतीय परिवेश की कहानी नहीं है। यह एक ऐसे

फ़िल्म समीक्षा:दसविदानिया

अवसाद में छिपा हास्य -अजय ब्रह्मात्मज अलग मिजाज की फिल्म को पसंद करने वालों के लिए दसविदानिया उपहार है। चालू फार्मूले और स्टार के दबाव से बाहर निकल कर कुछ निर्देशक ऐसी फिल्में बना रहे हैं। शशांत शाह को ऐसे निर्देशकों में शामिल किया जा सकता है। फिल्म का नायक 37 साल का है। शादी तो क्या उसकी जिंदगी में रोमांस तकनहीं है। चेखव की कहानियों और हिंदी में नई कहानी के दौर में ऐसे चरित्र दिखाई पड़ते थे। चालू फिल्मों में इसे डाउन मार्केट मान कर नजरअंदाज किया जाता है। अमर कौल एक सामान्य कर्मचारी है। काम के बोझ से लदा और मां की जिम्मेदारी संभालता अपनी साधारण जिंदगी में व्यस्त अमर। उसे एहसास ही नहीं है कि जिंदगी के और भी रंग होते हैं। हां, निश्चित मौत की जानकारी मिलने पर उसका दबा अहं जागता है। मरने से पहले वह अपनी दस ख्वाहिशें पूरी करता है। हालांकि इन्हें पूरा करने के लिए वह कोई चालाकी नहीं करता। वह सहज और सीधा ही बना रहता है। अमर कौल की तकलीफ रूलाती नहीं है। वह उदास करती हैं। सहानुभूति जगाती हैं। चार्ली चैप्लिन ने अवसाद से हास्य पैदा करने में सफलता पाई थी। दसविदानिया उसी श्रेणी की फिल्म है। कमी यही

दोस्ती का मतलब वफादारी है: अभिषेक बच्चन

अभिषेक बच्चन की नई फिल्म दोस्ताना दोस्ती पर आधारित है। आज रिलीज हो रही इस फिल्म के बारे में पेश है अभिषेक बच्चन से खास बातचीत- दोस्ती क्या है आप के लिए? मेरे लिए दोस्ती का मतलब वफादारी है। दोस्त आसपास हों, तो हम सुरक्षा और संबल महसूस करते हैं। क्या दोस्त अपने पेशे के ही होते हैं? दोस्त तो दोस्त होते हैं। जरूरी नहीं है कि वे आप के पेशे में ही हों। मेरे कई दोस्त ऐसे हैं,जिनका फिल्मों से कोई नाता नहीं है। दोस्त बनते हैं या बनाए जाते है? दोस्त बनाए जाते हैं। दोस्ती खुद-ब-खुद नहीं होती। दोस्ती की जाती है। उसके लिए कोशिश करनी पड़ती है। कौन सा रिश्ता ज्यादा मजबूत होता है? दोस्ती या खून का रिश्ता? यह व्यक्ति पर निर्भर करता है। मेरे और आपके या किसी और के अनुभव में फर्क हो सकता है। मैं रिश्तों को अलग-अलग करके नहीं देखता। दोस्त और दोस्ती को लेकर आप के अनुभव कैसे रहे हैं? मेरे ज्यादातर दोस्त बचपन के ही हैं। गोल्डी बहल,सिकंदर खेर,उदय चोपड़ा और रितिक रोशन सभी मेरे बचपन के दोस्त हैं। हम सभी एक ही स्कूल में पढ़ते थे। मैंने दोस्ती निभाई है और वे सभी दोस्त बने रहे हैं। कोई गैरफिल्मी दोस्त भी है? बिल्कुल।

