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Showing posts from 2012

भानु अथैया का तमाचा

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-अजय ब्रह्मात्मज     पिछले दिनों खबर आई कि कॉस्ट्यूम डिजायनर भानु अथैया ने ‘गांधी’ फिल्म के लिए मिले आस्कर पुरस्कार की स्टैचू अकादेमी को लौटा दी। 86 वर्षीया भानु अथैया को नहीं लगता कि 1983 में आस्कर पुरस्कार की स्मृति चिह्न के रूप में मिला स्टैचू उनके देश में सुरक्षित रहेगा। उन्होंने इस स्टैचू के साथ ‘गांधी’ फिल्म के शोध और डिजायन से संबंधित कागजात भी अकादेमी को भेंट किए। उनका तर्क है कि भारत में जब रवींद्रनाथ टैगोर का नोबल पुरस्कार का मेडल चोरी हो सकता है तो उन्हें मिले स्टैचू की क्या कद्र होगी? उन्होंने देश में हो रही कीमती और महत्वपूर्ण कलाकृतियों की चोरियों का भी उल्लेख किया है।     भानु अथैया ने अकादेमी को स्टैचू लौटा कर देश और समाज के गाल पर झन्नाटेदार तमाचा जड़ दिया है। कहने को हमारी सभ्यता का इतिहास हजारों साल पुराना है, लेकिन हम अभी तक इतने सचेत नहीं हुए हैं कि पुरातात्विक महत्व की वस्तुओं को सरक्षित रख सकें। इस देश की व्यवस्था जिस लचर तरीके से चल रही है, उससे भी बुरी स्थिति धरोहरों की संरक्षा की है। प्राकृतिक और स्वाभाविक रूप से बच रहे ऐतिहासिक धरोहरों और दस्तावेजों के प्रत

सलमान खान से मयंक शेखर की बातचीत

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आज सलमान खान का जन्‍मदिन है। उनका यह इंटरव्‍यू मयंक शेखर ने लिया ढाईघंटे तक चले इस इंटरव्‍यू में सलमान खान ने दिल खोल कर बातें की हैं। उनके जन्‍मदिन पर उनके प्रशंसकों के लिए चवन्‍नी की भेंट। माफ करें,यह इंटरव्‍यू अंगे्रजी में है और कुछ लंबा है। n a conversation that lasts about two and half hours, held over a single sitting with a live audience in 2010, actor Salman Khan takes you into the little known world of possibly the most reclusive of Indian super-star. By Mayank Shekhar A lot of people may not know or remember this but Maine Pyar Kiya was in fact not your first film, it was Biwi Ho To Aisi (1988).   A lot of people know that, in fact. And that I prayed for that film to not do well. But it did 100 days’ business, so just imagine how God doesn’t listen to me. But wasn’t that an odd choice: to debut with fourth or fifth billing in a film headlined by Rekha, Farooq Sheikh, Bindu and Kader Khan? Arrey, but you have to get work also na! I had no choice. It was

प्रभावशाली फिल्‍मी हस्तियां : विद्या बालन,आमिर खान और रणबीर कपूर

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विद्या बालन चूंकि खान हिंदी फिल्मों में कामयाबी के पर्याय माने जाते हैं,इसलिए विद्या बालन की अप्रतिम कामयाबी के मद्देनजर उन्हें ‘लेडी खान’ टायटल से नवाजा गया। तब विद्या बालन ने मजाक में ही एक सच कहा था कि अब औरों की कामयाबी विद्या बालन से आंकी जानी चाहिए।बहरहाल,‘किस्मत कनेक्शन’ के समय चौतरफा विध्वंसात्मक आलोचना और छींटाकशी के केंद्र में आई दक्षिण भारतीय मूल की इस मिडिल क्लास लडक़ी ने साड़ी पहनने के साथ लक्ष्य साधा और फिर ‘इश्किया’ से अपने कदम बढ़ा दिए।हिंदी फिल्मों की निर्बंध नायिका विद्या बालन ने उसके बाद हर नई फिल्म से खास मुकाम हासिल किया। पहले ‘डर्टी पिक्चर’ और फिर ‘कहानी’ उन्होंने इस कथित सच को झुठला दिया कि हिंदी फिल्में सिर्फ हीरो के दम पर चलती हैं और हीरोइनें तो केवल नाच-गाने के लिए होती हैं। नाच-गानों से विद्या बालन को परहेज नहीं है। वह इनके साथ ही चरित्रों की गहराई में उतरना जानती हैं। वह उन्हें विश्वसनीय और प्रभावपूर्ण बना देती हैं। अभिनय के साथ उनमें आम भारतीय महिला का लावण्य है। उन्होंने सबसे पहले नायिकाओं केलिए जरूरी ‘जीरो साइज’ का मिथक तोड़ा। अपनी जोरदार कामयाबी से उन्ह

