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फिल्‍म समीक्षा : मुबारकां

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फिल्‍म रिव्‍यू मजेदार मनोरंजक फिल्‍म मुबारकां -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले कुछ सालों में कॉमेडी ने डबल मीनिंग डॉयलॉग,यौनाचार की मुद्राओं और देहदर्शन का रूप ले लिया है। निर्माता सेक्‍स कॉमेडी की हद तक गए,जिन्‍हें दर्शकों ने ही दरकिनार कर दिया। गोविंदा की लोकप्रियता के दिनों में ऐसी फिल्‍मों का एक दौर था, जब डेविड धवन,अनीस बज्‍मी और रुमी जाफरी ने मिलकर दर्शकों को खूब हंसाया। उनकी फिल्‍में शुद्ध हास्‍य को लकर चलती थीं और स्‍थानों,स्थितियों और किरदारों की दिलचस्‍प भिड़तों से हंसी के फववारे छोड़ती थीं। दर्शक भी भगते और लोटपोट होते रहते थे। फिर एक ऐसा दौर आया कि इनकी ही फिल्‍मों में द्विअर्थी संवाद घुस आए और संकेतों में सेक्‍स की बातें होने लगीं। और लोकप्रियता की लकीर पर चलते हुए कुछ निर्माता-निर्देशक सेक्‍स कॉमेडी की गलियों में भटक गए। एक अंतराल के बाद अनीस बज्‍मी की वापसी हुई है। वे नानसेंस ड्रामा लेकर आए हैं,जिसमें हास्‍यास्‍पद स्थितियां बनती हैं और हम फिर से ठहाके लगाते हैं। हिंदी फिल्‍मों की यह लोकप्रिय मनोरंज‍क धारा सूख सी गई थी। अनीस बज्‍मी ने अपने पुराने दोसत और भरोसेम

फिल्‍म समीक्षा : हाफ गर्लफ्रेंड

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फिल्‍म रिव्‍यू हाफ गर्लफ्रेंड शब्‍दों में लिखना और दृश्‍यों में दिखाना दो अलग अभ्‍यास हैं। पन्‍ने से पर्दे पर आ रही कहानियों के साथ संकट या समस्‍या रहती है कि शब्‍दों के दृश्‍यों में बदलते ही कल्‍पना को मूर्त रूप देना होता है। अगर कथा परिवेश और भाषा की जानकारी व पकड़ नहीं हो तो फिल्‍म हाफ-हाफ यानी अधकचरी हो जाती है। मोहित सूरी निर्देशित ‘ हाफ गर्लफ्रेंड ’ के साथ यही हुआ है। फिल्‍म का एक अच्‍छा हिस्‍सा बिहार में है और यकीनन मुंबई की ‘ हाफ गर्लफ्रेंड ’ टीम को बिहार की सही जानकारी नहीं है। बिहार की कुछ वास्‍तविक छवियां भी धूमिल और गंदिल रूप में पेश की गई हैं। भाषा,परिवेश और माहौल में ‘ हाफ गर्लफ्रेंड ’ में कसर रह जाता है और उसके कारण अंतिम असर कमजोर होता है। उपन्‍यास के डुमरांव को फिल्‍म में सिमराव कर दिया गया है। चेतन भगत ने उपन्‍यास में उड़ान ली थी। चूंकि बिल गेट्स डुमरांव गए थे,इसलिए उनका नायक डुमरांव का हो गया। इस जोड़-तोड़ में वे नायक माधव को झा सरनेम देने की चूक कर गए। इस छोटी सी चूक की भरपाई में उनकी कहानी बिगड़ गई। मोहित सूरी के सहयोगियों ने भाषा,परिवेश और माह

