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Showing posts from August, 2020

सिनेमालोक : शूटिंग की अनुमति मिलने की ख़ुशी

  सिनेमालोक शूटिंग की अनुमति मिलने की ख़ुशी -अजय ब्रह्मात्मज सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने स्वयं सोशल मीडिया पर आकर फिल्म इंडस्ट्री में प्रोडक्शन आरंभ करने का एसओपी( स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) जारी किया है. हिंदी समेत देश के सभी भाषाओं की फिल्म इंडस्ट्री में इससे राहत और खुशी मिली है. लगभग पांच महीनों से ठप गतिविधियां सीमित पैमाने पर आरंभ हो सकेंगी. मुंबई में खुशी की खास लहर है. मुंबई के फिल्मकारों और कलाकारों ने भारत सरकार के जरूरी कदम का स्वागत किया है. मंत्री महोदय ने भी जोर दिया है कि देश की अर्थव्यवस्था को सुचारु करने में शूटिंग की अनुमति देना आवश्यक है. उन्होंने स्वीकार किया है कि देश की अर्थव्यवस्था में फिल्मों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है. एसओपी में दुनिया भर में पालन हो रहे एहतियात का उल्लेख किया गया है. मसलन शूटिंग में शामिल सभी कलाकारों और तकनीशियनों के लिए फेस मास्क लगाना जरूरी होगा. केवल कैमरे के सामने खड़े कलाकारों को फेस मास्क हटाने की अनुमति मिल सकती है. यह तो सुरक्षा के लिए जरूरी भी होगा. वैसे एक सवाल बना हुआ है कि फिल्मों के अंतरंग और आलिंगन के

सिनेमालोक : 90 सालों की सुरयात्रा

  सिनेमालोक 90 सालों की सुरयात्रा -अजय ब्रह्मात्मज इन दिनों हिंदी में सिनेमा पर किताबें लिखी जा रही हैं. व्यवसायिक प्रकाशन गृह तो बिकाऊ किताबों की योजना के तहत ज्यादातर लोकप्रिय फिल्म सितारों की जीवनियाँ छापने में रुचि लेते हैं. इसके अलावा वे पाठकों की तात्कालिक जरूरतों और जिज्ञासा(स्क्रिप्ट लेखन,फिल्म पत्रकारिता आदि) को ध्यान में रखकर प्रकाशन योजनाएं बनाते हैं. दिक्कत यह है कि इन प्रकाशन गृहों में साहित्य के संपादकों की तरह सिनेमा और अन्य साहित्यिक विषयों के संपादक नहीं है. वे इनके आउटसोर्सिंग भी नहीं करते. नतीजा यह होता है कि वे साहित्यकारों या अनुवादकों से ही फिल्मों की किताबें भी लिख पाते हैं. वे उनकी टिप्पणियों का संग्रह प्रकाशित करते हैं. उससे भी ज्यादा अफसोस की बात है कि राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के निर्णायक ऐसी किताबों और टिप्पणियों के संग्रह को राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित कर शेष गंभीर और ईमानदार लेखकों को हतोत्साहित करते हैं. इस विकट माहौल में राजीव श्रीवास्तव की पुस्तक ‘सात सुरों का मेला’ का आना एक सुखद घटना है. इसे सूचना और प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग ने प्

सिनेमालोक : आज़ादी पर्व पर देशभक्ति की फ़िल्में

  सिनेमालोक आज़ादी पर्व पर देशभक्ति की फ़िल्में -अजय ब्रह्मात्मज आगामी 15 अगस्त को देश 74 वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा. कोविड- 19 की वजह से सार्वजानिक खुशी और समारोह का माहौल तो नहीं है, लेकिन देश के इतिहास के इस महत्वपूर्ण दिवस को हर नागरिक अपने स्तर पर अवश्य हर्षित रहेगा. परिवार में छुट्टी और खुशी का दिन होगा. ‘वर्क फ्रॉम होम से भी निजत मिलनी चाहिए. निश्चित ही उस दिन मनोरंजन चैनलों से हमेशा की तरह देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम की फिल्में प्रसारित होंगी. इस हफ्ते ओटीटी प्लेटफार्म पर ‘गुंजन सक्सेना द कारगिल गर्ल’(12 अगस्त) और ‘खुदा हाफिज’(14 अगस्त) भी रिलीज हो रही . इस बार सूचना और प्रसारण मंत्रालय भी राष्ट्रप्रेम की चुनिंदा फिल्में अपने प्लेटफार्म www.cinemasofindia.com से मुफ्त प्रसारित कर रहा है. फिल्मप्रेमियों के लिए यह एक अच्छा अवसर है. फिल्म अधेताओं और शोधार्थियों के लिए भी यह ख़ास मौका है. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने मराठी, हिंदी, तेलुगू, तमिल, कन्नड़, बंगाली, गुजराती और   मलयालम भाषाओं की फिल्में चुनी है. पहली बार रिचर्ड एटनबरो की ‘गांधी’ का विशेष प्रसारण हो रहा है, जिसका आनंद

सिनेमलोक : एक फिल्म भी लिखी थी प्रेमचंद ने

  सिनेमलोक एक फिल्म भी लिखी थी प्रेमचंद ने -अजय ब्रह्मात्मज पिछले महीने 21 जुलाई को प्रेमचंद का 140 वां जन्मदिन बीता. हिंदी के लब्धप्रतिष्ठित कथा शिल्पी प्रेमचंद को हम सभी ने माध्यमिक और उच्च विद्यालय के पाठ्यक्रमों में पढ़ा है. साहित्य में रुचि रखने वालों के लिए प्रेमचंद प्रथम पाठ होते हैं.वे अपनी मृत्यु के 84 सालों बाद भी प्रासंगिक बने हुए हैं. उत्तर भारतीय समाज को अंतर्विरोधोंको उन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों में संचित कर लिया है. उनके कथादृष्टि किसी मशाल की तरह समाज के अंधेरे-उजाले को रोशन करती है. हिंदी सिनेमा के ताल्लुक से भी प्रेमचंद की चर्चा चलती है. उनकी कहानियों और उपन्यासों पर फिल्में बनती रही है.सत्यजित राय ने भी दो फ़िल्में निर्देशित कीं. उनके साहित्य पर बनी फिल्मों में से कई फिल्में बेहद चर्चित हुईं और कुछ समय के साथ भुला दी गईं. प्रेमचंद के पाठक और प्रशंसक जानते हैं कि प्रेमचंद मुंबई आए थे. उन्होंने एक फिल्म लिखी थी और निराश होकर यहां से बनारस लौट गए थे. लौटने के बाद उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर ‘सिनेमा और साहित्य’ लेख लिखा था. इसके अलावा जैनेंद्र कुमार और अ