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Showing posts from July, 2008

झूठ है दोस्ती का दिखावा और दावा

-अजय ब्रह्मात्मज फिल्म इंडस्ट्री के सितारे हमेशा दोस्ती के दावे करते हैं। सार्वजनिक बातचीत और इंटरव्यू में वे दोस्ती का हवाला देते हैं और घोर विरोधी और प्रतियोगी स्टार की तारीफ भी करते हैं। शायद ही कभी किसी सितारे के मुंह से किसी और सितारे की बुराई निकली हो। यह सब सच दिखने के बावजूद हिंदी फिल्मों की तरह वास्तविक नहीं होता। सब दिखावा है। छल है, मुखौटा है। हाल ही में कैटरीना कैफ के जन्मदिन पार्टी में सलमान खान और शाहरुख खान के बीच हुई तू-तू मैं-मैं राष्ट्रीय खबर बन गई। अलग-अलग कोणों और संबंधित सितारों के दृष्टिकोण से विस्तार में बताया जा रहा है कि उस रात क्या-क्या हुआ? सलमान और शाहरुख के बीच मेल कराने की कोशिश में लगे आमिर खान और संजय दत्त के बारे में भी लिखा जा रहा है। यह भी संकेत दिया जा रहा है कि फिल्म इंडस्ट्री इस मुद्दे को लेकर खेमों में बंट गई है, लोग अपनी-अपनी वफादारी घोषित कर रहे हैं। इस घोषणा की गहराई में जाएं, तो पाएंगे कि सभी अपने स्वार्थ से प्रेरित हैं। कोई मुद्दे की तह में नहीं जाना चाहता! तह में जाने पर खलबली की जानकारी मिलती है। सतह पर सब कुछ स्थिर और शांत नजर आता है। दिखत

बॉक्स ऑफिस:०१.०८.२००८

लुढ़कीं दोनों फिल्में अपूर्व लाखिया की मिशन इस्तांबुल और गणेश आचार्य की मनी है तो हनी है बाक्स आफिस पर लगभग समान गति से लुढ़क गई। दोनों ही फिल्मों को दर्शकों ने नकार दिया। क्या हम मान लें कि लव स्टोरी का ट्रेंड चल रहा है? जाने तू या जाने ना के हिट होने और किस्मत कनेक्शन के अच्छे प्रदर्शन के बाद माना जा सकता है कि सावन के मौसम में दर्शक प्रेम कहानियों में मस्ती ले रहे हैं। एक्शन फिल्म मिशन इस्तांबुल का रोमांच और कॉमेडी फिल्म मनी है तो हनी है की गुदगुदी उन्हें नहीं बांध सकी। उम्मीद की जा रही थी कि मिशन इस्तांबुल को छोटे शहरों और सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों में पर्याप्त दर्शक मिलेंगे। फिल्म देखकर निकले दर्शकों ने दोस्तों और परिचितों से फिल्म देखने की सिफारिश नहीं की। यही हाल मनी है तो हनी है का रहा। गोविंदा सहित छह कलाकारों की मौजूदगी के बावजूद दर्शकों को हंसने के ज्यादा अवसर नहीं मिले। केवल मनोज बाजपेयी इस डूबती साधारण फिल्म में तिनके का सहारा बने रहे। फिल्म के निर्माता कुमार मंगत अवश्य परेशान होंगे कि आधा दर्जन फ्लाप फिल्मों के बाद वे कैसी फिल्मों की प्लानिंग करें। मिशन इस्तांबुल को 30 प्र

बच्चन परिवार का जोश

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अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग पर 'अविस्मरणीय' यात्रा की झलकियाँ दी हैं.चवन्नी के पाठकों के लिए वहीँ से ये तस्वीरें ली गई हैं.

हिन्दी टाकीज:फिल्में देखना जरूरी काम है-रवि शेखर

रवि शेखर देश के जाने-माने फोटोग्राफर हैं.उनकी तस्वीरें कलात्मक और भावपूर्ण होती हैं.उनकी तस्वीरों की अनेक प्रदर्शनियां हो चुकी हैं.इन दिनों वे चित्रकारों पर फिल्में बनाने के साथ ही योग साधना का भी अभ्यास कर रहे हैं.चित्त से प्रसन्न रवि शेखर के हर काम में एक रवानगी नज़र आती है.उन्होंने हिन्दी टाकीज सीरिज में लिखने का आग्रह सहर्ष स्वीकार किया.चवन्नी का आप सभी से आग्रह है की इस सीरिज को आगे बढायें। प्रिय चवन्नी, एसएमएस और ईमेल के इस जमाने में बरसों बाद ये लाइनें सफेद कागज पर लिखने बैठा हूं। संभाल कर रखना। तुमने बनारस के उन दिनों को याद करने की बात की है जब मैं हिंदी सिनेमा के चक्कर में आया था। और मुझे लगता है था कि मैं सब भूल गया हूं। यादों से बचना कहां मुमकिन हो पाता है - चाहे भले आपके पास समय का अभाव सा हो। सन् 1974 की गर्मियों के दिन थे। जब दसवीं का इम्तहान दे कर हम खाली हुए थे। तभी से हिंदी सिनेमा का प्रेम बैठ चुका था। राजेश खन्ना का जमाना था। परीक्षा के बीच में उन दिनों फिल्में देखना आम नहीं था। तभी हमने बनारस के 'साजन' सिनेमा हाल में 'आ

ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से-महेश भट्ट

संबंधों में मिले विश्वासघात का जख्म बडा गहरा होता है और वह शायद कभी नहीं भरता। अपनी आत्मकथा पर आधारित फिल्म वो लमहे के दौरान अपने अस्तव्यस्त अतीत के भंवर में फिर से डूबने-उतराने और टाइम मैगजीन के कवर पर छपी परवीन बॉबी के साथ अपने खत्म हो चुके संबंधों को याद करते हुए मैंने उन जख्मों को फिर से एक बार देखा। खतरनाक तरीके से जीने के उन दिनों में हम लोग जोनाथन लिविंग स्टोन सीगल को पढते थे, जॉन लेनन को सुनते थे और मुक्त प्रेम की बातें करते थे। मैं परवीन बॉबी के साथ रहता था और रजनीश का शिष्य भी था, उनके संप्रदाय का संन्यासी। स्वच्छंद प्रेम में ईष्या के बीज हम मर्जी से उनके संप्रदाय में शामिल हुए थे। हमें बताया गया था कि स्वच्छंद जीवन जीने से ही प्रबोधन होता है। हम इस भ्रम में जीते थे कि नशे की आड लेकर और उन्मुक्त संबंध निभाकर निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है, समाधि की स्थिति प्राप्त की जा सकती है। हर बंधन से मुक्ति मिल जाती है। ऐसी ही कई बातें हम सोचा करते थे..। एक शाम मैं साधना में लीन था, तभी एक ब्लैंक कॉल आया। दूसरी तरफ की चुप्पी ने सब कुछ कह दिया। मैं समझ गया कि फोन पर वही मशहूर फिल्म स्टार

फ़िल्म समीक्षा:मिशन इस्तांबुल

-अजय ब्रह्मात्मज अपूर्व लाखिया ने मिशन इस्तांबुल में टेररिज्म के संदर्भ में एक्शन-थ्रिलर की कल्पना की है। यह फिल्म टेररिज्म पर नहीं है। हिंदी में बनी एक्शन फिल्मों में हम ऐसी चुनौतियों की कहानी देखते रहे हैं। नयापन यही है कि तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में घटनाएं घटती हैं और उसमें भारत से गया टीवी जर्नलिस्ट विकास सागर शामिल है। दूसरी फिल्मों की तरह इस फिल्म में भी लाजिक वगैरह न खोजें। बस एक्शन के रोमांच का अनुभव करें। विकास सागर देश के तेज-तर्रार और एक लोकप्रिय चैनल के स्टार रिपोर्टर हैं। वह एंकरिंग भी कर लेते हंै। अपने काम में मशगूल रहने के कारण विकास बीवी अंजलि को ज्यादा समय नहीं दे पाते। बीवी भी जर्नलिस्ट है, लेकिन वह इसी वजह से तलाक लेना चाहती है। मालूम नहीं, हमारे फिल्मकार कामकाजी दंपतियों के बीच तालमेल बिठाना कब सीखेंगे? बहरहाल, विकास तुर्की के अल जोहरा चैनल का आफर स्वीकार करता है और इस्तांबुल पहुंच जाता है। वहां उसकी मुलाकात गजनी और अल ओवाइस से होती है। टेररिज्म की गतिविधियों के कवरेज के दौरान उसे अपने चैनल के कार्याकलाप पर शक होता है। उसके शक को रिजवान खान पुख्ता कर देता है। वह

हानि हमारे महाभारत की

-अजय ब्रह्मात्मज चैनल 9 एक्स पर कहानी हमारे महाभारत की आरंभ हुआ है। इस धारावाहिक को हम लेखक, निर्देशक या शोधकर्ता के नाम से नहीं पहचान रहे हैं, बल्कि इसे एकता कपूर का धारावाहिक कहा जा रहा है। एकता की प्रोडक्शन कंपनी विभिन्न चैनलों के लिए दर्जन से अधिक धारावाहिकों का निर्माण करती है। यह भी उनमें से ही एक धारावाहिक बन चुका है। इसकी दो हफ्तों की कडि़यां देख चुके दर्शकों को भारी निराशा हुई है। उनका मानना है कि यह कहानी नहीं, बल्कि हानि हमारे महाभारत की है! दूरदर्शन के दिनों में धारावाहिक उनके निर्देशकों के नाम से जाने जाते थे। उन दिनों निर्देशक ही निर्माता होते थे या यों कहें कि निर्माता-निर्देशक भी होते थे। रामानंद सागर, बी.आर. चोपड़ा, संजय खान और डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी के धारावाहिकों की सोच, दिशा और क्वालिटी पर उनकी व्यक्तिगत प्रतिभा की छाप थी। वे सभी निर्देशक होने के साथ ही विचार-संपन्न व्यक्ति भी थे, जिनकी धारावाहिकों की भूमिका और प्रभाव को लेकर एक सुनिश्चित सोच थी। एकता कपूर महज एक निर्माता हैं। सच तो यह है कि एक मेकर या निर्देशक के रूप में उनकी कोई पहचान नहीं है। उन्हें इस धारावाहि

बॉक्स ऑफिस:२५.०७.२००८

औसत व्यापार करेगी किस्मत कनेक्शन सिनेमाघरो में भीड़ बनी हुई है। यह भीड़ मुख्य रूप से जाने तू या जाने ना के लिए है। आमिर खान ने इस फिल्म में एक नया गाना भी जोड़ दिया है। कहा जा रहा है कि किशोर और युवा दर्शक उस गाने के लिए फिर से जाने तू.... देख रहे हैं। मुंबई और दूसरे शहरों के सिनेमाघरों में जाने तू.... के स्टार्स ने अपनी मौजूदगी से दर्शकों के बीच नई उत्तेजना पैदा कर दी है। पिछले हफ्ते रिलीज फिल्मों में किस्मत कनेक्शन की ओपनिंग अच्छी रही। शाहिद कपूर-विद्या बालन की इस फिल्म पर दर्शकों की मिश्रित प्रतिक्रिया है। किस्मत कनेक्शन को जाने तू.... की सफलता का फायदा मिला है। सिनेमाघरों में पहुंचे दर्शक इसे भी देख रहे हैं। हालांकि सोमवार से थोड़ी गिरावट आई है, लेकिन माना जा रहा है कि किस्मत कनेक्शन औसत व्यापार कर लेगी। पीवीआर को अपनी तीसरी फिल्म कांट्रैक्ट से जबरदस्त झटका लगा है। आमिर खान प्रोडक्शन के साथ आई उनकी तारे जमीन पर और जाने तू... ने अच्छा बिजनेस किया। तीसरी फिल्म राम गोपाल वर्मा की कांट्रैक्ट दर्शकों को अपनी तरफ नहीं खींच सकी। रामू की अंडरव‌र्ल्ड की फिल्मों की सफलता की संभावना फिलहाल नह

