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दरअसल : आ जाती है छोटी और सार्थक फिल्में

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-अजय ब्रह्मात्मज     कुछ फिल्में पहली झलक में ही चौंका देती हैं। इच्छा होती है कि उन्हें थिएटर में देखा जाए। मैं यहां खानत्रयी या किसी अन्य लोकप्रिय स्टार की फिल्मों के संदर्भ में नहीं लिख रहा हूं। उनकी फिल्में तो झलक दिखलाने के पहले से चर्चा में रहती हैं। पोस्टर, टीजर, ट्रेलर और सीन दिखाने के लिए भी वे इवेंट करते हैं। लाखों खर्च करते हैं। टीवी और अखबारों के जरिए सुर्खियों में आ जाते हैं। उनकी फिल्मों की जबरदस्त ओपनिंग होती है। हफ्ते भर के अंदर 100-200 करोड़ का कारोबार हो जाता है। मैं ऐसी फिल्मों के विरोध में नहीं हूं। लोकप्रिय फिल्मों से फिल्म इंडस्ट्री को ताकत मिलती है। व्यापार चलता है। इनके प्रभाव में छोटी फिल्मों को अनदेखा नहीं कर सकते।     पर्व-त्योहार और विशेष अवसरों पर रिलीज इन लोकप्रिय फिल्मों के अंतराल में कुछ फिल्में आती हैं, जिनमें न तो स्टार होते हैं और न उत्तेजक आयटम सौंग। उनके पास फिल्मों के मामूली चेहरे होते हैं,लेकिन कहानी गैरमामूली रहती है। इन्हें किसी बड़े बैनर या कॉरपोरेट घराने का सहारा नहीं होता। इनका कथ्य ही मनोरंजक होता है। मनोरंजन का अर्थ सेक्स,एक्शन और नाच-गान