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दरअसल : हिंदी प्रदेशों में सिनेमा और सरकार

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-अजय ब्रह्मात्‍मज     आए दिन उत्‍तर प्रदेश के अखबारों में फिल्‍म कलाकारों के साथ वहां के मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव की तस्‍वीरें छप रही हैं। नीचे जानकारी रहती है कि फलां फिलम को टैक्‍स फ्री कर दिया गया। टैक्‍स फ्री करने से फिल्‍म निर्माताओं को राहत मिलती है। उन्‍हें थोड़ा लाभ भी होता है। उत्‍तर प्रदेश सरकार फिल्‍मों को बढ़ावा देने के साथ प्रदेश की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अनुदान भी देती है। अगर किसी फिल्‍म की उत्‍तर प्रदेश में शूटिंग की गई हो तो प्रतिशत के हिसाब से अनुदान दिया जाता है। मसलन 75 प्रतिशत फिल्‍म उत्‍तर प्रदेश में शूट की गई हो तो दो करोड़ और 50 प्रतिशत पर एक करोड़ का अनुदान मिलता है। हिंदी फिल्‍में अभी जिस आर्थिक संकट से गुजर रही हैं,उस परिप्रेक्ष्‍य में ऐसे अनुदान का महत्‍व बढ़ जाता है। उत्‍तर प्रदेश में फिल्‍मों से जुड़ी सारी गतिविधियां फिल्‍म विकास परिषद के तहत हो रही हैं। इन्‍हें विशाल कपूर और यशराज सिंह देखते हैं। कहा जा सकता है कि मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्‍व में यह अनुकरणीय काम हो रहा है। बाकी हिंदी प्रदेशों को भी सबक लेना चाहिए। सभी हिंदी प्रद

डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी से अजय ब्रह्मात्‍मज की बातचीत (वीडियो बातचीत )

2 मार्च 2013 को मुंबई में डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी से मैंने उनके निर्देशक होने से लेकर सिनेमा में उनकी अभिरुचि समेत साहित्‍य और सिनेमा के संबंधों पर बात की थी। मेरे मित्र रवि शेखर ने उसकी वीडियो रिकार्डिंग की थी। उन्‍होंने इसे यूट्यूब पर शेयर किया है। वहीं से मैं ये लिंक यहां चवन्‍नी के पाठकों के लिए दे रहा हूं। आप का फीडबैक इस नए प्रयास को आंकेगा और बताएगा कि आगे ऐसे वीडियो किस रूप में  पेश किए जाएं। पांच किस्‍तों की यह बातचीत एक साथ पेश है...यह बातचीत संजय चौहान के सौजन्‍य से संपन्‍न हुई थी। दोनों मित्रों को धन्‍यवाद ! पहली किस्‍त http://www.youtube.com/watch?v=K3vsQGenAyo दूसरी किस्‍त  http://www.youtube.com/watch?v=eBSsvIr6VN4 तीसरी किस्‍त  http://www.youtube.com/watch?v=fzwnPNjigbE चौथी किस्‍त  http://www.youtube.com/watch?v=imvxn8VMDwc पांचवीं किस्‍त  http://www.youtube.com/watch?v=_JkdqS1XkWM

70 वें जन्मदिन पर अमिताभ बच्चन से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत

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-अमिताभ बच्चन का जीवन देश का आदर्श बना हुआ है। पिछले कुछ समय से फादर फिगर का सम्मान आप को मिल रहा है। पोती आराध्या के आने के बाद तो देश के बच्चे आप को अपने परिवार का दादा ही मानने लगे हैं। 0 यह देश के लोगों की उदारता है। उनका प्रेम और स्नेह है। मैंने कभी किसी उपाधि, संबोधन आदि के लिए कोई काम नहीं किया। मैं नहीं चाहता कि लोग किसी खास दिशा या दृष्टिकोण से मुझे देखें। इस तरह से न तो मैंने कभी सोचा और न कभी काम किया। जैसा कि आप कह रहे हैं अगर देश की जनता ऐसा सोचती है या कुछ लोग ऐसा सोचते हैं तो बड़ी विनम्रता से मैं इसे स्वीकार करता हूं। - लोग कहते हैं कि  आप का वर्तमान अतीत के  फैसलों का परिणाम होता है। आप अपनी जीवन यात्रा और वर्तमान को किस रूप में देखते हैं? निश्चित ही आपने भी कुछ कठोर फैसले लिए होंगे? 0 जीवन में बिना संघर्ष किए कुछ भी हासिल नहीं होता। जीवन में कई बार कठोर और सुखद प्रश्न सामने आते हैं और उसी के अनुसार फैसले लेने पड़ते हैं। जीवन हमेशा सुखद तो होता नहीं है। हम सभी के जीवन में कई पल ऐसे आते हैं, जब कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं। यह उतार-चढ़ाव जीवन में