बिग बक बन्नी

चवन्नी को बिग बक बन्नी का यह संक्षिप्त परिचय रवि रतलामी से प्राप्त हुआ। तीन घंटों की हिन्दी फ़िल्में क्या आपको बोर नहीं करतीं? आम अंग्रेज़ी फ़िल्में भी डेढ़-दो घंटे से कम नहीं होतीं. आमतौर पर किसी भी फ़िल्म में एक छोटी सी कथा होती है - बुराई पर अच्छाई की जीत. इसे कहने के लिए, इसी बात को बताने के लिए दर्शकों पर लगातार डेढ़ से तीन घंटे अत्याचार करना कितना सही है? कोई फ़िल्म कितना ही अच्छा बन जाए, गीत संगीत, दृश्य और भावप्रण अभिनय से सज जाए, परंतु फ़िल्म की लंबाई दर्शकों को पहलू बदलने को, बीच-बीच में जम्हाई लेने को मजबूर कर ही देती है. ऐसे में, एक घिसी पिटी कहानी पर बनाई गई एक छोटी सी त्रिआयामी एनीमेशन फिल्म – बिग बक बन्नी देखना कई मामलों में सुकून दायक है. वैसे यह फिल्म कई मामलों में बेजोड़ भी है. इसे ब्लेंडर नाम के एक मुफ़्त स्रोत अनुप्रयोग की सहायता से तैयार किया गया है. इस फिल्म को क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेंस के तहत जारी किया गया है जिसे हर कोई मुफ़्त में देख सकता है व लोगों में वितरित कर सकता है. यानी आपको इसे देखने के लिए इसे खरीदने की आवश्यकता नहीं. फ़िल्म का तकनीकी पक्ष तो शानदार ह

इस साल मैं काफी व्यस्त हूं-शाहिद कपूर

-अजय ब्रह्मात्मज फिल्म जब वी मेट की कामयाबी के बाद शाहिद कपूर चर्चा में आ गए। इन दिनों वे न केवल विद्या बालन और सानिया मिर्जा, बल्कि फिल्म किस्मत कनेक्शन को लेकर भी चर्चा में हैं। प्रस्तुत हैं शाहिद कपूर से हुई बातचीत के अंश.. फिल्म किस्मत कनेक्शन से क्या उम्मीदें हैं? फिलहाल मैं खुश हूं। मैंने फिल्म देखी है और मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि हम लोगों ने जिस रूप में इस फिल्म के बारे में सोचा था, फिल्म बिल्कुल वैसी ही बनी है। इस खुशी के साथ दर्शकों के रिऐक्शन के बारे में जानने की उत्सुकता है। अंतिम फैसला तो वही करेंगे! यह फिल्म रोमांटिक कॉमेडी है। उम्मीद है, लोग फिल्म को पसंद करेंगे। अजीज मिर्जा के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा? शुरू में थोड़ी उलझन थी। हालांकि मुझे यही लगता था कि मैं 27 साल का हूं और अजीज अंकल साठ से ज्यादा के हैं। हमारा कनेक्शन मालूम नहीं कैसा होगा! लेकिन मैं चकित हुआ कि वे इंडस्ट्री के युवा निर्देशकों से ज्यादा रिलैक्स और यंग हैं। दरअसल, अजीज अंकल ऐक्टर के प्रिय डायरेक्टर हैं। क्या खासियत है इस फिल्म में? अजीज अंकल की फिल्मों की यही खूबी है कि वे सच्चाई के आसपास हो

वो काग़ज़ की कश्‍ती, वो बारिश का पानी-अविनाश

समझौते,सुविधाओं और संपर्कों की बूंदाबांदी के इस दौर में ज्यादातर लोग भीग रहे हैं.कुछ ही लोग हैं,जिनके पास विचारों का छाता या सोच की बरसाती है.इस बेईमान मौसम में ख़ुद को संभाले रखना भी एक लड़ाई है.अविनाश हमारे बीच सधे क़दमों से बेखौफ आगे बढ़ रहे हैं.चवन्नी ने ऐसा उत्साह विरले व्यक्तियों में देखा है,जो आपकी हर योजना के प्रति सकारात्मक राय रखे और यथासंभव सहयोग और साथ के लिए तैयार रहे.चवन्नी ने सिनेमा को लेकर कुछ अलग किस्म के लेखों के बारे में सोचा और दोस्तों से ज़िक्र किया.सबसे पहला लेख अविनाश ने भेजा.चवन्नी उसे यहाँ प्रकाशित कर रहा है.इच्छा है कि इस सीरिज़ के अंतर्गत हम सिनेमा से निजी संबंधों को समझें और उन अनुभवों को बांटे ,जिनसे हमें सिने संस्कार मिला.चवन्नी का आग्रह होगा कि आप भी अपने अनुभव भेजें.इसे फिलहाल हिन्दी टाकीज नाम दिया जा रहा है। वो काग़ज़ की कश्‍ती, वो बारिश का पानी अविनाश नौजवानी में एक अजीब सी गुन-धुन होती है। आप आवारा हैं और मां-बाप का आप पर बस नहीं, तो आप या तो कुछ नहीं बनना चाहते या सब कुछ बन जाना चाहते हैं। जैसे एक वक्त था, जब मुझे लगता था कि मैं भारतीय सिनेमा का एक ज़र

