फिल्म समीक्षा : माय नेम इज खान
साधारण किरदारों की विशेष कहानी -अजय ब्रह्मात्मज करण जौहर ने अपने सुरक्षित और सफल घेरे से बाहर निकलने की कोशिश में माय नेम इज खान जैसी फिल्म के बारे में सोचा और शाहरुख ने हर कदम पर उनका साथ दिया। इस फिल्म में काजोल का जरूरी योगदान है। तीनों के सहयोग से फिल्म मुकम्मल हुई है। यह फिल्म हादसों से तबाह हो रही मासूम परिवारों की जिंदगी की मुश्किलों को उजागर करने के साथ धार्मिक सहिष्णुता और मानवता के गुणों को स्थापित करती है। इसके किरदार साधारण हैं, लेकिन फिल्म का अंतर्निहित संदेश बड़ा और विशेष है। माय नेम इज खान मुख्य रूप से रिजवान की यात्रा है। इस यात्रा के विभिन्न मोड़ों पर उसे मां, भाई, भाभी, मंदिरा, समीर, मामा जेनी और दूसरे किरदार मिलते हैं, जिनके संसर्ग में आने से रिजवान खान के मानवीय गुणों से हम परिचित होते हैं। खुद रिजवान के व्यक्तित्व में भी निखार आता है। हमें पता चलता है कि एस्परगर सिंड्रोम से प्रभावित रिजवान खान धार्मिक प्रदूषण और पूर्वाग्रहों से बचा हुआ है। मां ने उसे बचपन में सबक दिया था कि लोग या तो अच्छे होते हैं या बुरे होते हैं। वह पूरी दुनिया को इसी नजरिए से देखता है।