छोटी फिल्मों की रिलीज की पहल

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-अजय ब्रह्मात्‍मज बड़ी कॉरपोरेट कंपनियां सामाजिक जिम्मेदारी के तहत धर्मार्थ कार्य करती हैं। इनमें टाटा सबसे आगे है। अभी तो सारी कंपनियों में एक डिपार्टमेंट ऐसा होता है, जो सामाजिक जिम्मेदारियों के लिए अधिकारियों को सचेत करता है। उन्हें धर्मार्थ निवेश के कार्य बताता है और उन पर निगरानी भी रखता है। मनोरंजन के व्यवसाय में व्यक्तिगत स्तर पर फिल्म स्टार ढेर सारे धर्मार्थ कार्य करते हैं। भारतीय दर्शन और सोच से प्रेरित उनकी यह कोशिश सामाजिक उत्थान और वंचितों के लिए होती है। हालांकि उनकी ऐसी गतिविधियों पर उंगलियां भी उठती रही हैं। कहा जाता रहा है कि अनगिनत पाप करने के बाद पुण्य कमाने के लिए ही धर्मार्थ कार्य किए जाते हैं। महात्मा गांधी ने हमेशा अपने समय के उद्योगपतियों को ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। कुछ को तो राजनीतिक मंच पर भी ले आए। गौर करें तो हिंदी फिल्मों में ज्यादातर गतिविधि बिजनेस बढ़ाने के लिए रहती है। कोई भी स्थापित निर्माता या कॉरपोरेट कंपनी प्रयोगात्मक फिल्म के निर्माण के पहले पच्चीस बार सोचती है। हर तरह से अपने जोखिमों को कम करने के बाद ही वे ऐसी फिल्मों

साहब बीबी और गुलाम

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- अजय ब्रह्मात्मज     फिल्मों की स्क्रिप्ट का पुस्तकाकार प्रकाशन हो रहा है। सभी का दावा रहता है कि ओरिजनल स्क्रिप्ट के आधार पर पुस्तक तैयार की गई है। हाल ही में  दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी की देखरेख में ‘साहब बीबी और गुलाम’ की स्क्रिप्ट प्रकाशित हुई है। उन्हें ओरिजनल स्क्रिप्ट गुरुदत्त के बेटे अरुण दत्त से मिली है। दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी ने चलन के मुताबिक फिल्म के हिंदी संवादों के अंग्रेजी अनुवाद के साथ उसे रोमन हिंदी में भी पेश किया है। संवादों के अंग्रेजी अनुवाद या रोमन लिपि में लिखे जाने से स्पष्ट है कि इस पुस्तक का भी मकसद उन चंद अंग्रेजीदां लोगों के बीच पहुंचना है, जिनकी हिंदी सिनेमा में रुचि बढ़ी हैं। उनकी इस रुचि को ध्यान में रखकर विनोद चोपड़ा फिल्म्स ने ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ और ‘3 इडियट’ के बाद गुरुदत्त की तीन फिल्मों ‘साहब बीवी और गुलाम’, ‘कागज के फूल’ और ‘चौदहवीं का चांद’ के स्क्रिप्ट के प्रकाशन का बीड़ा उठाया है। पिछले दिनों विधु विनोद चोपड़ा ने बताया था कि वे कुछ दूसरी फिल्मों की स्क्रिप्ट भी प्रकाशित करना चाहते हैं।     दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी ने पुस्