मेरी बीवी का जवाब नहीं: अभिषेक बच्चन

-अजय ब्रह्मात्मज वे भारत ही नहीं, एशिया के सर्वाधिक ग्लैमरस परिवार के युवा सदस्य हैं, लेकिन घर जाने से पहले अभिषेक बच्चन शूटिंग स्पॉट के मेकअप रूम में पैनकेक की परतों के साथ ही अपनी हाई-फाई प्रोफाइल भी उतार आते हैं। ऐश्वर्या राय के साथ उनकी शादी का कार्ड पाना पूरे मुल्क की हसरत थी, तो अब देश इस इंतजार में है कि उनके आंगन में बच्चे की किलकारी कब गूंजेगी? एक लंबी बातचीत में जूनियर बच्चन ने खोला अपनी निजी जिंदगी के कई पन्नों को- ऐश्वर्या राय में ऐसी क्या खास बात है कि आपने उनसे शादी की? वह मेरी सबसे अच्छी दोस्त थीं। वह ऐसी हैं, जिनके साथ मैं अपनी जिंदगी गुजार सकता हूं। वह ऐसी हैं, जो सिर्फ मेरी ही चिंता नहीं करतीं, बल्कि पूरे परिवार का ख्याल रखती हैं। वह जैसी इंसान हैं, उनके बारे में कुछ भी कहना कम होगा। वह अत्यंत दयालु और सुंदर हैं। बचपन से मुझे मां-पिताजी ने यही शिक्षा दी कि जिंदगी का उद्देश्य बेहतर इंसान बनना होना चाहिए। ऐश्वर्या वाकई बेहतर इंसान हैं। शादी के बाद आपका जीवन कितना बदला है? फर्क यह आया है कि परिवार में अब एक नया सदस्य आ गया है। शादी के बाद सभी का जीवन बदलता है, जिम्मेदारी

मीलों तक फैली हुई है तनहाई: महेश भट्ट

चवन्नी को अजय ब्रह्मात्मज के सौजन्य से महेश भट्ट के कुछ लेख मिले हैं,इन लेखों में उन्होंने एहसास की बात की है.अपने जीवन और फिल्मों के आधार पर लिखे इन लेखों में महेश भट्ट पूरे संजीदगी और ईमानदारी से ख़ुद को अभिव्यक्त किया है. अकेलापन, तनहाई..नाम कोई भी हो, लेकिन यह अद्भुत एहसास हमें हमेशा खुद से जोडे रहता है, दुनिया की भीड में एकाकीपन का आनंद ही अलग है। मशहूर कवि रिल्के ने कहा था कि अवसाद और अकेलापन रचनात्मकता को जन्म देता है। यही हमें सृजन की दुनिया में ले जाता है..। जब से मैंने खुद को जाना, तनहाई ही मेरी बहन और भाई है। तनहाई के गर्भ में समाने के बाद ही मैंने जाना कि इंसान के दिल में अकेलेपन का कितना बडा खजाना छिपा है..। इस तनहाई ने ही श्रव्य और दृश्य माध्यम से कहानी सुनाने की मेरी योग्यता को छीला और आकार दिया है। बस एक पल लगता है गुब्बारे के धागे को हाथ से छूटने में सिर्फ एक पल लगता है। हाथ बढा कर धागा फिर से पकड लिया तो ठीक गुब्बारा फिर से बच्चों का खिलौना बन जाता है, वर्ना एक बार दरवाजे से बाहर निकल गया और उसमें गैस भरी हो तो वह ऊपर ही चढता जाता है। हालांकि जमीन पर छूट गए बच्चे गुब्

फ़िल्म समीक्षा:किस्मत कनेक्शन

लव स्टोरी में सोशल कंसर्न -अजय ब्रह्मात्मज हम आप खुश हो सकते हैं कि जाने तू या जाने ना जैसी मनोरंजक फिल्म की रिलीज के एक पखवारे के भीतर ही एक और मनोरंजक फिल्म किस्मत कनेक्शन आई है। हालांकि यह भी लव स्टोरी है, लेकिन इसमें अजीज मिर्जा का टच है। किस्मत कनेक्शन टोरंटो के बैकड्राप में बनी भारतीय इमोशन की प्रेम कहानी है, जिसमें कुछ घटनाएं और स्थितियां नई हैं। अजीज मिर्जा की खासियत है कि उनकी फिल्में हकीकत के करीब लगती हैं। उनकी फिल्मों में यथार्थ का पुट रहता है। समानता, बराबरी, मानव अधिकार और वंचितों के अधिकार की बातें रहती हैं। लेकिन, यह सब कहानी का मुख्य कंसर्न नहीं होता। इसी फिल्म को लें। प्रतिभाशाली छात्र राज मल्होत्रा पढ़ाई पूरी करने के बाद बेरोजगार है। भविष्य बताने वाली हसीना बानो जान उसे समझाती है कि वह अपना लकी चार्म खोजे और उसे अपने साथ रखे तो उसके सारे काम हो जाएंगे। राज मल्होत्रा की प्रिया से मीठी भिड़ंत होती रहती है। चंद भिड़ंतों के बाद राज को एहसास होता है कि प्रिया उसकी लकी चार्म है। दोनों में दोस्ती होती है और फिर दोस्ती प्यार में बदल जाती है..। जरा ठहरें, इतना सिंपल अंत नहीं

