करियर और अपनी संस्कृति को अलग नहीं कर सकता: गिरीश रंजन
कल दिल्ली में गिरीश रंजन का निधन हुआ। मैं पहली बार उनसे 1980 के आसपसा मिला था। तब पटना शहर में 'कल हमारा है' की गूंज थी। मैं दिल्ली जाने की तैयारी कर रहा था। फिल्मों से मेरा संबंध दर्शक का था। बहुत बाद में मित्र विनोद अनुपम के सौजन्य से गिरीश रंजन से मिला। मैं उस मुलाकात में नतमस्तक रहा। मेरी अटूट धारणा है कि किसी भी रूप में पहले पहल शिक्षित और प्रभावित करने वाले आजन्म पूज्य होते हैं। उनके प्रति आदर कम नहीं हो सकता। गिरीश जी के प्रति मेरे मन में ऐसा ही आदर रहा। मैं मानता हूं कि यह बिहार का दुर्भाग्य है कि वह अपनी प्रतिभाओं को संबल नहीं देता। यह इंटरव्यू पुज प्रकाश के ब्लॉग मंडली से लिया है। चवन्नी के पाठक इस प्रतिभा से परिचित हों। इंटरव्यू में कही उनकी बातें प्रासंगिक हैं। 15 जून, 1934 ई. को पंछी, शेखपुरा में स्व. अलख नंदन प्रसाद जी के घर बालक गिरीश रंजन का जन्म हुआ l छ: भाई-बहनों में सबसे बड़े गिरीश रंजन ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद ही फिल्मों की दुनिया को अपना कैरियर चुना l प्रसिद्ध फिल्मकार सत्यजीत रे, मृणाल सेन, तरुण मजूमदार, तपन सिन्हा आदि के साथ काम