सात सवाल : अर्जुन कपूर

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सात सवाल अर्जुन कपूर मोहित सूरी निर्देशित ‘ हाफ गर्लफ्रेंड ’ में अर्जुन कपूर बिहारी युवक माधव झा का किरदार निभा रहे हैं। चेतन भगत के इसी नाम के अंग्रेजी उपन्‍यास पर आधारित इस फिल्‍म के लिए अर्जुन कपूर ने भाषा और आचार-व्‍यवहार पर मेहनत की। वे पटना भी गए। बिहारी मूल के व्‍यक्तियों के संपर्क में रहे। उन्‍होंने माधव झा को पर्दे पर उतारने की हर कोशिश की है। -बिहार के बारे में आप कितना जानते हैं ? 0 इस फिल्‍म के पहले ऊपरी तौर पर ही जानता था। मैं इस फिल्‍म के पहले भी एक बार पटना जा चुका हूं। उसे देखा और महसूस किया है। मनोज बाजपेयी के साथ ‘ तेवर ’ के प्रचार के समय गया था। कह समता हूं कि मैं बिहार जा चुका हूं। - ‘ हाफ गर्लफ्रेंड ’ के माधव झा की तैयारी में और क्‍या समझ बढ़ी ? 0 बिहार के बारे में शेष भारत क्‍या सोचता है और असलियत दोनों में फर्क है। अब लगता है कि मेरे बिहारी दोस्‍तों पर क्‍या बीतती होगी,जब कुछ सामान्‍य टिप्‍पणियां धारणा के आधार पर कर दी जाती हैं। वे बातें चुभती होंगी। माधव झा को भी झेलना पड़ता है फिल्‍म में। -ऐसा क्‍यों होता है ? 0 हम सभी का माइंडसेट

बोलने दो काम को - अर्जुन कपूर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज अर्जुन कपूर जोश में हैं। की एंड का की कामयाबी ने उनका आत्‍मविश्‍वास बढ़ा इिदया है। चार सालों में सात फिल्‍मों में अलग-अलग किरदार निभा कर उन्‍होंने देश के महानगरों और छोटे शहरों के दर्शकों के बीच प्रशंसक बना लिए है। उनकी अगली फिल्‍म हाफ गर्लफ्रेंड है। इसकी तैयारियों में जुटे अर्जुन की योजना बिहार जाने और वहां के युवकों से मिलने-जुलने की है। वे अपने ल‍हजे पर काम कर रहे हैं। - की एंड का को जो सफलता मिली,उसकी कितनी उम्मीद थी? 0फिल्म साइन करते समय मुझे विश्वास था कि यह फिल्म हमारे देश की पचास प्रतिशत फीमेल ऑडियंस   कनेक्ट करेंगी। पर मेरे किरदार को इतना प्यार मिलेगा, इस बारे में मैंने नहीं सोचा था। सबसे इस तरह का किरदार निभाने के लिए मेरी प्रशंसा की है। मुझसे कहा कि यह डेयरिंग का काम है। आज के जमाने में हीरो बॉडी दिखाता है। लड़ाई करता है। तुमने एक अलग तरीके का काम किया है । मैं खुश हूं कि मेरे स्क्रिप्ट सेंस को सराहा गया है। दस आइडिया में से हम एक आइडिया चुनते हैं। कुल मिलाकर एक पॉजिटिव फीलिंग   रही। -अब यहां से रास्ता किस तरफ जा रहा है?

