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फिल्‍म समीक्षा : हंसी तो फंसी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्म के अंग्रेजी हिज्जे का उच्चारण करें तो यह फिल्म 'हसी तो फसी' हो जाती है। यह इरादतन किया गया होगा। धर्मा प्रोडक्शन की फिल्म है तो अक्षर जोड़ने के बजाय इस बार घटा दिया गया है। फिल्म का यही प्रभाव भी है। फिल्म में बस मनोरंजन का अनुस्वार गायब है। फिल्म मनोरंजन की जगह मनोरजन करती है। हिंदी में बिंदी का बहुत महत्व होता है। अंग्रेजी में हिंदी शब्दों के सही उच्चारण के लिए बिंदी के लिए 'एन' अक्षर जोड़ा जाता है। करण जौहर की भूल या सोच स्वाभाविक हो सकती है, लेकिन इस फिल्म के साथ अनुराग कश्यप भी जुड़े हैं। अफसोस होता है कि भाषा और उच्चारण के प्रति ऐसी लापरवाही क्यों? 'हंसी तो फंसी' गीता और निखिल की कहानी है, जो अपने परिवारों में मिसफिट हैं। उनकी जिंदगी परिवार की परंपरा में नहीं है। वे अलग सोचते हैं और कुछ अलग करना चाहते हैं। गीता संयुक्त परिवार की बेटी है, जिसमें केवल उसके पिता उसकी हर गतिविधि के पक्ष और समर्थन में खड़े मिलते हैं। निखिल को अपनी मां का मौखिक समर्थन मिलता है। संयोग कुछ ऐसा बनता है कि दोनों बार-बार टकराते हैं। आखिरकार उन