आफ़त होती है औरत-विद्या बालन

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-अजय ब्रह्मात्‍मज डांसिंग गर्ल सिल्क स्मिता के जीवन से प्रेरित फिल्म ‘ द डर्टी पिक्चर ’ में सिल्क की भूमिका निभाने की प्रक्रिया में विद्या बालन में अलग किस्म का निखार आया है। इस फिल्म ने उन्हें शरीर के प्रति जागृत , सेक्स के प्रति समझदार और अभिनय के प्रति ओपन कर दिया है। ‘ द डर्टी पिक्चर ’ के सेट पर ही उनसे यह बातचीत हुई। - चौंकाने जा रही हैं आप ? पर्दे पर अधिक बोल्ड और थोड़ी बदतमीज संवाद बोलते नजर आ रही हैं। क्या देखने जा रहे हम ? 0 बदतमीज तो नहीं कहूंगी। यह एक बेबाक लडक़ी का किरदार है। पर्दे पर उसे दिखाने का कोई शॉर्टकट नहीं है। उसकी पर्सनैलिटी को सही कंटेक्स्ट में दिखाने के लिए ऐसा चित्रण जरूरी है। वह निडर लडक़ी थी। मैं नहीं कहूंगी कि यह सिल्क स्मिता के ही जीवन से प्रेरित फिल्म है। उस वक्त ढेर सारी डांसिंग गर्ल थीं। उनके बगैर कोई फिल्म पूरी नहीं हो पाती थी। उनके डेट्स के लिए काफी टशन रहती थी। हीरो-हीरोइन के डेट्स मिल जाते थे , लेकिन उनके गाने और समय के लिए फिल्मों की शूटिंग रुक जाती थी। - हिंदी फिल्मों में डांसिंग गर्ल की परंपरा रही है। कुक्कू , हेलन आदि... सिल्क स्मिता

फिल्‍म समीक्षा : रॉकस्‍टार

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-अजय ब्रह्मात्‍मज युवा फिल्मकारों में इम्तियाज अली की फिल्में मुख्य रूप से प्रेम कहानियां होती हैं। यह उनकी चौथी फिल्म है। शिल्प के स्तर पर थोड़ी उलझी हुई, लेकिन सोच के स्तर पर पहले की तरह ही स्पष्ट... मिलना, बिछुड़ना और फिर मिलना। आखिरी मिलन कई बार सुखद तो कभी दुखद भी होता है। इस बार इम्तियाज अली प्रसंगों को तार्किक तरीके से जोड़ते नहीं चलते हैं। कई प्रसंगअव्यक्त और अव्याख्यायित रह जाते हैं और रॉकस्टार अतृप्त प्रेम कहानी बन जाती है। एहसास जागता है कि कुछ और भी जोड़ा जा सकता था... कुछ और भी कहा जा सकता था। रॉकस्टार की नायिका हीर है और नायक जनार्दन जाखड़... जो बाद में हीर के दिए नाम जॉर्डन को अपना लेता है। वह मशहूर रॉकस्टार बन जाता है, लेकिन इस प्रक्रिया में अंदर से छीजता जाता है। वह हीर से उत्कट प्रेम करता है, लेकिन उसके साथ जी नहीं सकता... रह नहीं सकता। कॉलेज के कैंटीन के मालिक खटाना ने उसे मजाक-मजाक में कलाकार होने की तकलीफ की जानकारी दी थी। यही तकलीफ अब उसकी जिंदगी बन गई है। वह सब कुछ हासिल कर लेने के बाद भी अंदर से खाली हो जाता है, क्योंकि उसकी हीर तो किसी और की हो चुकी है..

नए अंदाज का सिनेमा है रा. वन - अनुभव सिन्‍हा

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-अजय ब्रह्मात्‍मज रा. वन में विजुअल इफेक्ट के चार हजार से अधिक शॉट्स हैं। सामान्य फिल्म में दो से ढाई हजार शॉट्स होते हैं। विजुअल इफेक्ट का सीधा सा मतलब है कि जो कैमरे से शूट नहीं किया गया हो, फिर भी पर्दे पर दिखाई पड़ रहा हो। 'रा. वन' से यह साबित होगा कि हम इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के विजुअल इफेक्ट कम लागत में भारत में तैयार कर सकते हैं। अगर 'रा. वन' को दर्शकों ने स्वीकार कर लिया और इसका बिजनेस फायदेमद रहा तो भारत में दूसरे निर्माता और स्टार भी ऐसी फिल्म की कोशिश कर पाएंगे। भारत में 'रा. वन' अपने ढंग की पहली कोशिश है। विश्व सिनेमा में बड़ी कमाई की फिल्मों की लिस्ट बनाएं तो ऊपर की पाच फिल्में विजुअल इफेक्ट की ही मिलेंगी। भारत में 'रा. वन' की सफलता से क्रिएटिव शिफ्ट आएगा। यह भारत में होगा और मुझे पूरा विश्वास है कि यह हिंदी में होगा। ऐसी फिल्म पहले डायरेक्टर और लेखक के मन में पैदा होती हैं। डायरेक्टर अपनी सोच विजुअल इफेक्ट सुपरवाइजर से शेयर करता है। इसके अलावा विजुअल इफेक्ट प्रोड्यूसर भी रहता है। इस फिल्म में दो सुपरवाइजर हैं। एक लास एंजल्स के हैं और दूसरे यही