फिल्‍म समीक्षा : की एंड का

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बदली हुई भूमिकाओं में -अजय ब्रह्मात्‍मज गृहलक्ष्‍मी,गृहस्थिन,गृहिणी,गृहस्‍वामिनी यानी हाउस वाइफ। फिर हाउस हस्‍बैंड भी कोई शब्‍द होता है या हो सकता है ? इन दिनों पत्र-पत्रिकाओं में एक विचार और अवधारणा के रुप में ऐसे मर्दों(हाउसा हस्‍बैंड) की बात की जाती है,जो घर संभालते हैं ताकि उनकी बीवियां अपने करिअर और शौक पर ध्‍यान दे सकें। ऐसे मर्दो के लिए हिंदी में अभी तक कोई शब्‍द प्रचलित नहीं हुआ है। उन्‍हें गृहविष्‍णु नहीं कहा जाता। गृहस्‍वामी शब्‍द चलन में है,लेकिन वह हाउस हस्‍बैंड का भावार्थ नहीं हो सकता। फिल्‍म का नायक कबीर बताता है... ‘ घर संभाले तो की,बाहर जाकर काम करे तो का... अकॉर्डिंग टू हिंदुस्‍तानी सभ्‍यता। ‘ आर बाल्‍की की फिल्‍म ‘ की एंड का ’ हिंदुस्‍तानी सभ्‍यता की इस धारणा का विकल्‍प पेश करती है और इसी बहाने बदले हुए समाज में स्‍त्री-पुरुष संबंधों में वर्चस्‍व के सवाल को छूती है। अगर भूमिकाएं बदल जाएं तो क्‍या होगा ? इस फिल्‍म में हाउस हस्‍बैंड बना कबीर तो अपवाद होने की वजह से एक सेलिब्रिटी बन जाता है। कल्‍पना करें कि अधिकांश पुरुष हाउस हस्‍बैंड की भूमिका में

सबसे ऊपर हैं रिश्‍ते- अर्जुन कपूर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज अर्जुन कपूर ने अपने किरदार के साथ कई प्रयोग किए हैं। आर बाल्की की ‘ की एंड का ’ में वह हाउस हसबैंड बने हैं। यह यूनिक आइडिया है। अपने सफर और फिल्म को लेकर उन्होंने बात की :बातें अभी और हैं... - आपके साथ के फैक्टर कारगर रहा है। खतरों के खिलाड़ी...केकेके। उसके बाद ‘ की एंड का ’ के एंड के ... 0 हां मेरी को-स्टार करीना कपूर खान हैं। उसमें भी केकेके फेक्टर है। मैं हमेशा से ही बोलता हूं कि इस फिल्‍म में करीना का ‘ का ’ और बाल्की का ‘ की ’ । मैं ‘ एंड ’ हूं। ‘ की ’ और ‘ का ’ वे दोनों हैं। मुझे नहीं पता कि यह के फेक्टर मेरे लिए काम करेगा या नहीं। लेकिन मुझे ‘ की एंड का ’ करने में बहुत मजा आया। ठीक वैसा ही ‘ खतरों के खिलाड़ी ’ का अनुभव रहा। मैं तो सिर्फ इतना ही कहूंगा कि मुझे दोनों से ही पॉजीटिव एनर्जी मिली। - अक्सर लोग फिल्म या फिर खुद के नाम में कोई खास अक्षर जोड़ते हैं। आप इसमें कितना यकीन रखते हैं ? 0 कोई मुझे नाम बदलने को कहे तो भी नहीं करुंगा। मेरी मां ने मुझे पुखराज की अंगूठी दी थी।(दिखाते हुए)मैं इसे हमेशा पहनता हूं। मेरे लिए यह उनकी याद है

फिल्‍म समीक्षा : तेवर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  लड़के का नाम घनश्याम और लड़की का नाम राधिका हो और दोनों ब्रजभूमि में रहते हों तो उनमें प्रेम होना लाजिमी है। अमित शर्मा की फिल्म 'तेवर' 2003 में तेलुगू में बनी 'ओक्काड़ु' की रीमेक है। वे शांतनु श्रीवास्तव की मदद से मूल कहानी को उत्तर भारत में रोपते हैं। उन्हें अपनी कहानी के लिए आगरा-मथुरा की पूष्ठभूमि समीचीन लगती है। वैस यह कहानी हरियाणा से लेकर झारखंड तक में कहीं भी थोड़े फेरबदल के साथ ढाली जा सकती है। एक बाहुबली है। उसके दिल यानी रोज के गार्डन में एक लड़की प्रवेश कर जाती है। वह प्रोपोज करता है। लड़की मना कर देती है। और ड्रामा चालू हो जाता है। मथुरा के गुंडा बाहुबली की जोर-जबरदस्ती के बीच में आगरे का लौंडा पिंटू शुक्ला उर्फ घनश्याम आ जाता है। फिर शुरू होती है भागदौड़, मारपीट,गोलीबारी और चाकू व तलवारबाजी। और डॉयलागबाजी भी। हिंदी फिल्मों में मनोरंजन के इन परिचित मसालों का इस्तेमाल होता रहा है। इस बार नई बात है कि उसमें अर्जुन कपूर और सोनाक्षी सिन्हा आ जाते हैं। उन्हें मनोज बाजपेयी से मुकाबला करना है। अपने तेवर के साथ प्यार का इजहार कर

