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दरअसल : कम दर्शक हैं उत्तर भारत में

-अजय ब्रह्मात्मज     हिंदी प्रदेशों के दर्शकों, पाठकों, पत्रकारों और मीडिया समूहों की पुरानी गलतफहमी है कि हिंदी फिल्मों का कारोबार उनकी वजह से चलता है, इसलिए मुंबई में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री  को हिंदी प्रदेशों से संबंधित दर्शकों, प्रतिष्ठानों और पत्रकारों को अधिक तवज्जो देनी चाहिए। वस्तुस्थिति इसके विपरीत है। हिंदी फिल्मों का कारोबार मुख्य रूप से मुंबई और दिल्ली-यूपी से होता है। दिल्ली-यूपी का योगदान कम ही है। फिर भी दोनों टेरिटरी मिला दें तो 56 प्रतिशत कलेक्शन यहीं से आ जाता है। बाकी 40 प्रतिशत में बाकी 11 टेरिटरी और पूरा देश है।     हिंदी प्रदेशों की जनसंख्या निश्चित ही उल्लेखनीय और बहुत ज्यादा है। अफसोस की बात है कि जनसंख्या के अनुपात में दर्शक नहीं हैं। हो सकता है कि हिंदी प्रदेशों के नागरिक सारी फिल्में किसी न किसी माध्यम से देख लेते हों, लेकिन यह कठोर सच्चाई है कि हिंदी प्रदेशों के दर्शक अपनी जनसंख्या के अनुपात में थिएटर नहीं जाते। वे सिनेमाघरों में जाकर फिल्में नहीं देखते। एक बड़ी वजह यह रही है कि दर्शकों के लिए पर्याप्त सिनेमाघर नहीं हैं। सिनेमाघरों के मालिकों का कहना है क