बेटी एषा को निर्देशित किया हेमा मालिनी ने

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-अजय ब्रह्मात्‍मज शाहरुख खान हेमा मालिनी को अपना पहला निर्देशक मानते हैं। पहली बार शाहरुख ने उनकी फिल्म दिल आशना है के लिए ही कैमरा फेस किया था। अब 19 सालों बाद हेमा ने टेल मी ओ खुदा के साथ फिर से निर्देशन की कमान संभाली है। इस बार हेमा के कैमरे के सामने उनकी बड़ी बेटी एषा देओल हैं। हेमा मालिनी कहती हैं, ''मुझे लगता है कि एषा को उसके टैलेंट के मुताबिक रोल नहीं मिले। वह ट्रेंड डांसर है और इमोशनल सीन भी अच्छी तरह करती है। मणि रत्नम की फिल्म युवा के छोटे से रोल में भी उसने अपनी प्रतिभा दिखाई थी। मैंने जब देखा कि वह गलत फिल्में कर और भी फंसती जा रही है तो मुझे सलाह देनी पड़ी। टेल मी ओ खुदा में एषा को आप नए अंदाज में देखेंगे। इस फिल्म में उसने डांस, एक्शन और इमोशन सीन किए हैं।'' हेमा पहले इस फिल्म से बतौर प्रोड्यूसर जुड़ीं। उन्होंने क्रिएटिव फैसलों में भी दखल रखा, लेकिन निर्देशन के लिए मयूर पुरी को चुना और उन्हें पूरी छूट दी। फिल्म के आरंभिक हिस्से देखने पर हेमा मालिनी को संतुष्टि नहीं मिली और उन्होंने निर्देशन की बागडोर अपने हाथों में ले ली। टेल मी ओ खुदा एक ऐसी लड़की की कह

रा. वन पर लगा शाहरुख खान का दांव

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-अजय ब्रह्मात्मज इन दिनों मुंबई में हर हफ्ते दो-तीन ऐसे इवेंट हो रहे हैं, जिनका 'रा. वन' से कोई न कोई ताल्लुक रहता है। टीवी शो और खबरों में भी शाहरुख खान छाए हुए हैं। कोशिश है कि हर दर्शक के दिमाग में 'रा. वन' की जिज्ञासा ऐसी छप जाए कि वह सिनेमाघरों की तरफ मुखातिब हो। अभी तक की सबसे महंगी फिल्म 'रा. वन' की लागत 200 करोड़ को छू चुकी है। इस लागत की भरपाई के लिए 250 करोड़ का बिजनेस लाजिमी होगा। इरोस इस फिल्म के 4000 प्रिंट्स जारी करेगा। कोशिश है कि अमेरिका, इंग्लैंड और जर्मनी के पारंपरिक पश्चिमी बाजार के साथ इस बार पूरब के बाजार कोरिया, ताइवान और चीन में भी प्रवेश किया जाए। कोरिया में 'माई नेम इज खान' से मिले मार्केट को बढ़ाने के लिए 100 स्क्रीन पर 'रा. वन' लगाई जाएगी। यूरोप और लैटिन अमेरिका के बाजार पर भी शाहरुख की नजर है। वैसे शाहरुख के लिए असल चुनौती देसी बाजार में घुसने की है। पिछले महीनों में 100 करोड़ का आंकड़ा पार करने वाली फिल्मों का अधिकांश कलेक्शन सिंगल स्क्रीन थिएटर और छोटे शहरों से आया है। इन दिनों सिंगल स्क्रीन थिएटर के आम दर्शक 60-70