फ़िल्म समीक्षा:कांट्रेक्ट

फिर असफल रहे रामू बारीक स्तर पर कांट्रैक्ट के दृश्यों के बीच उभरते भाव और निर्देशक की सोच को जोड़ने की कोशिश करें तो यह फिल्म कथित स्टेट टेरेरिज्म का चित्रण करती है। राम गोपाल वर्मा ने विषय तो रखा है अंडरव‌र्ल्ड और आतंकवाद के बीच गठबंधन का, लेकिन उनकी यह फिल्म एक स्तर पर राजसत्ता की जवाबी रणनीति का संकेत देती है। आतंकवादी संगठन जिस तरह किसी शोषित या पीडि़त को गुमराह कर आतंकी बना देते हैं, लगभग उसी तरह पुलिस और प्रशासन भी अपने गुर्गे तैयार करता है। कांट्रैक्ट देख कर तो ऐसा ही लगता है। रामू अपनी फिल्मों में मुख्य रूप से चरित्रों से खेलते हैं। अगर रंगीला और सत्या की तरह चरित्र सटीक हो जाएं तो फिल्में सफल हो जाती हैं। चरित्रों के परिवेश, पृष्ठभूमि और परिप्रेक्ष्य में वे गहरे नहीं उतरते। देश की सामाजिक स्थितियों की समझदारी नहीं होने के कारण यह उनकी सीमा बन गई है। कांट्रैक्ट में यह सीमा साफ नजर आती है। सेना के रिटायर अधिकारी अमन (अद्विक महाजन) को पुलिस अधिकारी अहमद हुसैन आतंकवादियों से निबटने के लिए अंडरव‌र्ल्ड में घुसने के लिए प्रेरित करता है। पहली मुलाकात में ऐसे मिशन में शामिल होने से साफ

गुरुदत्त पर एक किताब

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-अजय ब्रह्मात्मज नौ जुलाई को गुरुदत्त का जन्मदिन था। उनकी आकस्मिक मौत हो गई थी 1964 में। हिंदी फिल्मों के इतिहास में गुरुदत्त का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ इसलिए भी लिया जाता है, क्योंकि उनकी फिल्में प्यासा और कागज के फूल की गणना क्लासिक फिल्मों में होती है। वैसे, उनकी अन्य फिल्मों का भी अपना महत्व है। युवा फिल्मकार श्रीराम राघवन उनकी थ्रिलर फिल्मों से बहुत प्रभावित हैं, तो संजय लीला भंसाली को गुरुदत्त का अवसाद पसंद है। माना जाता है कि गानों के पिक्चराइजेशन में गुरुदत्त सिद्धहस्त थे। इतनी सारी खूबियों के धनी गुरुदत्त निजी जिंदगी में एकाकी और दुखी रहे। दरअसल, पत्नी गीता दत्त से उनकी नहीं निभी। वहीदा रहमान के प्रति अपने प्यार को वे कोई परिणति नहीं दे सके। उनके जीवन के इन पहलुओं पर कम लिखा गया है। कायदे से उनकी फिल्मों की विशेषताओं पर भी पर्याप्त चर्चा हिंदी फिल्मों के दर्शकों के बीच नहीं मिलती है। हमने मान लिया है कि वे महान फिल्मकार थे। हमने उनकी मूर्ति बना दी है और लेखों, बयानों और टिप्पणियों में उनका नामोल्लेख कर ही इस फिल्मकार को दर्शकों से जोड़ने की कोशिश की इतिश्री समझ लेते हैं।

बॉक्स ऑफिस:२५.०७.२००८

बाक्स आफिस पर थोड़ी हलचल दिखी पिछले हफ्ते रिलीज हुई महबूबा और खेला को दर्शक नहीं मिले। महबूबा आठ साल बासी फिल्म थी। इस फिल्म के हीरो संजय दत्त और अजय देवगन का लुक भी बदल चुका है। मनीषा कोइराला तो अब पेरिस में घर बसाने का सोच रही हैं। पुराने लुक के स्टार आज के दर्शकों को बिल्कुल पसंद नहीं आए। अफजल खान की महबूबा दर्शकों को नहीं रिझा सकी। रितुपर्णो घोष की बांग्ला फिल्म खेला हिंदी में डब की गई थी। स्त्री-पुरुष संबंध की ऐसी संवदेनशील फिल्मों के सीमित दर्शक होते हैं। खेला से उम्मीद भी नहीं थी कि उसके लिए दर्शकों की भीड़ उमड़ेगी। पहले की फिल्मों में लव स्टोरी 2050 के दर्शक नहीं बढ़े। फिल्म के प्रति समीक्षकों और आम दर्शकों की प्रतिक्रिया लगभग एक सी होने के कारण इस फिल्म का आरंभिक उफान पहले ही हफ्ते में उतर गया। हैरी बावेजा इस महत्वाकांक्षी फिल्म में असफल रहे। दूसरी तरफ जाने तू या जाने ना तेजी से बड़ी हिट होने की तरफ बढ़ रही है। माना जा रहा है कि वह इस साल की अभी तक सबसे बड़ी हिट हो जाएगी। महानगरों, प्रादेशिक राजधनियों, शहरों और छोटे शहरों तक में इस फिल्म को दर्शक मिल रहे हैं। लंबे समय बाद बाक्

५२ प्रतिशत ने 'कहानी हमारे महाभारत की' को बहुत बुरा माना

अभी पिछले दिनों एकता कपूर के महाभारत का प्रसारण आरम्भ हुआ है.फिलहाल इस पर कोई टिप्पणी नहीं करते हुए चवन्नी उस सर्वेक्षण के नतीजे यहाँ दे रहा है,जो इसी पृष्ठ पर देखे जा सकते हैं। चवन्नी ने पाँच विकल्प दिए थे। बहुत अच्छा है,अच्छा है ,बुरा है ,बहुत बुरा है और ठीक है। आश्चर्य है की किसी ने भी इसे अच्छ है नही माना। बहुत अच्छा मानने वाले २६ पतिशत रहे तो बहुत बुरा मानने वालों का प्रतशत उनसे दोगुना ५२ प्रतिशत रहा। ठीक है और बुरा है मानने वालों का प्रतिशत बराबर रहा.दोनों ही विकल्पों में १०-१० प्रतिशत मत पड़े। अब आप की बारी है.आप बताएं कि यह धारावाहिक आप को कैसा लगा?