टीवी अवतार में दिखेंगे अनिल कपूर

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-अजय ब्रह्मात्मज       अपनी पीढ़ी के अभिनेताओं में अनिल कपूर ही सक्रिय और सक्षम दिख रहे हैं। ‘ स्लमडाग मिलियनेयर ’ ने शिथिल हो रहे उनके करिअर में नई गति दे दी। वे देश से निकल कर विदेश में पहचाने गए। उन्हें वहां की फिल्म मिली और टीवी शो ...  ऐसे ही एक टीवी शो ‘ 24 ’ ने अनिल कपूर पर ऐसा असर डाला कि उन्होंने उसे भारत में पेश करने के अधिकार खरीदे। ‘ 24 ’ नामक क्राइम थ्रिलर अमेरिका का लोकप्रिय टीवी शो है। पिछले कुछ समय से इस टीवी शो की तैयारी में लगे अनिल कपूर ने अब चैनल का चुनाव कर लिया है। अगले साल के पहले उत्तरार्द्ध में इसका प्रसारण होगा। असके साथ ही अनिल कपूर का टीवी अवतार होगा। उन्होंने इस शो की खासियत , तैयारी और संभावनाओं पर झंकार से बातचीत की ... - ‘ 24 ’  का खयाल कैसे आया ? 0 मैं अमेरिका में ‘ 24 ’  टीवी शो की शूटिंग कर रहा था। तीन-चार एपीसोड करने के बाद ऐसा लगा कि इसमें कुछ बात है। अगर भारत में इसे ले जाया जाए तो दर्शक पसंद करेंगे। ऐसा लगने पर मैंने ‘ 24 ’ के पहले के भी सीजन देखे। मुझे यह भारत के लिए प्रासंगिक शो लगा। मैंने उनसे इस संबंध में बात की तो उन्होंने कहा कि

फिल्मों से भी रिश्ता रहा पंडित रवि शंकर का

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-अजय ब्रह्मात्मज  रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी के अंत में कास्टिंग रोल के समय महात्मा गांधी का प्रिय भजन सुनाई पड़ता है। इस भजन को अनेक गायकों ने गाया है और अनेक संगीतज्ञों ने सुर में बांधा है,लेकिन भकित,आस्था और विश्वास की जैसी धुन रवि शंकर ने संजोयी है,वह दुर्लभ है। संगीतज्ञ और सितार वादक रवि शंकर की मौलिक प्रतिभा से हम सभी वाकिफ हैं। उन्होंने भारत के शास्त्रीय संगीत को पश्चिम में लोकप्रिय किया। जार्ज हैरीसन की संगत में वे पश्चिम की तत्कालीन नौजवान पीढ़ी के हप्रिय संगीतकारों में से एक रहे। सातवें दशक के बाद वे अमेरिका और भारत के बीच बंट कर अपने संगीत से रसिकों को भावविभोर करते रहे। उन्होंने सितार की शास्त्रीयता से विश्व को परिचित कराया। वे आधुनिक और खुले विचारों के संगीतज्ञ थे। अन्य शास्त्रीय संगीतज्ञों की तरह वे जड़ और रुढि़वादी नहीं थे।     अपने बड़े भाई उदय शंकर की तरह इप्टा से उनका भी जुड़ाव था। संस्कृति के क्षेत्र में वामपंथी रुझानों के तहत उन्होंने संगीत का उपयोग किया। हिंदी फिल्मों से उनका निकट का ताल्लुक रहा। इप्टा की पहली फिल्म धरती के लाल के से वे जुड़े। ख्वाजा अहमद अब्