दरअसल:दीवाली पर हुए बॉक्स ऑफिस धमाके

-अजय ब्रह्मात्मज इस साल दीवाली के मौके पर रिलीज हुई गोलमाल रिट‌र्न्स और फैशन का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन अच्छा रहा। दोनों फिल्मों को लेकर ट्रेड सर्किल में पहले से ही पॉजिटिव बातें चल रही थीं। कहा जा रहा था कि रिलीज के दिन गोलमाल रिट‌र्न्स का पलड़ा भारी होता दिखा। उसका कलेक्शन ज्यादा हुआ। फैशन भी बहुत पीछे नहीं रही। दोनों फिल्मों के धमाकों से बॉक्स ऑफिस पर छाई खामोशी टूटी है। हालांकि आने वाले हफ्तों में ही यह पता चलेगा कि दोनों की वास्तविक कमाई कितनी रही! अगर सिर्फ लाभ के नजरिए से देखें, तो गोलमाल रिट‌र्न्स सभी के लिए फायदेमंद साबित होती दिख रही है। निर्माता, वितरक और प्रदर्शक सभी को फायदा हो रहा है। फिल्म बिजनेस में अब नए व्यापारी आ गए हैं। इरोज और इंडियन फिल्म्स जैसी कॉरपोरेट कंपनियां फिल्म निर्माण में शामिल नहीं होतीं। वे फिल्में पूरी होने के बाद खरीद लेती हैं। ऐसे में निर्माता भी एकमुश्त रकम पाने के बाद संतुष्ट हो जाता है। उसे फिल्म के चलने या न चलने की फिक्र ही नहीं सताती। गोलमाल रिट‌र्न्स और सिंह इज किंग के उदाहरण से इसे समझा जा सकता है। दोनों फिल्में पूरी होने के बाद इंडियन फिल्म्स ने

बॉक्स ऑफिस:१४.११.२००८

ईएमआई को लगा झटका राजश्री प्रोडक्शन ने एक विवाह ऐसा भी को पुराने तरीके से रिलीज किया। मुंबई के चंद थिएटरों में यह फिल्म लगी है। देश के दूसरे शहरों का भी यही हाल है। राजश्री टीम का मानना है कि उनकी फिल्म के दर्शक धीरे-धीरे बढ़ेंगे। पहले हफ्ते में इस फिल्म का कलेक्शन औसत रहा। देखना है कि अगले हफ्तों में क्या स्थिति रहती है? थिएटरों से इस फिल्म के उतरने की संभावना नहीं है, क्योंकि राजश्री ने सभी शहरों में ऐसे थिएटर चुने हैं जहां फिल्म लंबे समय तक दिखायी जा सके। ईएमआई को अवश्य झटका लगा है। सोचा नहीं जा सकता था कि संजय दत्त की फिल्म की ओपनिंग 15-20 प्रतिशत होगी। इस फिल्म के दर्शकों के बढ़ने की उम्मीद भी नहीं है। पुरानी फिल्मों में गोलमाल रिट‌र्न्स हिट होने की तरफ बढ़ चुकी है। निर्माता, निर्देशक और कलाकार सभी खुश हैं। अब तो गोलमाल-3 की बात चल रही है। मधुर भंडारकर की फैशन महानगरों में अच्छी चल रही है। फैशन को शहरी दर्शकों ने पसंद किया है। यह फिल्म औसत व्यापार कर लेगी। इस हफ्ते तरूण मनसुखानी की दोस्ताना और शशांत सिंह की दसविदानिया रिलीज हो रही है। फ्लॉप के अंधेरे से निकली फिल्म इंडस्ट्री ०७.

हिन्दी टाकीज:चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों..-जी के संतोष

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हिन्दी टाकीज-१६ हिदी टाकीज में इस बार जी के संतोष . संतोष जी बनारस के हैं.क्रिकेट खेलते थे और फोटोग्राफी और फिल्मों का शौक था.फोटो जर्नलिज्म से आरम्भ किया और फिर खेल पत्रकार बन गए.इन दिनों दैनिक जागरण में कार्यरत हैं.मन हुआ तो साइकिल से काठमांडू और चम्बल की भी सैर कर आए.चवन्नी के आग्रह को संतोष ने स्वीकार किया और अपने अंदाज में सिनेमा से जुड़े संस्मरण लिखे. बहुत दिनों बाद एक ऐसी फिल्म देखी जिसने पूरे शो के दौरान हिलने तक न हीं दिया। नीरज पांडेय ने कमाल की फिल्म बनाई है-ए वेन्सडे। इस फिल्म में इंटरवल की भी कोई जरूरत नहीं थी। तेजी से भागती इस फिल्म में भारतीय सिनेमा के दो बेहतरीन अदाकार अनुपम खेर और नसीरूद्दीन शाह अपने बेहतरीन रंग में दिखाई दिए-जवाबी कव्वाली सुनाते हुए। कहानी दर्शकों को अच्छी तरह बांधे रखती है क्योंकि आज लगभग आधी दुनिया आतंकवाद से प्रभावित है। आज के बाजारवाद के दौर से परहेज रखते हुए इस तरह की फिल्म बनाकर नीरज पांडेय ने जोखिम उठाया है। महानगरों में इन दिनों फिल्में बहुधा मल्टीप्लेक्सेज में लगती है। यहां फिल्में देखना ज्यादा मजेदार होता हैं। एक तो फिल्में वैसे भी तकनीक मे