फिल्‍म समीक्षा -फाइंडिंग फैनी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज    सबसे पहले यह हिंदी की मौलिक फिल्म नहीं है। होमी अदजानिया निर्देशित फाइंडिंग फैनी मूल रूप से इंग्लिश फिल्म है। हालांकि यह हॉलीवुड की इंग्लिश फिल्म से अलग है, क्योंकि इसमें गोवा है। गोवा के किरदारों को निभाते दीपिका पादुकोण और अर्जुन कपूर हैं। इन्हें हम पसंद करने लगे हैं। यह इंग्लिश मिजाज की भारतीय फिल्म है, जिसे अतिरिक्त कलेक्शन की उम्मीद में हिंदी में डब कर रिलीज कर दिया गया है। इस गलतफहमी में फिल्म देखने न चले जाएं यह हिंदी की एक और फिल्म हैं। हां, अगर आप इंग्लिश मिजाज की फिल्में पसंद करते हैं तो जरूर इसे इंग्लिश में देखें। भाषा और मुहावरों का वहां सटीक उपयोग हुआ है। हिंदी में डब करने में मजा खो गया है और प्रभाव भी। कई दृश्यों में तो होंठ कुछ और ढंग से हिल रहे हैं और सुनाई कुछ और पड़ रहा है। यह एक साथ इंग्लिश और हिंदी में बनी फिल्म नहीं है। इन दिनों हॉलीवुड की फिल्में भी डब होकर हिंदी में रिलीज होती हैं, लेकिन उनमें होंठ और शब्दों को मिलाने की कोशिश रहती है। फाइंडिंग फैनी में लापरवाही झलकती है। गोवा के एक गांव पाकोलिम में फाइंडिंग फैनी की किर

फिल्‍म समीक्षा : 2 स्‍टेट्स

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  अभिषेक वर्मन निर्देशित '2 स्टेट्स' आलिया भट्ट की तीसरी और अर्जुन कपूर की चौथी फिल्म है। दोनों फिल्म खानदान से आए ताजातरीन प्रतिभाएं हैं। उन्हें इंडस्ट्री और मीडिया का जबरदस्त समर्थन हासिल है। फिल्म की रिलीज के पहले प्रचार और प्रभाव से यह स्थापित कर दिया गया है कि दोनों भविष्य के सुपरस्टार हैं। वास्तव में दर्शकों के बीच स्वीकृति बढ़ाने के लिहाज से दोनों के लिए उचित माहौल बना दिया गया है। फिल्म देखते समय लेखक की समझ और निर्देशक की सूझबूझ से '2 स्टेट्स' अपेक्षाओं पर खरी उतरती है। साधारण होने के बावजूद फिल्म श्रेष्ठ लगती है। अगर गानों की अप्रासंगिकता को नजरअंदाज कर दें तो पंजाबी कृष मल्होत्रा और तमिल अनन्या स्वामीनाथन की यह प्रेमकहानी बदले भारतीय समाज में अनेक युवा दंपतियों की कहानियों से मेल खाती है। विभिन्न प्रांतों,जातियों और संस्कृतियों के बीच हो रहे विवाहों में ऐसी अंतिर्निहित समस्याओं से दिक्कतें होती हैं। '2 स्टेट्स' में पाश्‌र्र्व संगीत और विभिन्न अवसरों के गीत की वजह से कुछ चीजें लार्जर दैन लाइफ और झूठ लगने लगती हैं। इस