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काल्पनिक इतिहास की सांप्रदायिक मंशाएंः ‘पद्मावत’

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यह लेख जवरीमल्‍ल पारख ने लिखा है। ‘पद्मावत’ के प्रशंसक और आलोचक दोनों इसे पढें। यह लेख संजय ली ला भंसाली की मंशा और मंतव्‍य को समझने में मदद करेगा। samayantar ke March 2018 men prakashit aalekh काल्पनिक इतिहास की सांप्रदायिक मंशाएंः ‘पद्मावत’ जवरीमल्ल पारख संजय लीला भंसाली की फ़िल्म अपने बदले नाम ‘पद्मावत’ के साथ जनवरी के अंतिम सप्ताह में प्रदर्शित हो गयी। फ़िल्म को लेकर विवाद की शुरुआत उसके निर्माण के दौरान ही हो गयी थी। बिना देखे और उसके बारे में फैली अफवाहों के आधार पर फ़िल्म के विरुद्ध आंदोलन शुरू हुआ। इस खबर के आने के बाद कि फ़िल्म 1 दिसंबर 2017 को रिलीज होगी, यह आंदोलन और तेज हो गया। इसे भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार का सक्रिय समर्थन मिला। यह आरोप लगाया गया कि फ़िल्म में रानी पद्मावती का जिस ढंग से चित्रण किया गया है वह उनके ऐतिहासिक चरित्र के अनुरूप नहीं है। उन्हें सबके सामने नृत्य करते दिखाया गया है। एक स्वप्न दृश्य में अलाउद्दीन खिलजी और पद्मिनी को प्रेम करते दिखाया गया है। फ़िल्म में पद्मिनी के गौरवशाली चरित्र को लांछित किया गया है और इस तरह राजपूतों की आ

फिल्म समीक्षा : पद्मावत

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फिल्‍म समीक्षा : पद्मावत ‘मी टू ’ के दौर में ‘जौहर’ का औचित्‍य -अजय ब्रह्मात्‍मज   ‘प्रस्‍तुत फिल्‍म ‘पद्मावत’ मलिक मोहम्‍मद जायसी द्वारा लिखे गए महाकाव्‍य ‘पद्मावत’ से प्रेरित है,जिसे प्रचलित रूप से काल्‍पनिक माना जाता है।फिल्‍म में दर्शाए गए सभी स्‍थल,किरदार,घटनाएं,जगह,भाषाएं,नृत्‍य,पहनावे इत्‍यादि ऐतिहासिक रूप से सटीक या वास्‍तविक होने का कोई दावा नहीं करते। हम किसी भी सूरत में किसी भी इंसान,समंदाय,समाज उनकी संस्कृति,रीति-रिवाजों उनकी मान्‍यताओं,परंपराओं या उनकी भावनाओं का हानि पहुंचाना या उनकी उपेक्षा करना नहीं चाहते। इस फिल्‍म का उद्देश्‍य सती या ऐसी किसी भी प्रथा को बढ़ावा देना नहीं है।‘ इस लंबे डिस्‍क्‍लेमर के बाद फिल्‍म संजय लीला भंसाली की फिल्‍म ‘पद्मावत’ पर्दे पर आरंभ होती है। फिल्‍म के पर्दे पर आने के पहले और देश में इस फिल्‍म को लकर विवादा और बवाल मचा हुआ है। करणी सेना नामक एक समूह कई महीनों से इस फिल्‍म पर पाबंदी लगाने की मांग कर रही है। उन्‍होंने चेतावनियां दी हैा कि अगर फिल्‍में राजपूती आन,बान और शान के खिलाफ कोई बात हुई तो वे थिएटर में उपद्रव करेंगे।