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फिल्‍म समीक्षा : आंखों देखी

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निर्मल भाव की सहजता -अजय ब्रह्मात्‍मज  दिल्ली-6 या किसी भी कस्बे, छोटे-मझोले शहर के मध्यवर्गीय परिवार में एक गुप्त कैमरा लगा दें और कुछ महीनों के बाद उसकी चुस्त एडीटिंग कर दें तो एक नई 'आंखें देखी' बन जाएगी। रजत कपूर ने अपने गुरु मणि कौल और कुमार साहनी की तरह कैमरे का इस्तेमाल भरोसेमंद दोस्ट के तौर पर किया है। कोई हड़बड़ी नहीं है और न ही कोई तकनीकी चमत्कार दिखाना है। 'दिल्ली-6' की एक गली के पुराने मकान में कुछ घट रहा है, उसे एक तरतीब देने के साथ वे पेश कर देते हैं। बाउजी अपने छोटे भाई के साथ रहते हें। दोनों भाइयों की बीवियों और बच्चों के इस भरे-पूरे परिवार में जिंदगी की खास गति है। न कोई जल्दबाजी है और न ही कोई होड़। कोहराम तब मचता है, जब बाउजी की बेटी को अज्जु से प्यार हो जाता है। परिवार की नाक बचाने के लिए पुलिस को साथ लेकर सभी अज्जु के ठिकाने पर धमकते हैं। साथ में बाउजी भी हैं। वहां उन्हें एहसास होता है कि सब लोग जिस अज्जु की बुराई और धुनाई कर रहे थे, उससे अधिक बुरे तो वे स्वयं हैं। उन्हें अपनी बेटी की पसंद अज्जु अच्छा लगता है। इस एहसास और अनुभव क

अलग मजा है एक्टिंग में-संजय मिश्रा

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-अजय ब्रह्मात्मज     संजय मिश्रा से राजस्थान के मांडवा में मुलाकात हो गई। वे वहां डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म ‘जेड प्लस’ की शूटिंग के लि सीधे हरिद्वार से आए थे। हरिद्वार में वे यशराज फिल्म्स और मनीष शर्मा की फिल्म ‘दम लगा कर हइसा’ की शूटिंग कर रहे थे। एक अंतराल के बाद संजय मिश्रा फिर से सक्रिय हुए हैं। उन्होंने एक्टिंग पर ध्यान देना शुरु किया है। सुभाष कपूर की ‘फंस गए रे ओबामा’ की कामयाबी के बाद उनके पास अनगिनत फिल्मों के ऑफर ो। उन सभी को किनारे कर वे डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठ गए। उन्होंने ‘प्रणाम वालेकुम’ नाम की अनोखी फिल्म का निर्देशन किया। यह फिल्म अभी प्रदर्शन के इंतजार में है। फिलहाल उनकी फिल्म ‘आंखें देखी’ रिलीज हो रही है। इसका निर्देशन रजत कपूर कर रहे हैं।     डॉ द्विवेदी की ‘जेड प्लस’ में छोटी भूमिका के लिए राजी हो की वजह उन्होंने खुद ही बतायी कि मुंबई आने के बाद सबसे पहले डॉ द्विवेदी के ही सीरियल ‘चाण्क्य’ में पहली बार कैमरे के सामने आने का मौका मिला था। डॉ द्विवेदी ने पिछली फिल्म ‘मोहल्ला अस्सी’ के लिए भी मुझे बुलाया था,लेकिन व्यस्तताओं की वह से उसे मैं नहीं कर सका था