फिल्‍म समीक्षा : दबंग 2

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मसाले में गाढ़ा, स्वाद में फीका -अजय ब्रह्मात्मज अवधि-129 मिनट **1/2 ढाई स्टार पहली फिल्म की कामयाबी, धमाकेदार प्रचार, पॉपुलर गाने, प्रोमो से जगी जिज्ञासा और सब के ऊपर सलमान खान की मौजूदगी..अगर आप ने 'दबंग' देखी और पसंद की है तो 'दबंग 2' देखने की इच्छा करना लाजिमी है। यह अलग बात है कि इस बार मसाला गाढ़ा,लेकिन बेस्वाद है। पहली बार निर्देशक की जिम्मेदारी संभाल रहे अरबाज खान ने अपने बड़े भाई सलमान खान के परिचित अंदाज को फिर से पेश किया है। फिल्म में नवीनता इतनी है कि चुलबुल पांडे के अपने पिता प्रजापति पांडे और भाई मक्खीचंद से मधुर और आत्मीय रिश्ते हो गए हैं। इसकी वजह से एक्शन के दो दृश्य बढ़ गए हैं और इमोशन जगाने का बहाना मिल गया है। 'दबंग 2' में 'दबंग' की तुलना में एक्शन ज्यादा है। खलनायक बड़ा लगता है,लेकिन है नहीं। उसे चुनौती या मुसीबत के रूप में पेश ही नहीं किया गया है। सारी मेहनत सलमान खान के लिए की गई है। 'दबंग' की कहानी 'दबंग' से कमजोर है। सूरज को मुट्ठी में करने और कसने के जोश के साथ चुलबुल पांडे पर्दे पर आते
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कानपुर आ गए हैं चुलबुल पांडे-दिलीप शुक्ला -अजय ब्रह्मात्मज     1990 में सनी देओल की फिल्म ‘घायल’ से हिंदी फिल्मों के लेखन से जुड़े दिलीप शुक्ला ने इस बीच कई कामयाब और चर्चित फिल्में लिखी हैं। बीच में उन्होंने ‘हैलो हम लल्लन बोल रहे हैं’ फिल्म का निर्देशन भी किया। वहीं ‘गट्टू’ जैसी चिल्डे्रन फिल्म भी लिखी। एक अर्से के बाद ‘दबंग’ ने उन्हें फिर से चर्चा में ला दिया है। अब ‘दबंग 2’ आ रही है। अपने संवादों और किरदारों के देसी टच के लिए मशहूर दिलीप शुक्ला इन दिनों काफी डिमांड में हैं।     मूलत: लखनऊ निवासी दिलीप शुक्ला का कुछ समय कानपुर में भी गुजरा है। कानपुर में उनका ससुराल है और बहन की शादी भी कानपुर में हुई है। शुरू से कानपुर आते-जाते रहने और वहां के लोगों को भली-भांति समझने से दिलीप शुक्ला को चुलबुल पांडे जैसे किरदारों को पर्दे पर जीवित करना मुश्किल नहीं रहा। ‘दबंग 2’ में उन्होंने चुलबुल पांडे को कानपुर के बजरिया थाने का प्रभारी बना दिया है। वे कहते हैं, ‘इस बार चुलबुल पांडे कनपुरिया लहजे में बोलते नजर आएंगे। वे गाली और गोली तो नहीं चलाते, लेकिन अपनी बोली से ही घायल कर देते हैं।

रिश्तों से वजूद है चुलबुल पांडे का - सलमान खान

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-अजय ब्रह्मात्मज     सलमान खान की लोकप्रियता  का अंदाजा इस से भी लगाया जा सकता है कि वे मुंबई में जहां मौजूद रहें, उस इमारत के बाहर खबर लगते ही भीड़ लगने लगती है। मुंबई में बाकी स्टार भी हैं, लेकिन उनके साथ हमेशा ऐसा नहीं होता। भाई (मुंबई और इंडस्ट्री में सभी उन्हें इसी नाम से बुलाते हैं) की एक झलक पाने के लिए बेचैन इस भीड़ को उनकी एक मुस्कान या हाथ हिलाने से ही सुकून मिल जाता है। बहरहाल, ‘दबंग 2’ की रिलीज के ठीक पहले हुई उनसे हुई बातचीत ... -  क्या कहेंगे ‘दबंग 2’ के बारे में? 0 ‘दबंग’ और ‘दबंग 2’ एक ही फिल्म है। पहली फिल्म फस्र्ट हाफ थी, यह सकेंड हाफ हे। बड़ी जगह,  बड़ा विलेन, बड़ा एक्शन और हीरोइज्म ...हमने तगड़ी नजर रखी है कि यह ओवर बोर्ड न चली जाए। चुलबुल पांडे अपना ही कैरीकेचर न बन जाए। इस बार चुलबुल पांडे के इनहेरेंट हयूमर पर ज्यादा प्ले नहीं किया है। उसकी रियल लाइफ क्वालिटी को सुपर हीरो में नहीं बदलना था। फर्स्‍ट दबंग में चुलबुल पांडे के साथ अनेक परेशानियां थी। सेकेंड दबंग में सब ठीक हो गया है। भाई से सुलह हो गई है, पिता से सहज हो गए हैं चुलबुल और उनकी शादी हो चुकी है। ऐ

