दरअसल : आत्मघाती मुस्कान
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-अजय ब्रह्मात्मज इन दिनों लगातार खबरें आ रही हैं कि हालीवुड की फिल्में हिंदी फिल्मों से अच्छा कारोबार कर रही हैं। पत्र-पत्रिकाओं और टीवी चैनलों पर इन खबरों को लिखते और बताते समय यह भाव भी रहता है कि हिंदी फिल्में दर्शकों को आकर्षित नहीं कर पा रही हैं। इन खबरों में सच्चाई है,लेकिन इन्हें जिस अंदाज में परोसा जाता है,उससे यह जाहिर किया जाता है कि हिंदी फिल्मों के दिन लदने वाले हैं। हिंदी दर्शकों के बीच भी हालीवुड की फिल्मों का बाजार बनता जा रहा है। यह कोई नई बात नहीं है। हमारे स्वभाव में है कि हम किसी भी प्रकार के विदेशी प्रभाव से आए परिवर्त्तन को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं। हम हमेशा हीनग्रंथि में रहते हैं। फिलहाल हालीवुड की फिल्मों को इस ग्रंथि से लाभ मिल रहा है। हालीवुड की प्रमुख प्रोडक्शन कंपनियों ने भारत में अपनी दुकानें खोल ली हैं। कुछ तो हिंदी फिल्मों के प्रोडक्शन में भी आ चुकी हैं। हालीवुड और हिंदी फिल्मों की सम्मिलित पैकेजिंग से वे लाभ और नुकसान में संतुलन बिठा लेती हैं। वैसे भी अंग्रेजी में बनी-बनायी फिल्मों को भारत में वितरित कर वे अतिरिक्त कमाई ही करते हैं। अगर हिंदी,तम