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फिल्‍म समीक्षा : परमाणु

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फिल्‍म समीक्षा फ़िल्मी राष्‍ट्रवाद का नवाचार परमाणु -अजंय ब्रह्मात्‍मज हिंदी फिल्‍मों में राष्‍ट्रवाद का नवाचार चल रहा है। इन दिनों ऐसी फिल्‍मों में किसी घटना,ऐतिहासिक व्‍यक्ति,खिलाड़ी या प्रसंग पर फिल्‍में बनती है। तिरंगा झंडा,वतन या देश शब्‍द पिरोए गाने,राष्‍ट्र गर्व के कुछ संवाद और भाजपाई नेता के पुराने फुटेज दिखा कर नवाचार पूरा किया जाता है। अभिषेक शर्मा की नई फिल्‍म ‘परमाणु’ यह विधान विपन्‍नता में पूरी करती है। कल्‍पना और निर्माण की विपन्‍नता साफ झलकती है। राष्‍ट्र गौरव की इस घटना को कॉमिक बुक की तरह प्रस्‍तुत किया गया है। फिल्‍म देखते समय लेखक और निर्देशक के बचकानेपन पर हंसी आती है। कहीं फिल्‍म यूनिट यह नहीं समझ रही हो कि दर्शकों की ‘लाफ्टर’ उनकी सोच को एंडोर्स कर रही है। राष्‍ट्रवाद की ऐसी फिल्‍मों की गहरी आलोचना करने पर राष्‍ट्रद्रोही हो जाने का खतरा है। हो सकता है कि यह फिल्‍म वर्तमान सरकार और भगवा भक्‍तों को बेहद पसंद आए। इसे करमुक्‍त करने और हर स्‍कूल में दिखाए जाने के निर्देश जारी किए जाएं। इे राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार से सम्‍मनित किया जाए और फिर जॉन अब्राहम को

कामेडी का बुद्धिमान चेहरा बोमन ईरानी

-अजय ब्रह्मात्‍मज  हिंदी फिल्मों में कॉमेडी के इंटेलीजेंट और मैच्योर फेस के रूप में हम सभी बोमन ईरानी को जानते हैं। 44 साल की उम्र में फिल्मों में बोमन देर से आए, लेकिन इतने दुरुस्त आए कि अभी उनके बगैर सीरियस कामेडी की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने कामेडी जॉनर की ज्यादा फिल्में नहीं की हैं, लेकिन अपनी अदाओं और भंगिमाओं से वे किरदार को ऐसी तीक्ष्णता दे देते हैं कि वह खुद तो हास्यास्पद हो जाता है, लेकिन दर्शकों के दिल में हंसी की न मिटने वाली लकीर छोड़ा जाता है। पिछले हफ्ते उनकी फिल्म वेल डन अब्बा आई। इस फिल्म में उन्होंने प्यारे अब्बा के रूप में हंसाने के साथ देश की सोशल और पॉलिटिकल सिचुएशन पर तंज भी किया। यह श्याम बेनेगल की खासियत है, लेकिन उसे पर्दे पर बोमन ईरानी ने बड़ी सहजता के साथ उतारा। हिंदी फिल्मों में अपनी मजबूत मौजूदगी से वाकिफ बोमन के लिए कॉमेडी केले के छिलके से फिसलना नहीं है। बोमन कहते हैं, इस पर कोई बचा हंस सकता है, क्योंकि वह चलते-फिरते व्यक्ति को गिरते देख कर चौंकता है और उस गिरने के पीछे का लॉजिक नहीं समझ पाने के कारण हंसता है। मेरी कामेडी केले के छिलके से फिसलने के

वेल डन अब्‍बा : बोमन ईरानी का जलवा - मृत्युंजय प्रभाकर

अच्छे अभिनेताओं की कद्र हमेशा रही है और रहेगी। बोमन ईरानी ने अपनी अभिनय प्रतिभा से अपनी खास पहचान बनाई है और एक अच्छा-खासा दर्शक वर्ग भी। वह जितने सहज तरीके से अपनी भूमिका उत्कृष्टता से निभा ले जाते हैं इस हफ्ते प्रदर्शित दोनों ही फिल्में इस बात की गवाह हैं। दो फिल्में और भूमिकाएं तीन। श्याम बेनेगल निर्देशित फिल्म "वेल डन अब्बा" में बोमन जु़ड़वा भाइयों की दोहरी भूमिका में हैं तो कबीर कौशिक की फिल्म "हम, तुम और घोस्ट" में भूत की भूमिका में। तीनों पात्रों को बोमन ने जितने नेचुरल तरीके से प्ले किया है वह देखने लायक है। बोमन के दर्शकों के लिए यह हफ्ता सच में खास है। श्याम बेनेगल की फिल्मों में गांव और कस्बायी समाज हमेशा से प्रमुखता से रहा है। उनकी पिछली फिल्म "वेलकम टू सज्जनपुर" भी कस्बायी धरातल की फिल्म थी और लोगों को पसंद आई थी। "वेल डन अब्बा" में बेनेगल एक बार फिर गांव की ओर लौटे हैं और सरकारी लोककल्याणकारी योजनाओं की जो हालत है उसका परीक्षण किया है। हाल ही में आई सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में मुस्लिम समाज का जो अक्स दिखाया गया है फिल्म उसकी पुष्टि कर

फिल्‍म समीक्षा : वेल डन अब्बा:

 हंसी-खुशी के  बेबसी -अजय  ब्रह्मात्‍मज इन दिनों हम कामेडी फिल्मों में क्या देखते-सुनते हैं? ऊंची आवाज में बोलते एक्टर, बैकग्राउंड का लाउड म्यूजिक, हीरोइन के बेवजह डांस, गिरते-पड़ते भागते कैरेक्टर, फास्ट पेस में घटती घटनाएं और कुछ फूहड़-अश्लील लतीफों को लेकर लिखे गए सीन ़ ़ ़ यही सब देखना हो तो वेल डन अब्बा निराश करेगी। इसमें ऊपर लिखी कोई बात नहीं है, फिर भी हंसी आती है। एहसास होता है कि हमारी जिंदगी में घुस गए भ्रष्टाचार का वायरस कैसे नेक इरादों की योजनाओं को निगल रहा है। श्याम बेनेगल ने बावड़ी (कुआं) के बहाने देश की डेमोक्रेसी को कतर रहे करप्शन को उद्घाटित किया है। उन्होंने आम आदमी की आदत बन रही तकलीफ को जाहिर किया है। अरमान अली मुंबई में ड्राइवर है। वह अपनी बेटी मुस्कान की शादी के लिए छुट्टी लेकर गांव जाता है। गांव से वह तीन महीनों के बाद नौकरी पर लौटता है तो स्वाभाविक तौर पर बॉस की डांट सुनता है। अपनी नौकरी बचाने के लिए वह गांव में अपने साथ घटी घटनाएं सुनाता है और हमारे सामने क्रमवार दृश्य खुलने लगते हैं। अनपढ़ अरमान अली सरकार की कपिल धारा योजना के अंतर्गत बावड़ी के लिए आवे