हिंदी फिल्में इंग्लिश मीडिया

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-अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों मोरक्को में मराकेश इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में भारतीय सिनेमा के सौ साल के सफर पर केंद्रित इवेंट आयोजित किया गया था। नाम भारतीय सिनेमा का था। मुख्य रूप से वहां हिंदी फिल्में दिखाई गई। साथ ही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के कुछ स्टारों को निमंत्रित किया गया था। इस इवेंट की कवरेज के लिए भारत से केवल इंग्लिश मीडिया को आमंत्रित किया गया था। माराकेश इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के आयोजक भी जानते हैं कि हिंदी फिल्मों के लिए गैर-इंग्लिश मीडिया की कोई जरूरत नहीं है। विदेश में विदेशियों द्वारा आयोजित समारोह के अधिकारियों के फैसले की क्यों शिकायत करें? सभी जानते हैं कि भारत या अपने देश में सभी राष्ट्रभाषाओं और इंग्लिश की क्या स्थिति है? फिल्में हिंदी में बनती हैं। राजनीति हिंदी में की जाती है। सारा कंज्यूमर कारोबार हिंदी में होता है, लेकिन सभी क्षेत्रों में कामकाज की भाषा इंग्लिश हो चुकी है। इंग्लिश को मिल रही प्राथमिकता से अनेक तरह की दिक्कतें भी बढ़ती जा रही हैं। यहां हम हिंदी फिल्मों की बात करें, तो हमें आए दिन इंग्लिश में बोलते स्टार टीवी में दिखाई प

सोनाक्षी सिन्‍हा से अजय ब्रह्मात्‍मज की बातचीत

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-अजय ब्रह्मात्मज     एक ‘जोकर’ को भूल जाएं तो सोनाक्षी की अभी तक रिलीज हुई हर फिल्म ने बाक्स आफिस पर अच्छी कमाई की है। ‘दबंग’, ‘राउडी राठौड़’ और ‘सन ऑफ सरदार’ इन तीनों फिल्मों ने 100 करोड़ से अधिक का कारोबार किया। अब उनकी ‘दबंग 2’ आ रही है। इस फिल्म के वितरण अधिकार ही 180 करोड़ में बेचे गए हैं। इसकी कामयाबी भी सुनिश्चित है। लगातार सफल फिल्में दे रही सोनाक्षी सिन्हा सफलता के नए अध्याय लिख रही हैं। इस कामयाबी के बावजूद शत्रुघ्न सिन्हा की बेटी सोनाक्षी सिन्हा में गुरूर नहीं आया है। वह अब भी पहली फिल्म के समय की की तरह सहज, चुलबुली और सामान्य हैं। दिन हो या रात मुंबई हो या बंगाल  ़ ़ ़ हर समय हर जगह अपनी फिल्मों की शूटिंग में मशगूल सोनाक्षी अपनी आगे-पीछे की पीढ़ी की हीरोइनों के लिए ईष्र्या का कारण बन गई हैं। पिछले दिनों ‘वन्स अपऑन अ टाइम इन मुंबई 2’ की शूटिंग के दरम्यान उन से कुछ बातें हुईं। - एक और कामयाबी ़ ़ ़ सारी आशंकाओं के बावजूद ‘सन ऑफ सरदार’ 100 करोड़ क्लब में आ ही गई। कैसा महसूस कर रही हैं? 0 हम सभी ने बहुत मेहनत और दिल लगा कर काम किया था। ‘सन ऑफ सरदार’ के लिए फिल्म इंडस्ट्री