फिल्‍म समीक्षा : मुझ से फ्रेंडशिप करोगे

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-अजय ब्रह्मात्मज यह फेसबुक के दौर में मुंबई की प्रेमकहानी है। एक कॉलेज के कूल किस्म के कुछ छात्रों के बीच बनते-बिगड़ते और उलझते-सुलझते रिश्तों की इस कहानी के चरित्र शहरी यूथ है। इनकी भाषा, बातचीत, व्यवहार और तौर-तरीके बिल्कुल अलग है। ये बिल्कुल अलग ढंग से खीझते और खुश होते हैं। अपने भावों को स्माइली से जाहिर करते हैं और फेक आइडेंटिटी से अपने प्रेम का खेल रचते हैं। पूरी फिल्म फेसबुक चैट की तरह ऑनलाइन चलती रहती है। राहुल, प्रीति, विशाल और मालविका आज की पीढ़ी के चार यूथ हैं। प्रीति और विशाल कॉलेज के एक प्रोजेक्ट पर एक साथ काम कर रहे हैं। उन्हें पिछले पच्चीस सालों में कॉलेज में बने 25 जोडि़यों की कहानी लिखनी है। उन कहानियों को लिखने और डाक्युमेंट करने की प्रक्रिया में ही उनका नजरिया भी बदलता जाता है। क्लाइमेक्स सीन में विशाल लिखित संभाषण भूल जाता है और अपने दिल की बात कहता है। उसके कथन का सार है कि पहले का समय और प्रेम सच्चा और सीधा था। जब इंटरनेट और फेसबुक नहीं था तो प्रेम की कठिनाइयां उसके एहसास को बढ़ा देती थीं। नुपूर अस्थाना पूरी फिल्म में जो दिखती और बताती हैं, उसे खुद ही फिल्म के अंत

फिल्‍म समीक्षा : मोड़

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-अजय ब्रह्मात्‍मज झरने सा कलकल प्रेम नागेश कुकनूर अपनी सहज संवेदना के साथ मोड़ में लौटे हैं। वे सरल कहानियां अच्छी तरह चित्रित करते हैं। मोड़ उनकी संवेदनात्मक फिल्म है। इस फिल्म की प्रेमकहानी पहाड़ी इलाके के चाय बागान की पृष्ठभूमि में है। प्रकृति की मौलिक सुंदरता का आकर्षण इस फिल्म के निर्दोष प्रेम को नया आयाम देता है। अरण्या इस कस्बे में अपने पिता के साथ रहती है। पिता किशोर कुमार के परम भक्त हैं और मदिराप्रेमी हैं। घर और कस्बा छोड़ कर जा चुकी पत्‍‌नी का वे आज भी इंतजार कर रहे हैं। इंतजार अरण्या को भी है। उसे लगता है कि इस कस्बे में उसे किसी से प्रेम हो जाएगा। प्रेम होता है, लेकिन प्रेमी के खंडित व्यक्तित्व से परिचित होने पर अरण्या का द्वंद्व बढ़ जाता है। राहुल डिसोशिऐटेड आइडेंटिटी डिसआर्डर का मरीज है, जो एंडी बन कर अरण्या से प्रेम करता है और राहुल होते ही अरण्या से घृणा करने लगता है। सच तो यह है किराहुल दिल से अरण्या को चाहता है। नागेश कुकनूर ने आयशा टाकिया और रणविजय सिंह के सहयोग से इस मनोवैज्ञानिक और जटिल प्रेमकहानी को मासूमियत के साथ पर्दे पर उतारा है। निश्छल प्रेम की यह भावुक दास

बदलाव का नया एटीट्यूड है यह

यह लेख इंडिया टुडे के 'बॉलीवुड का यंगिस्‍तान' 19 अक्‍टूबर 2011 में प्रकाशित हुआ है। -अजय ब्रह्मात्‍मज दुनिया की तमाम भाषाओं की फिल्मों की तरह हिंदी सिनेमा में भी दस-बारह सालों में बदलाव की लहर चलती है। यह लहर कभी बाहरी रूप बदल देती है तो कभी उसकी हिलोड़ में सिनेमा में आंतरिक बदलाव भी आता है। पिछले एक दशक में हिंदी सिनेमा का आंतरिक और बाह्य बदलाव स्पष्ट दिखने लगा है , लेकिन हमेशा की तरह हमारे आलसी विश्लेषक इसे कोई नाम नहीं दे पाए हैं। स्‍वयं युवा फिल्मकार अपनी विशेषताओं और पहचान की परिभाषा नहीं गढ़ पा रहे हैं। सभी अपने ढंग से कुछ नया गढ़ रहे हैं। राम गोपाल वर्मा की कोशिशों और फिल्मों को हम इस बदलाव का प्रस्थान मान सकते हैं। राम गोपाल वर्मा ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के ढांचे,खांचे और सांचे को तोड़ा। दक्षिण से अाए इस प्रतिभाशाली निर्देशक ने हिंदी सिनेमा के लैरेटिव और स्‍टार स्‍ट्रक्‍चर को झकझोर दिया। उनकी फिल्मों और कोशिशों ने परवर्ती युवा फिल्मकारों को अपनी पहचान बनाने की प्रेरणा और ताकत दी। बदलाव के प्रतिनिधि बने आज के अधिकांश युवा फिल्मकार,अभिनेता और तकनीशियन किसी न किसी