कुछ तस्वीरें बहामास से

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कुछ तस्वीरें बहामास से ... पिछले दिनों संजय दत्त और अक्षय कुमार वहां एंथानी डिसूजा की फिल्म ब्लू की शूटिंग कर रहे थे.बहामास क्यूबा और अमेरिका के बीच द्वीपों का देश है.कहते हैं यहां सात हजार द्वीप हैं.ब्लू की शूटिंग बहामास के लिए बड़ी घटना रही.वहां के फिल्म कमिश्नर भी हमारी हिंदी फिल्मों के स्टारों से मिलने आए.आप स्वयं वहां की खूबसूरती देखें.

फ़िल्म समीक्षा:खेला

तनाव का पाजिटिव अंत -अजय ब्रह्मात्मज रितुपर्णो घोष की खेला संवेदना और विषय के आधार पर हिंदी साहित्य में नई कहानी के दौर की याद दिलाती है। स्त्री-पुरुष संबंधों में निहित द्वंद्व और पार्थक्य को देश के साहित्यकारों और फिल्मकारों ने अलग-अलग नजरिए से चित्रित किया है। रितुपर्णो घोष स्त्री-पुरुष संबंध के तनाव को इस फिल्म में नया अंत देते हैं। खेला राजा और शीला की कहानी है। राजा फिल्ममेकर है। वह अपनी फिल्म के लिए किसी प्रकार का समझौता नहीं करना चाहता। राजा फिल्म बनाने के सपने में इस कदर लिप्त और व्यस्त रहता है कि वह शीला के लिए पर्याप्त समय नहीं निकाल पाता। शीला की सोच गृहिणी की है। वह राजा को गृहस्थी की चिंताओं में भी देखना चाहती है। स्थिति यह आती है कि दोनों अलग हो जाते हैं। राजा अपनी फिल्म में डूब जाता है। उधर शीला अपने एकाकीपन से त्रस्त होकर राजा के पास अलगाव के कागजात भिजवा देती है। रितुपर्णो घोष ने ऐसे विषयों पर 15-20 साल पहले बन रही फिल्मों की तरह कथित नारीवाद का नारा नहीं लगाया है और न पुरुष को उसके सपनों के लिए दुत्कारा है। फिल्म के अंत में राजा और शीला एक साथ रहने का फैसला करते हैं औ

फ़िल्म सामीक्षा : महबूबा

पुराना रोमांस और त्याग -अजय ब्रह्मात्मज अफजल खान की फिल्म महबूबा शैली, शिल्प, विषय और प्रस्तुति- हर लिहाज से पुरानी लगती है। और है भी। हालांकि फिल्म के हीरो संजय दत्त और अजय देवगन आज भी पापुलर हैं, लेकिन उनकी आठ साल पुरानी छवि कहीं न कहीं दर्शकों को खटकेगी। फिल्म की हीरोइन मनीषा कोईराला आज के दर्शकों के मानस से निकल चुकी हैं। पापुलर किस्म की फिल्मों के लिए उनका टटका होना जरूरी है। फिल्म बासी हो चुकी हो तो उसका आनंद कम हो जाता है। फिल्म की कहानी वर्षा उर्फ पायल (मनीषा कोईराला) पर केंद्रित है। उसके जीवन में श्रवण धारीवाल (संजय दत्त) और करण (अजय देवगन) आते हैं। संयोग है कि श्रवण और करण भाई हैं। ऐसी फिल्मों में अगर हीरोइन के दो दीवाने हों तो एक को त्याग करना पड़ता है या उसकी बलि चढ़ जाती है। महबूबा में भी यही होता है। यहां बताना उचित नहीं होगा कि मनीषा के लिए संजय दत्त बचते हैं या अजय देवगन। महबूबा भव्य, महंगी और बड़ी फिल्म है। फिल्म के बाहरी तामझाम और दिखावे पर जो खर्च किया गया है, उसका छोटा हिस्सा भी अगर कथा-पटकथा पर खर्च किया गया होता तो फिल्म मनोरंजक हो जाती। चूंकि फिल्म का विषय और शिल

हीरोइनों की बढ़ती फीस

-अजय ब्रह्मात्मज कहा यह जा रहा है कि करीना कपूर और ऐश्वर्या राय ने अपनी लोकप्रियता के आधार पर फिल्म निर्माताओं और ऐड फिल्म एजेंसियों से अपनी फीस बढ़वाने में सफलता हासिल की है। फिलहाल इन दोनों हीरोइनों को फिल्म और ऐड व‌र्ल्ड से सबसे ज्यादा पैसे मिल रहे हैं। हालांकि उन्हें फीस में मिल रही रकम पॉपुलर पुरुष स्टारों से कम ही है, लेकिन इधर उस रकम में गुनात्मक इजाफा भी हुआ है। अगर खबरों पर यकीन करें, तो करीना ने हाल ही में एक ऐड के लिए पांच करोड़ रुपये लिए, तो ऐश्वर्या को रोबोट के लिए सात करोड़ से ज्यादा रुपये मिले। वैसे, वास्तविक रकम क्या मिली या क्या मिल रही है, इसे न तो ऐक्टर बताते हैं और न ही ऐक्ट्रेस। कहते हैं कि फिल्म जब वी मेट की जबर्दस्त कामयाबी ने करीना को पूरी तरह से कॉन्फिडेंस दिया। दरअसल, उनकी समझ में यह आया कि अगर वे मेहनत करें और स्क्रिप्ट पर ध्यान देने केसाथ डायरेक्टर को तरजीह दें, तो सिर्फ अपने कंधों पर ही फिल्म खींच सकती हैं। हालांकि जब वी मेट में शाहिद कपूर भी थे, लेकिन फिल्म पूरी तरह से करीना की ही फिल्म थी। सच तो यह है कि उन्होंने इस फिल्म में दर्शकों के साथ जो रिश्ता कायम

