दरअसल : नंदिता दास के मंटो
दरअसल... नंदिता दास के मंटो -अजय ब्रह्मात्मज नंदिता दास पिछले कुछ सालों से ‘ मंटो ’ के जीवन पर फिल्म बनाने में जुटी हैं। भारतीय उपमाद्वीप के सबसे ज्यादा चर्चित लेखक सआदत हसन मंटो के जीवन में पाठकों और दर्शकों की रुचि है। वे अपने लखन और लेखन में की गई टिप्पणियों से चौंकाते और हैरत में डाल देते हैं। आज उनकी जितनी ज्यादा चर्चा हो रही है,अगर इसका आंशिक हिस्सा भी उन्हें अपने जीवनकाल में मिल गया होता। उन्हें समुचित पहचान के साथ सम्मान मिला होता तो वे 42 की उम्र में जिंदगी से कूच नहीं करते। मजबूरियां और तकलीफें उन्हें सालती और छीलती रहीं। कौम की परेशानियों से उनका दिल पिघलता रहा। वे पार्टीशन के बाद पाकिस्तान के लाहौर गए,लेकिन लाहौर में मुंबई तलाशते रहे। मुंबई ने उन्हें लौटने का इशारा नहीं दिया। वे न उधर के रहे और न इधर के। अधर में टंगी जिंदगी धीरे-धीरे घुलती गई और एक दिन खत्म हो गई। नंदिता दास अपनी फिल्म में उनके जीवन के 1946 से 1952 के सालों को घटनाओं और सहयोगी किरदारों के माध्यम रख रही हैं। यह बॉयोपिक नहीं है। यह पीरियड उनकी जिंदगी का सबसे अधिक तकलीफदेह और ...