दरअसल : 2013 की उपलब्धि हैं राजकुमार और निम्रत
-अजय ब्रह्मात्मज बाक्स आफिस और लोकप्रियता के हिसाब से कलाकारों की बात होगी तो राजकुमार राव और निम्रत कौर किसी भी सूची में शामिल नहीं हो पाएंगे। चरित्र, चरित्रांकन और प्रभाव के एंगल से बात करें तो पिछले साल आई हिंदी फिल्मों के कलाकारों में उन दोनों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकेगा। हंसल मेहता निर्देशित ‘शाहिद’ और रितेश बत्रा निर्देशित ‘द लंचबाक्स’ देखने के बाद आप मेरी राय से असहमत नहीं हो सकेंगे। दोनों कलाकारों ने अपने चरित्रों को आत्मसात करने के साथ उन्हें खास व्यक्तित्व दिया। दोनों अपनी-अपनी फिल्मों में इतने सहज और स्वाभाविक हैं कि फिल्म देखते समय यह एहसास नहीं रहता कि व्यक्तिगत जीवन में राजकुमार राव और निम्रत कौर कुछ और भी करते होंगे। हिंदी फिल्मों में कभी-कभार ही ऐसे कलाकारों के दर्शन होते हैं। समीक्षक, दर्शक और फिल्म पत्रकार इन्हें अधिक तरजीह नहीं देते, क्योंकि ये फिल्म से पृथक नहीं होते। इनके बारे में चटपटी टिप्पणी नहीं की जा सकती। इनकी स्वाभाविकता को व्याख्यायित नहीं किया जा सकता। दूसरे कथित स्टारडम नहीं होने से इन्हें अपेक्षित लाइमलाइट नहीं मिल पाता। ‘शाहिद’ और ‘द लंचबाक