DDLJ ने लाखों सपने दिए,लेकिन...
-आकांक्षा गर्ग आकांक्षा बंगलुरू में रहती और एक फायनेशियल कंपनी चलाती हैं।छठी कक्षा से कहानी-कविता लिखने का शौक जागा,जो जिंदगी की आपाधापी में मद्धम गति से चत रहा है।समय मिलते ही कुछ लिखती हैं। अभी निवेश के गुर सिखाती हैं और मदद भी करती हैं।आप उनसे iifpl@yahoo.com पर संपर्क कर सकते हैं। १९९५ में जब यह फिल्म रिलीज़ हुई तब कॉलेज में आये- आये थे । फिल्मो से कुछ एलर्जी सी थी।लगता था टाइम वेस्ट मनी वेस्ट। मेरे फ्रेंड्स ने मेरा नाम रखा हुआ था किताबी कीडा, क्यूंकि लाइब्रेरी में सबसे ज्यादा टाइम गुजारना मेरा पसंदीदा शगल था । कॉलेज की सभी फ्रेंड जैसे इस मूवी के पीछे पागल हो गयी थी . उनका हॉट टोपिक हुआ करता था इस मूवी का डिस्कशन करना । कई बार उन्होंने कहा जाने के लिए लेकिन उन सब के रोज़-रोज़ के डिस्कशन ने इतना ज्यादा बोरियत कर दी तो कभी मूड ही नहीं हुआ । फ्रेंड्स ने नए- नए नाम रखने शुरू कर दिए। किसी ने कहा I am unromantic। किसी किसी ने तो ये भी कहा that I love the four letter word, HATE and I hate the four letter word,LOVE from the deep of my heart । अब मैं क्या करती, सबका अपना -अपना नजरिया