भारतीय(हिंदी) सिनेमा का विदेशी परिप्रेक्ष्य - नीलम मलकानिया
चवन्नी के लिए तोकियो शहर में रह रही नीलम मलकानिया ने यह विशेष लेख भेजा। देश के बाहर विदेशियों के संपर्क और समझ से उन्होंने भारतीय सिनेमा और विशेष कर हिंदी सिनेमा के बारे में लिीखा है। यह सच है कि भारत सरकार और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री विदेशों में फिल्मों के प्रसार और प्रभाव बढ़ाने की दिशा में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं कर रही है। क्वालालंपुर में चल रहे आइफा अवार्ड समारोह के दौरान इस लेख की प्रासंगिकता बढ़ जाती है। यह अकादेमिक लेख नहीं है। इसे आरंभिक जानकारी के तौर पर पढ़ें। यह शोध और अकादेमिक लेख के लिए प्रेरित कर सकता है। धन्यवाद नीलम। -नीलम मलकानिया सिनेमा में भी मां है। ये संवाद हम न जाने कितनी बार अलग-अलग माध्यमों से सुन चुके हैं। भले ही हम इससे सहमत न हों और सिनेमा को इंसानी रिश्तों की उपमा दिए जाने को पूरी तरह न स्वीकार करें लेकिन यह सच है कि सिनेमा हम भारतीयों की ज़िदगी में एक ऐसी जगह ज़रूर रखता है जिसका कोई विकल्प नहीं है। चाहे बात मनोरंजन की हो या फिर इस उद्योग से जुड़ी आय की , बात हो समाज का सच दिखाते आईने की या फिर एक रूपहले संसार