फिल्म समीक्षा : डबल धमाल

डबल मलाल -अजय ब्रह्मात्मज इन्द्र कुमार की पिछली फिल्म धमाल में फिर भी कुछ तर्क और हंसी मजाक था। इस बार उन्होंने सब कुछ किनारे कर दिया है और लतीफों कि कड़ी जोड़ कर डबल धमाल बनायीं है। पिछली फिल्म के किरदारों के साथ दो लड़कियां जोड़ दी हैं। कहने को उनमें से एक बहन और एक बीवी है, लेकिन उनका इस्तेमाल आइटम ग‌र्ल्स की तरह ही हुआ है। मल्लिका सहरावत और कंगना रानौत क निर्देशक ने भरपूर अश्लील इस्तेमाल किया है। फिल्म हंसाने से ज्यादा यह सोचने पर मजबूर करती है की हिंदी सिनेमा क नानसेंस ड्रामा किस हद तक पतन कि गर्त में जा सकता है। अफसोस तो यह भी हुआ की इस फिल्म को मैंने व‌र्ल्ड प्रीमियर के दौरान टोरंटो में देखा। बात फिल्म से अवांतर हो सकती है, लेकिन यह चिंता जगी की आइफा ने किस आधार पर इसे दुनिया भर के मीडिया और मेहमानों के सामने दिखाने के लिए सोचा। इसे देखते हुए डबल मलाल होता रहा। फिल्म में चार नाकारे दोस्त कबीर को बेवकूफ बनाने की कोशिश करने में लगातार खुद ही बेवकूफ बनते रहते हैं। उनकी हर युक्ति असफल हो जाती है। चारों आला दर्जे के मूर्ख हैं। कबीर भी कोई खास होशियार नहीं हैं, लेकिन जाहिर सी बात है क

ऑन स्क्रीन,ऑफ स्क्रीन : बिंदास और पारदर्शी बिपाशा बसु

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- अजय ब्रह्मात्मज संबंधों और अपने स्टेटस में पारदर्शिता के लिए मशहूर बिपाशा बसु आजकल नो कमेंट या चुप्पी के मूड में हैं। वजह पूछने पर कहती हैं, पूछे गए सारे सवालों का एक ही सार होता है कि क्या जॉन और मेरे बीच अनबन हो गई है? शुरू से ही अपने संबंधों को लेकर मैं स्पष्ट रही हूं। अब उसी स्पष्टता से दिए गए जवाब लोगों को स्वीकार नहीं हैं। उन्हें तो वही जवाब चाहिए, जो वे सोच रहे हैं या कयास लगा रहे हैं। मुझे यकीन है कि फिल्म रिलीज होगी और तमाम अफवाहें ठंडी हो जाएंगी। बेहतर है कि मैं अपने काम पर ही ध्यान दूं। अफवाहों की परवाह नहीं दरअसल, पिछले महीने फिल्म दम मारो दम के अभिनेता राणा दगुबट्टी के साथ उनकी अंतरंगता की चर्चा रही। मुमकिन है, किसी पीआर एक्जीक्यूटिव ने फिल्म के दौरान बने नए रिश्ते के पुराने फॉम्र्युले का इस्तेमाल किया हो और वह फिर से कारगर हो गया हो। हिंदी फिल्मों में रिलीज के समय प्रेम और अंतरंगता की अफवाहें फैलाई जाती हैं। सच्चाई पूछने पर बिपाशा स्पष्ट करती हैं, युवा अभिनेताओं के साथ काम करते समय मेरी कोशिश रहती है कि वे झिझकें नहीं। इसके लिए जरूरी है कि उनसे समान स्तर पर दोस्ती की जा