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इरशाद कामिल से सचिन श्रीवास्‍तव की बातचीत

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एक इनसान के बनने में जिस ईंट-गारे का इस्तेमाल होता है, वह यकीनन सारी उम्र अपना असर दिखाता है। यह बात नई सदी के हिंदी फिल्मों के गीतों को दार्शनिक ऊंचाई, रूमानी सुकून और विद्राही तेवर बख्शने वाले कलमकार इरशाद कामिल को जानने के बाद फिर साबित होती है। पंजाबी खुशी और इश्क की मस्ती में पले-बढ़े इरशाद के भरपूर इनसान बनने में आठवें दशक की नफरत, अवतार सिंह पाश के विद्रोह, शिवकुमार बटालवी के दर्द का गारा है, तो बचपन की दोस्ती की शरारतों और आवारा-मिजाजी की ईंटें भी हैं। जाहिर है यह सब कुछ उनके लेखन में अनायास ही दिखाई देता भी है। इरशाद को महज गीतकार कहना, एक ऐसी नाइंसाफी है, जिसे करने का गुनाह नाकाबिले मुआफी है। गीत उनके लेखन की महज एक विधा है, जो लोकप्रिय हो गई है, लेकिन असल में वे एक कलाकार हैं, जो खुद को बयां करने के हर औजार को, हर विधा को आजमाना चाहता है। दिलचस्प यह कि वे कई रचनात्मक विधाओं में पारंगत भी हैं। इरशाद कामिल से सचिन श्रीवास्तव ने मुलाकात के दौरान अनौपचारिक बातचीत की। इसके प्रमुख अंश...  "चमेली" से लेकर "रॉकस्टार" और "हाईवे" तक आपके

हिन्दी टाकीज:फिल्म बनाई है तो कोई बात होगी-सचिन श्रीवास्तव

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हिन्दी टाकीज-१५ इस बार सचिन श्रीवास्तव.सचिन नई इबारतें नाम से एक ब्लॉग लिखते हैं.उनके लेखन में एक बांकपन है,जो इन दिनों दुर्लभ होता जा रहा है.आजकल सभी चालाक और सुरक्षित लिखते हैं.अगर सचिन की बात करें तो उनके ही शब्द हैं,'मैं अपने बारे में उतना ही जानता हूं जितना कोई अपने किसी पडोसी के बारे में जानता हो सकता है। गांव देहात में यह भी पता होता है कि पडोसी ने कल कितनी रोटियां खाई थीं और नगरीय सभ्यता ने सिखाया कि पडोसी के बेटी के ब्याह में भी पूछकर ही मदद की जाए... मैं खुद को इतना ही जानता हूं... बडी और दिलचस्प बात यह कि सारी दुनिया का कुछ न कुछ हिस्सा जानने का दम भरता हूं और कभी कभी आइने में अपनी ही शक्ल देखकर बाजू हट जाता हूं कि भाई सहाब को शायद यहां से कहीं जाना है... मैं सफर पर हूं कहां पहुंचना है यह नहीं जानता बस चल रहा हूं थके कदमों से अकेला...' हिन्दी टाकीज सीरिज़ के लिए बात हुई तो आरम्भिक आलस्य के बाद सचिन ने यह लेख भेजा,' पूरी ईमानदारी से बताया,'इसे लिखते हुए मेरे सामने कोई नहीं था बस मुंगावली, गुना, गंजबासौदा और ऐसे ही आसपास के कस्बों के टॉकीज थे। लिखते हुए उन या