पहली छमाही नहीं मिली वाहवाही

-अजय ब्रह्मात्मज पहली छमाही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए तबाही लेकर आई है। आश्चर्य की बात तो यह है कि और साल की तुलना में इस साल की पहली छमाही में फिल्मी कारोबार एकदम ठंडा रहा। पिछले साल की बात करें, तो छह महीने में 49 फिल्में रिलीज हुई थीं, लेकिन इस साल फिल्मों की संख्या घटकर 41 हो गई है और यदि यही स्थिति रही, तो सैकड़ों की संख्या में हिंदी फिल्में बनने का ब्यौरा अब केवल इतिहास की किताबों में मिलेगा! इन 41 फिल्मों में से हम चार ऐसी फिल्में भी नहीं बता सकते, जिन्होंने अच्छा कारोबार किया हो। फिल्में सिनेमाघरों में टिकने का नाम ही नहीं ले रही हैं। वजह मात्र यही है कि दर्शकों को ये फिल्में भा नहीं रही हैं। रेस और जन्नत ने बचाई इज्जत हालांकि पहली छमाही में ही नौ नए डायरेक्टर और उतने ही नए ऐक्टर फिल्मों में आए। आमिर, समर 2007 और भूतनाथ लीक से हटकर बनी फिल्में थीं। उनकी प्रशंसा जरूर हुई, लेकिन दर्शकों ने उन्हें खारिज भी कर दिया। दर्शकों की पसंद और फिल्मों के चलने की बात करें, तो अब्बास-मस्तान की रेस और नए डायरेक्टर कुणाल देशमुख की जन्नत ने ही फिल्म इंडस्ट्री की इज्जत रखी। इन दोनों ने अच्छा ब

बॉक्स ऑफिस:११.०७.२००८

हिट हो गई है जाने तू या जाने ना एक लंबे अंतराल के बाद बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों की भीड़ दिख रही है। टिकट नहीं मिल पाने के कारण दर्शक एक मल्टीप्लेक्स से दूसरे मल्टीप्लेक्स भाग रहे हैं। किसी भी निर्माता के लिए इससे बड़ी खुशी नहीं हो सकती कि उसकी फिल्म को देखने भीड़ उमड़ पड़ी हो। आमिर खान की यह लगातार तीसरी हिट है। उनके होम प्रोडक्शन से आई लगान और तारे जमीन पर के बाद जाने तू या जाने ना की सफलता से ट्रेड सर्किल यकीन करने लगा है कि आमिर खान दर्शकों की रुचि समझते हैं। जाने तू या जाने ना के दर्शकों में लगातार इजाफा हो रहा है। मुख्य रूप से किशोर और युवा दर्शकों के बीच यह फिल्म पसंद की जा रही है। फिल्म में दोस्ती और प्यार का सरल एवं आधुनिकअंदाज उन्हें अपने अनुकूल और आसपास का लग रहा है। यही कारण है कि कॉलेज के नए सत्र आरंभ होते ही नए दोस्तों का झुंड सिनेमाघरों की ओर रूख कर रहा है। जाने तू या जाने ना के साथ रिलीज हुई लव स्टोरी 2050 को दर्शकों ने नापसंद कर दिया है। उन्हें न तो इस फिल्म की लव स्टोरी पसंद आई और न 2050 का चित्रण। हालांकि फिल्म के निर्देशक हैरी बवेजा बयान दे रहे हैं कि उनकी फिल्म को नुकसा

जाने तू.. देखकर सभी को मजा आएगा: अब्बास टायरवाला

अब्बास टायरवाला ने निर्देशन से पहले फिल्मों के लिए गीत और स्क्रिप्ट लिखे। लगातार लेखन के बाद एक दौर ऐसा भी आया, जब उन्हें न ही कुछ सूझ रहा था और न कुछ नया लिखने की प्रेरणा ही मिल पा रही थी! इसी दौर में उन्होंने निर्देशन में उतरने का फैसला किया और अपनी भावनाओं को जानू तू या जाने ना का रूप दिया। यह फिल्म चार जुलाई को रिलीज हो रही है। बातचीत अब्बास टायरवाला से.. जाने तू या जाने ना नाम सुनते ही एक गीत की याद आती है। क्या उस गीत से प्रेरित है यह फिल्म? बिल्कुल है। यह मेरा प्रिय गीत है। गौर करें, तो पाएंगे कि इतने साल बाद भी इस गीत का आकर्षण कम नहीं हुआ है। पुराने गीतों की बात ही निराली है। इन दिनों एक फैशन भी चला है। नई फिल्मों के शीर्षक के लिए किसी पुराने गीत के बोल उठा लेते हैं। फिल्म की थीम के बारे में जब मुझे पता चला कि प्यार है, तो इसके लिए मुझे जाने तू या जाने ना बोल अच्छे लगे। इस गीत में खुशी का अहसास है, क्योंकि यह लोगों को उत्साह देता है। मैंने इसी तरह की फिल्म बनाने की कोशिश की है। कोशिश है कि फिल्म लोगों को खुशी दे। जाने तू या जाने ना के किरदार इसी दुनिया के हैं या आजकल की फिल्मो

हरमन बवेजा बनाम इमरान खान

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पिछली चार जुलाई को हरनाम बवेजा ने 'लव स्टोरी २०५०' और इमरान खान ने 'जाने तू या जाने ना' से अपनी मौजूदगी दर्शकों के बीच दर्ज की.अभी से यह भविष्यवाणी करना उचित नहीं होगा कि दोनों में कौन आगे जायेगा ?पहली फ़िल्म के आधार पर बात करें तो इमरान की फ़िल्म'जाने तू...'की कामयाबी सुनिशिचित हो गई है.'लव स्टोरी...' के बारे में यही बात नहीं कही जा सकती.हालाँकि चार जुलाई के पहले हरमन की फ़िल्म की ज्यादा चर्चा थी और इमरान की फ़िल्म छोटी मानी जा रही थी.वैसे भी हरमन की फ़िल्म ५० करोड़ में बनी है,जबकि इमरान की फ़िल्म की लगत महज १० करोड़ है। चवन्नी को इसका अंदेशा था.सबूत है इसी ब्लॉग पर किया गया जनमत संग्रह.चवन्नी ने पूछा था की पहले किसकी फ़िल्म देखेंगे? २५ लोगों ने इस जनमत संग्रह में भाग लिया था,जिनमें से १७ ने इमरान की फ़िल्म पहले देखने की राय दी थी,बाकी ८ ने हरमन के पक्ष में मत दिए.चवन्नी को तभी समझ जाना चाहिए था कि दोनों फिल्मों के क्या नतीजे आने जा रहे हैं.चवन्नी ने एक पोस्ट के बारे में सोचा भी था। हरमन और इमरान को मीडिया आमने-सामने पेश कर रहा है.मुमकिन है कि कुछ दिन