सिद्धांतों और सामाजिक जिम्मेदारी को न भुलाएं-महेश भट्ट

समारोह में चर्चा का विषय था-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी। वक्ताओं ने परस्पर विरोधी विचार रखे। हम वाणिज्य एवं उद्योग संगठन फिक्की के वार्षिक समारोह फ्रेम्स में शामिल होने आए थे। इसमें हिस्सा लेने के लिए विश्व मनोरंजन उद्योग से जुडे लोग आते हैं, ताकि वैचारिक साझा कर सकें, एक-दूसरे को समझें और उन चुनौतियों का जवाब तलाशें, जिनका सामना मनोरंजन उद्योग से जुडे लोगों को करना पड रहा है। पत्रकार और मीडिया से जुडे प्रीतिश नंदी ने कहा-आजादी उस कुंवारेपन की तरह है जो या तो है या फिर नहीं है। सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टीफिकेशन की अध्यक्षा शर्मिला टैगोर ने कहा-बतौर एक अभिनेत्री मैं स्वतंत्रता की पक्षधर हूं, लेकिन यह भी मानती हूं कि सांस्कृतिक एवं भावनात्मक विविधता वाले देश भारत में अभिव्यक्ति की आजादी पर नजर रखना भी आवश्यक है। राज्यसभा के सदस्य, दादा साहब फालके पुरस्कार सहित कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले श्याम बेनेगल ने कहा कि इस मुद्दे पर मेरे सामने कोई समस्या नहीं आई, लेकिन पिछले कुछ वर्षो में एक नई बात हुई है कि जब भी बडे सितारों को लेकर कोई फिल्म रिलीज हो

फ़िल्म समीक्षा:एक विवाह ऐसा भी

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परिवार और रिश्तों की कहानी -अजय ब्रह्मात्मज राजश्री प्रोडक्शन की एक विवाह ऐसा भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का देसी सिनेमा है। पश्चिमी प्रभाव, तकनीकी विकास और आप्रवासी एवं विदेशी दर्शकों को लुभाने की कोशिश में अपने ही दर्शकों को नजरअंदाज करते हिंदी सिनेमा में ऐसे विषयों को इन दिनों पिछड़ा मान लिया गया है। महानगरों की गलाकाट प्रतियोगिता, होड़ और आपाधापी के बावजूद आप के दिल में संबंधों की गर्माहट बची है तो संभव है कि फिल्म को देखते हुए छिपी और दबी भावनाएं आपकी आंखे नम कर दें। कौशिक घटक और फिल्म के लेखक ने ऐसे कोमल और हृदयस्पर्शी दृश्यों को रचा है जो हमारी स्मृतियों में कहीं सोए पड़े हैं। वास्तव में एक विवाह ऐसा भी देशज सिनेमा है। यह परिवार और रिश्तों की कहानी है। यह त्याग और समर्पण की कहानी है। यह प्रेम के स्थायी राग की कहानी है। यह परस्पर विश्वास और संयम की कहानी है। मुमकिन है महानगरों और मल्टीप्लेक्स के दर्शक इस कहानी की विश्वसनीयता पर ही शक करें। सूरज बड़जात्या की देखरेख में कौशिक घटक ने किसी प्रादेशिक शहर का मोहल्ले के मध्यवर्गीय परिवार को चुना है। यहां भव्य सेट और आलीशान मकान नहीं है। प

