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अच्‍छाई से बड़ी कोई चीज नहीं - भूमि पेडणेकर

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अच्‍छाई से बड़ी कोई चीज नहीं-भूमि पेडणेकर -अजय ब्रह्मात्‍मज ‘ टॉयलेट एक प्रेम कथा ’ में भूमि पेडणेकर की बहुत तारीफ हो रही है। इस तारीफ से उनकी मां खुश हैं। भूमि के फिल्‍मों में आने के बाद से मां की ख्‍वाहिश रही कि बेटी को जया भदुड़ी,शबाना आजमी और स्मिता पाटिल की कड़ी की अभिनेत्री माना जाए। ऐसा प्‍यार मिले। - कैसे एंज्‍वॉय कर रहे हो आप ‘ टॉयलेट एक प्रेम कथा ’ की कामयाबी और उसमें अपने काम की तारीफ से ? 0 मैं तो एकदम से सन्‍न रह गई थी। मेरी पहली फिल्‍म छोटी थी। मैंने पहली बार प्रमोशन में ऐसे हिस्‍सा लिया। बड़े पैमाने पर सब कुछ चल रहा था। समझने की कोशिश कर रही थी कि मेरे साथ क्‍या हो रहा है ? अब संतोष का एहसास है। फिल्‍म और मेरा काम लोगों को पसंद आया। दूसरे हफ्ते से मैं थिएटरों में जाकर दर्शकों की प्रतिक्रियाएं देख-सुन रही हूं। - किन दृश्‍यों में दर्शक ज्‍यादा तालियां बजा रहे हैं ? 0 सेकेड हाफ में मेरा एक मोनोलॉग है। जहों दादी मो के सामने गांव की औरतों को कुछ बता रही हूं। इंटरवल सीन है। जब केशव को डेटॉल लगा रही हूं। फिल्‍म के संदेश के साथ हमारी प्रेम कहानी के दृश्‍यो

फिल्‍म समीक्षा : शुभ मंगल सावधान

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फिल्‍म रिव्‍यू ‘ जेंट्स प्राब्‍लम ’ पर आसान फिल्‍म शुभ मंगल सावधान -अजय ब्रह्मात्‍मज आर एस प्रसन्‍ना ने चार साल पहले तमिल में ‘ कल्‍याण समायल साधम ’ नाम की फिल्‍म बनाई थी। बताते हैं कि यह फिल्‍म तमिलभाषी दर्शकों को पसंद आई थी। फिल्‍म उस पुरुष समस्‍या पर केंद्रित थी,जिसे पुरुषवादी समाज में मर्दानगी से जोड़ दिया जाता है। यानी आप इस क्रिया को संपन्‍न नहीं कर सके तो नामर्द हुए। उत्‍तर भारत में रेलवे स्‍टेशन,बस टर्मिनस और बाजार से लेकर मुंबई की लोकल ट्रेन और दिल्‍ली की मैट्रो तक में में ‘ नामर्दी का शर्तिया इलाज ’ के विज्ञापन देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह समस्‍या कितनी आम है,लेकिन पूरा समाज इस पर खुली चर्चा नहीं करता। सिर्फ फुसफुसाता है। आर एस प्रसन्‍ना अपनी तमिल फिल्‍म की रीमेक ‘ शुभ मंगल सावधान ’ में इस फुसफसाहट को दो रोचक किरदारों और उनके परिजनों के जरिए सार्वजनिक कर देते हैं। बधाई...इस विषय पर बोल्‍ड फिल्‍म बनाने के लिए। दिल्‍ली की मध्‍यवर्गीय बस्‍ती के मुदित(आयुष्‍मान खुराना) और सुगंधा(भूमि पेडणेकर) एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं। झेंप और झिझक के कारण म

फिल्‍म समीक्षा : टॉयलेट- एक प्रेम कथा

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फिल्‍म रिव्‍यू शौच पर लगे पर्दा टॉयलेट एक प्रेम कथा -अजय ब्रह्मात्‍मज जया को कहां पता था कि जिस केशव से वह प्‍यार करती है और अब शादी भी कर चुकी है...उसके घर में टॉयलेट नहीं है। पहली रात के बाद की सुबह ही उसे इसकी जानकारी मिलती है। वह गांव की लोटा पार्टी के साथ खेत में भी जाती है,लेकिन पूरी प्रक्रिया से उबकाई और शर्म आती है। बचपन से टॉयलेट में जाने की आदत के कारण खुले में शौच करना उसे मंजूर नहीं। बिन औरतों के घर में बड़े हुआ केशव के लिए शौच कभी समस्‍या नहीं रही। उसने कभी जरूरत ही नहीं महसूस की। जया के बिफरने और दुखी होने को वह शुरू में समझ ही नहीं पाता। उसे लगता है कि वह एक छोटी सी बात का बतंगड़ बना रही है। दूसरी औरतों की तरह अपने माहौल से एडजस्‍ट नहीं कर रही है। यह फिल्‍म जया की है। जया ही पूरी कहानी की प्रेरक और उत्‍प्रेरक है। हालांकि लगता है कि सब कुछ केशव ने किया,लेकिन गौर करें तो उससे सब कुछ जया ने ही करवाया। ‘ टॉयलेट एक प्रेम कथा ’ रोचक लव स्‍टोरी है। जया और केशव की इस प्रेम कहानी में सोच और शौच की खल भूमिकाएं हैं। उन पर विजय पाने की कोशिश और कामयाबी में ही जया

फिल्‍म समीक्षा : दम लगा के हईसा

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चुटीली और प्रासंगिक -अजय ब्रह्मात्मज     यशराज फिल्म्स की फिल्मों ने दशकों से हिंदी फिल्मों में हीरोइन की परिभाषा गढ़ी है। यश चोपड़ा और उनकी विरासत संभाल रहे आदित्य चोपड़ा ने हमेशा अपनी हीरोइनों को सौंदर्य और चाहत की प्रतिमूर्ति बना कर पेश किया है। इस बैनर से आई दूसरे निर्देशकों की फिल्मों में भी इसका खयाल रख जाता है। यशराज फिल्म्स की ‘दम लगा के हईसा’ में पहली बार हीरोइन के प्रचलित मानदंड को तोड़ा गया है। फिल्म की कहानी ऐसी है कि सामान्य लुक की एक मोटी और वजनदार हीरोइन की जरूरत थी। भूमि पेंडणेकर ने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है। इस फिल्म में उनके साथ सहायक कलाकारों का दमदार सहयोग फिल्म को विश्वसनीय और रियल बनाता है। खास कर सीमा पाहवा,संजय मिश्रा और शीबा चड्ढा ने अपने किरदारों को जीवंत कर दिया है। हम उनकी वजह से ही फिल्म के प्रभाव में आ जाते हैं।     1995 का हरिद्वार ¸ ¸ ¸देश में प्रधानमंत्री नरसिंहा राव की सरकार है। हरिद्वार में शाखा लग रही है। प्रेम एक शाखा में हर सुबह जाता है। शाखा बाबू के विचारों से प्रभावित प्रेम जीवन और कर्म में खास सोच रखता है। निर्देशक ने शाखा के प्रतिगामी असर