दबंग 2 की धमक

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;अजय ब्रह्मात्‍मज सलमान खान की 'दबंग 2' 21 दिसंबर को रिलीज होगी। इसके निर्माता-निर्देशक उनके भाई अरबाज खान हैं, लेकिन 'दबंग 2' शुरू से आखिर तक सलमान खान की ही फिल्म रहेगी। अभी की स्थिति में आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख खान, अजय देवगन और अक्षय कुमार की फिल्मों का निर्देशक गौण हो जाता है। इन स्टारों का स्टार पॉवर इतना तगड़ा और जोरदार है कि दर्शक परवाह नहीं करते। उन्हें निर्देशकों के नाम और उनके पुराने काम की सुध नहीं रहती। उनके लिए स्टार ही काफी होता है। अपना चहेता स्टार..। स्टारडम और स्टार पॉवर की बात करें, तो अभी सलमान की टक्कर में कोई नहीं है। 'वांटेड' के बाद निरंतर सफलता का स्वाद चख रहे सलमान खान पर दर्शकों की मेहरबानी बनी हुई है। उनकी नई फिल्मों का निर्देशक कोई भी हो, नाम उन्हीं की दांव पर लगता है। 'दबंग 2' के मामले में यह दांव कुछ बड़ा और जोखिमपूर्ण हो गया है। 'दबंग' के लगभग दो साल बाद आ रही 'दबंग 2' के रिस्क फैक्टर की बात करें, तो सबसे पहला जोखिम अरबाज खान का निर्देशक बनना है। पहली 'दबंग' के निर्माता अरबाज

सिनेमा और गांधी जी

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-अजय ब्रह्मात्मज जयप्रकाश चौकसे समर्पित, प्रतिबद्ध और नियमित लेखक हैं। हिंदी फिल्मों पर उनकी टिप्पणियां रोजाना एक अखबार में छपती हैं। लाखों-करोड़ों पाठकों को उन टिप्पणियों से हिंदी फिल्मों की अंतरंग जानकारियां मिलती हैं। जयप्रकाश चौकसे पिछले 40 सालों से हिंदी फिल्मों से जुड़े हुए हैं। वे एक साथ हिंदी फिल्मों के अध्येता और व्यवसायी हैं। राजकपूर से लेकर सलीम खान तक के वे नजदीक रहे। फिल्मों की दुनिया को वे अंदर से देखते और बाहर से समझते हैं। तात्पर्य यह कि एक दर्शक की जिज्ञासा और फिल्मकार की समझदारी से लैस चौकसे हिंदी फिल्मों के सितारों, घटनाओं, प्रसंगों और उपलब्धियों का किस्सा गांव या परिवार के किसी बुजुर्ग की तरह बयान करते हैं। आप कुछ भी पूछ लें.., उनके पास रोचक जानकारियां रहती हैं। इन जानकारियों में एक तारतम्य रहता है। अगर आप उनके नियमित पाठक नहीं हैं और उनका लिखा अचानक पढ़ लें, तो संभव है उनका लेखन संश्लिष्ट न लगे। उन्हें रोज पढ़ना जरूरी है। सीमित शब्दों में कॉलम लिखने की यह चुनौती रहती है कि कई बार एक विचार या संवेदना पूरी तरह से उद्घाटित नहीं हो पाती। जयप्रकाश चौकसे पर सिनेमा

दिलीप साब! आप चिरायु हों- अमिताभ बच्चन

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जन्मदिन विशेष हिंदी सिनेमा के महानतम अभिनेता दिलीप कुमार को सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के रुप में एक प्रिय प्रशंसक प्राप्त हैं. दिलीप कुमार को अमिताभ बच्चन अपना आदर्श मानते हैं. 11 दिसंबर को दिलीप कुमार जीवन के 89 बसंत पूरे कर रहे हैं. इस विशेष अवसर पर अमिताभ बच्चन के साथ दिलीप कुमार के बारे में रघुवेन्द्र सिंह ने बातचीत की. अमिताभ बच्चन के शब्दों में उस बातचीत को यहां प्रस्तुत किया जा रहा है. मेरे आदर्श हैं दिलीप साहब दिलीप साहब को मैंने कला के क्षेत्र में हमेशा अपना आदर्श माना है, क्योंकि मैं ऐसा मानता हूं कि उनकी जो अदाकारी रही है, उनकी जो फिल्में रही हैं, जिनमें उन्होंने काम किया है, वो सब सराहनीय हैं. मैंने हमेशा उनके काम को पसंद किया है. बचपन में जब मैं उनकी फिल्में देखा करता था, तबसे उनका एक प्रशंसक रहा हूं. मुझे उनकी सभी फिल्में पसंद हैं, लेकिन गंगा जमुना बहुत ज्यादा पसंद आई थी. जब भी मैं दिलीप साहब को देखता हूं तो मैं ऐसा मानता हूं कि भारतीय सिनेमा के इतिहास में अगर कला को लेकर, अदाकारी को लेकर, जब कभी इतिहास लिखा जाएगा तो यदि किसी युग या दशक का वर्