दरअसल:आमिर खान की पहली ऐक्शन फिल्म गजनी

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-अजय ब्रह्मात्मज आमिर खान की इमेज ऐक्शन ऐक्टर की नहीं रही है। वैसे, एक सच यह भी है कि खान त्रयी में से कोई भी ऐक्शन स्टार की प्रचलित श्रेणी में नहीं आता। ऐक्शन के लिए सनी देओल, अक्षय कुमार और सुनील शेट्टी मशहूर रहे हैं। जख्म के बाद अजय देवगन ने ऐक्शन ऐक्टर की अपनी इमेज बदली। अब वे कॉमेडी फिल्मों में हंसाने के लिए ऐक्शन करते नजर आते हैं। बात शुरू हुई थी आमिर से। वे अपनी आने वाली नई फिल्म गजनी में भरपूर ऐक्शन करते नजर आएंगे। यह फिल्म तमिल में बनी गजनी की रिमेक है और इसे मूल फिल्म के निर्देशक ए.आर मुर्गदास ही निर्देशित कर रहे हैं। अपनी हर फिल्म की तरह आमिर इसे भी खास फिल्म मान रहे हैं। दरअसल, लगान के समय से वे अपनी फिल्मों पर पूरा ध्यान देने लगे हैं। कहानी सुनने से लेकर फिल्म की रिलीज और उसके प्रचार और पुरस्कार आदि के प्रति भी उनकी सक्रियता बनी रहती है। अपनी फिल्मों को लेकर स्टारों का यह समर्पण कम ही लोगों में देखने को मिलता है। हां, अपने होम प्रोडक्शन की फिल्म हो, तो अलग बात है। बाकी स्टारों और आमिर में एक फर्क साफ-साफ नजर आता है किवे पहले दिन से ही अपनी फिल्म के लिए उत्साहित रहते हैं।

सजग पत्रकार की चेतना के फिल्मकार बीआर चोपड़ा

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-अजय ब्रह्मात्मज पिछले कुछ सालों से वह स्वस्थ नहीं थे। ह्वील चेयर पर ही कार्यक्रमों में आते-जाते थे। लोगों से बात न कर पाने की बेबसी उनके चेहरे पर झलकती थी। लेकिन दूसरों की बातें सुन कर उनकी आंखों में चमक आ जाती थी। वे आंखें बहुत कुछ बयां कर देती थीं। बेटे रवि चोपड़ा उनकी भावनाओं को शब्द देते थे। मुझे याद है बीआर फिल्म्स के 50 साल पूरे होने पर उन्होंने अपनी फिल्मों की खास स्क्रीनिंग रखी थी। चार दिनों तक चली उस स्क्रीनिंग में दिलीप कुमार से लेकर उनके साथ जुड़े कई कलाकार आए थे। सभी ने उस दौर की फिल्म मेकिंग, डायरेक्टर के साथ रिश्तों और काम के माहौल पर अपने संस्मरण सुनाए। बीआर यानी बलदेव राज को करीब से समझने का वह पहला मौका था। 'सिने हेराल्ड जर्नल' के लिए फिल्म पत्रकार के तौर पर करियर शुरू करने वाले बलदेवराज चोपड़ा आजादी के पहले लाहौर की फिल्म सर्किल में काफी सक्रिय थे। उन्होंने गोवर्धन दास अग्रवाल की फिल्म 'डाक बंगला' की समीक्षा में फिल्म की धज्जियां उड़ा दी थीं। फिल्म फ्लाप हो गई तो अग्रवाल ने कहा कि बीआर ने बदले की भावना से समीक्षा लिखी थी। स्थितियां जो भी रही हों, आजादी क

अनुराग कश्‍यप से अंतरंग बातचीत

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'सत्या' मैंने रिलीज के चंद दिनों पहले देखी थी। मनोज बाजपेयी के सौजन्य से यह संभव हुआ था। फिल्म देखने के बाद 'संझा जनसता' में मैंने 'सत्या' पर एक लेख लिखा था। मुझे किसी ने बताया था कि फिल्म के लेखक अनुराग कश्यप ने वह लेख राम गोपाल वर्मा को पढ़ कर सुनाया था और फिर उन्होंने मुझे इंटरव्यू के लिए बुलाया था। अनुराग कश्यप से मेरी मुलाकात तब तक नहीं हुई थी। 'शूल' की रिलीज के समय मनोज बाजपेयी और अनीस रंजन के साथ मैं लखनऊ और कानपुर जा रहा था। हिंदी फिल्मों और मीडिया ग्रुप के साथ आज फैशन बन चुके मीडिया टाईअप की वह पहली घटना थी। हमलोग दिल्ली में रूके थे। वहां 'शूल' से संबंधित एक प्रेस क्रांफ्रेंस आयोजित किया गया था। वहीं अनुराग कश्यप से पहली मुलाकात हुई और उसके बाद मुलाकात का सिलसिला चलता रहा। परस्पर आदर और प्रेम का भाव हम दोनों के बीच रहा है। एक-दूसरे के काम में बगैर हस्तक्षेप किए हमलोग जरूरत के समय मिलते रहे हैं। धीरे-धीरे अनुराग कश्यप ने अपनी स्पष्टता, पारदर्शिता और कस्बाई होशियारी से फिल्म इंडस्ट्री में खास जगह बना ली है। वह प्रयोगशील युवा