फ़िल्म समीक्षा:मोहनदास
कहानी को फिल्म में ढालने की कोशिश -अजय ब्रह्मात्मज **1/2 उदय प्रकाश की कहानी मोहनदास पर आधारित मजहर कामरान की फिल्म देश की खुरदुरी सच्चाई को वास्तविक लोकेशन में पेश करने की कोशिश करती है। मजहर कामरान ने सिनेमाई छूट लेते हुए मूल कहानी में कुछ किरदार और प्रसंग जोड़े हैं। इससे फिल्म की नाटकीयता बढ़ी है, लेकिन सामाजिक विडंबना का मर्म हल्का हुआ है। कहानी के प्रभाव को मजहर कामरान फिल्म में पूरी तरह से नहीं उतार पाए हैं। अनूपपुर के दस्तकार परिवार के मोहनदास की पहचान छिन जाती है। बचपन से पढ़ने-लिखने में होशियार मोहनदास बड़ा होकर ओरिएंटल कोल माइंस में नौकरी के लिए आवेदन करता है। उसका चुनाव हो जाता है, लेकिन उसकी जगह कोई और बहाल हो जाता है। वह खुद को मोहनदास बताता है, लेकिन नकली मोहनदास उसकी पहचान वापस पहीं करता। वास्तविक मोहनदास अपने नाम और पहचान की लड़ाई में थपेड़े खाता है। एक न्यूज चैनल की रिपोर्टर मेघना सेनगुप्ता उसकी मदद में आगे आती है, लेकिन भ्रष्ट व्यक्तियों के कुचक्र में कोई नतीजा नहीं निकलता। ढाक के वही तीन पात ़ ़ ़ मोहनदास सामाजिक विसंगति और पूर्वाग्रह से नहीं जीत पाता। मजहर कामरान ने