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दरअसल: पा‌र्श्व गायन बढ़ती भीड़, खोती पहचान

-अजय ब्रह्मात्मज हिंदी फिल्मों के पा‌र्श्व गायन में बड़ा परिवर्तन आ चुका है। अभी फिल्मों में अनेक गीतकार और संगीतकारों के गीत-संगीत के उपयोग का चलन बढ़ गया है। कुछ फिल्मों में छह से अधिक गीतकार और संगीतकार को एक-एक गीत रचने के मौके दिए जाते हैं। गायकों की सूची देखें, तो वहां भी एक लंबी फेहरिस्त नजर आती है। अब किसी फिल्म का नाम लेते ही उसके गीतकार और संगीतकार का नाम याद नहीं आता, क्योंकि ज्यादातर फिल्मों में उनकी संख्या दो से अधिक होने लगी है। अगर भूले से कभी कोई गीत याद आ जाए, तो उसके गीतकार और संगीतकार का नाम याद करने में भारी मशक्कत करनी पड़ती है। गायकी की बात करें, तो जावेद अली, शाबिर तोषी, शिल्पा राव, मोहित चौहान, कविता सेठ, आतिफ असलम, पार्थिव गोहिल, अनुष्का मनचंदा, बेनी दयाल, श्रद्धा पंडित, जुबीन, हरद कौर, मीका, तुलसी कुमार, नेहा भसीन आदि दर्जनों गायक विभिन्न फिल्मों में एक-दो गाने गाते सुनाई पड़ते हैं। अगर आप हिंदी फिल्म संगीत के गंभीर शौकीन हों, तो भी कई बार आवाज पहचानने में दिक्कत होती है। संगीत का मिजाज बदलने से आर्केस्ट्रा पर ज्यादा जोर रहता है। ऐसे में गायकों की आवाज संगीत म