फ़िल्म समीक्षा:लव स्टोरी २०५०

न साइंस है और न फिक्शन -अजय ब्रह्मात्मज हैरी बवेजा की लव स्टोरी 2050 से उम्मीद थी कि हिंदी फिल्मों को एक छलांग मिलेगी। इस फिल्म ने छलांग जरूर लगाई, लेकिन पर्याप्त शक्ति नहीं होने के कारण औंधे मुंह गिरी। अफसोस ही है कि इतनी महंगी फिल्म का यह हाल हुआ। लव स्टोरी 2050 बुरी फिल्म बनाने की महंगी कोशिश है। फिल्म दो हिस्सों में बंटी है। इंटरवल के पहले सारे किरदार आस्ट्रेलिया में रहते हैं और जैसा कि होता आया है, वे सभी हिंदी बोलते हैं। उनके आसपास स्थानीय लोग नहीं रहते। पड़ोसियों के सिर्फ घर दिखते हैं। हां, हीरो-हीरोइन डांस करने लगें तो कुछ लोग साथ में नाचने लगते हैं और अगर उन्हें पैसे नहीं मिले हों तो वे औचक भाव से घूरते हैं, जैसे कि बंदर और मदारी को देखकर हमारा कौतूहल जाग जाता है। इंटरवल के बाद कहानी सन् 2050 की मुंबई में आ जाती है। आकाश में इतनी कारें और अन्य सवारियां उड़ती दिखाई पड़ती हैं... क्या 2050 में पतंगें सड़कों पर दौड़ेंगी और पक्षी पिंजड़ों में बंद हो जाएंगे? फिल्म में एक अजीब सी तितली है, जो 2008 के आस्ट्रेलिया में नाचती हुई आकर हथेली पर बैठ जाती है और सन् 2050 में भी हीरो-हीरोइन की

फ़िल्म समीक्षा:जाने तू या जाने ना

कुछ नया नहीं, फिर भी नॉवल्टी है -अजय ब्रह्मात्मज रियलिस्टिक अंदाज में बनी एंटरटेनिंग फिल्म है जाने तू या जाने ना। एक ऐसी प्रेम कहानी जो हमारे गली-मोहल्लों और बिल्डिंगों में आए दिन सुनाई पड़ती है। जाने तू... की संरचना देखें। इस फिल्म से एक भी किरदार को आप खिसका नहीं सकते। कहानी का ऐसा पुष्ट ताना-बाना है कि एक सूत भी इधर से उधर नहीं किया जा सकता। सबसे पहले अब्बास टायरवाला लेखक के तौर पर बधाई के पात्र हैं। एयरपोर्ट पर ग्रुप के सबसे प्रिय दोस्तों की अगवानी के लिए आए चंद दोस्त एक दोस्त की नई गर्लफ्रेंड को प्रभावित करने के लिए उनकी (जय और अदिति) कहानी सुनाना आरंभ करते हैं। शुरू में प्रेम कहानी के नाम पर मुंह बिचका रही माला फिल्म के अंत में जय और अदिति से यों मिलती है, जैसे वह उन्हें सालों से जानती है। दर्शकों की स्थिति माला जैसी ही है। शुरू में आशंका होती है कि पता नहीं क्या फिल्म होगी और अंत में हम सभी फिल्म के किरदारों के दोस्त बन जाते हैं। माना जाता है कि हिंदी फिल्में लार्जर दैन लाइफ होती हैं, लेकिन जाने तू.. देख कर कहा जा सकता है कि निर्देशक समझदार और संवेदनशील हो तो फिल्म सिमलर टू लाइफ

निर्देशकों का लेखक बनना ठीक है, लेकिन.. .

-अजय ब्रह्मात्मज पिछले कुछ सालों में फिल्म लेखन में बड़ा बदलाव आया है। उल्लेखनीय है कि इस बदलाव की तरफ सबसे पहले यश चोपड़ा ने संकेत किया था। उन्होंने अपने बेटे आदित्य चोपड़ा समेत सभी युवा निर्देशकों के संबंध में कहा था कि वे सब अपनी फिल्मों की स्क्रिप्ट खुद लिखते हैं। भले ही दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे के समय यह ट्रेंड नहीं रहा हो, लेकिन हाल-फिलहाल में आए अधिकांश युवा निर्देशकों ने अपनी फिल्में खुद लिखीं और उन युवा निर्देशकों ने किसी और की कहानी ली, तो पटकथा और संवाद स्वयं लिखे। इस संदर्भ में हिंदी फिल्मों के एक वरिष्ठ लेखक की टिप्पणी रोचक है। उनकी राय में फिल्म लेखक-निर्देशक और निर्माता की भागीदारी पहले भी रहती थी, लेकिन वे कथा, पटकथा और संवाद का क्रेडिट स्वयं नहीं लेते थे। उन्होंने महबूब खान, बी.आर. चोपड़ा, बिमल राय और राजकपूर के हवाले से कहा कि इन सभी निर्देशकों की टीम होती थी और इस टीम में लेखक भी रहते थे। स्टोरी सिटिंग का चलन था। फिल्म की योजना बनने के बाद फिल्म के लेखक, ऐक्टर, निर्माता और निर्देशक साथ बैठते थे। सलाह-मशविरा होती थी और फिल्म के लिए नियुक्त लेखक हर स्टोरी सिटिंग के