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Showing posts from October, 2017

पिता-पुत्र के रिश्‍तों का अनूठा ‘रुख’ : मनोज बाजपेयी

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पिता-पुत्र के रिश्‍तों का अनूठा ‘ रुख ’ : मनोज बाजपेयी कद्दावर कलाकार मनोज बाजपेयी की आज ‘ रुख ’ रिलीज हो रही है। मध्‍यवर्गीय परिवार के तानेबाने पर फिल्‍म मूल रूप से केंद्रित है। आगे मनोज की ‘ अय्यारी ’ व अन्‍य फिल्‍में भी आएंगी।     -अजय ब्रह्मात्‍मज ‘ रुख ’ का परिवार आम परिवारों से कितना मिलता-जुलता है ? यह कितनी जरूरी फिल्‍म है ? यह मध्‍य वर्गीय परिवारों की कहानी है। इसमें रिश्‍ते आपस में टकराते हैं। इसकी सतह में सबसे बड़ा कारण पैसों की कमी है। एक मध्‍य या निम्‍नवर्गीय परिवार में पैसों को लेकर सुबह से जो संघर्ष शुरू होता है , वह रात में सोने के समय तक चलता रहता है। ज्यादातर घरों में ये सोने के बाद भी अनवरत चलता रहता है। खासकर बड़े शहरों में ये उधेड़बुन चलता रहता है। इससे रिश्‍ते अपना मतलब खो देते हैं। वैसे दोस्त नहीं रह जाते , जो हमारे स्‍कूल - कॉलेज या फिर एकदम बचपन में जो होते हैं। इनके मूल में जीवन और जीविकोपार्जन की ऊहापोह है। इन्हीं रिश्‍तों और भावनाओं के बीच की जटिलता और सरलता को दर्शाती हुई यह एक ऐसी फिल्‍म है , जिसकी कहानी के केंद्र में एक मृत्‍यु होती है। स

फिल्‍म समीक्षा : रुख

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फिल्‍म रिव्‍यू भावपूर्ण रुख -अजय ब्रह्मात्‍मज पहली बार निर्देशन कर रहे अतानु मुखर्जी की ‘ रुख ’ हिंदी फिल्‍मों के किसी प्रचलित ढांचे में नहीं है। यह एक नई कोशिश है। फिल्‍म का विषय अवसाद,आशंका,अनुमान और अनुभव का ताना-बाना है। इसमें एक पिता हैं। पिता के मित्र हैं। मां है और दादी भी हैं। फिर भी यह पारिवारिक फिल्‍म नहीं है। शहरी परिवारों में आर्थिक दबावों से उत्‍पन्‍न्‍ स्थिति को उकेरती यह फिल्‍मे रिश्‍तों की परतें भी उघाड़ती है। पता चलता है कि साथ रहने के बावजूद हम पति या पत्‍नी के संघर्ष और मनोदशा से विरक्‍त हो जाते हैं। हमें शांत और समतल जमीन के नीचे की हलचल का अंदाजा नहीं रहता। अचानक भूकंप या विस्‍फोट होने पर पता चलता है कि ाोड़ा ध्‍यान दिया गया होता तो ऐसी भयावह और अपूरणीय क्षति नहीं होती। फिल्‍म की शुरूआत में ही डिनर करते दिवाकर और पत्‍नी नंदिनी से हो रही उसकी संक्षिप्‍त बातचीत से स्‍पष्‍ट हो जाता है कि दोनों का संबंध नार्मल नहीं है। दोनों एक-दूसरे से कुछ छिपा रहे हैं। या एक छिपा रहा है और दूसरे की उसमें कोई रुचि नहीं है। संबंधों में आए ऐसे ठहरावों को फिल्‍मों में

रोज़ाना : छठ की लोकप्रियता के बावजूद

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रोज़ाना छठ की लोकप्रियता के बावजूद -अजय ब्रह्मात्‍मज बिहार,झारखंड और पूर्वी उत्‍तर प्रदेश में छठ एक सांस्‍कृतिक और सामाजिक त्‍योहार के रूप में मनाया जाता है। यह धार्मिक अनुष्‍टान से अधिक सांस्‍कृतिक और पारिवारिक अनुष्‍ठान है। इस आस्‍था पर्व की महिमा निराली है। इसमें किसी पुरोहित की जरूरत नहीं होती। अमीर-गरीब और समाज के सभी तबकों में समान रूप से प्रचलित इस त्‍योहार में घाट पर सभी बराबर होते हैं। कहावत है कि उगते सूर्य को सभी प्रणाम करते हैं। छठ में पहले डूबते सूर्य को अर्घ्‍य चढ़ाया जाता है और फिर उगते सूर्य की पूजा के साथ यह पर्व समाप्‍त होता है। इधर इंटरनेट की सुविधा और प्रसार के बाद छठ के अवसर पर अनेक म्‍सूजिक वीडियों और गीत जारी किए गए हैं। इनमें नितिन चंद्रा और श्रुति वर्मा निर्देशित म्‍यूजिक वीडियो सुदर और भावपूर्ण हैं। उनमें एक कहानी भी है। हालांकि भोजपुरी गीतों में प्रचलित अश्‍लीलता से छठ गीत भी अछूते नहीं रह गए हैं,लेकिन आज भी विंध्‍यवासिनी देवी और शारदा सिन्‍हा के छठ गीतों का मान-सम्‍मान बना हुआ है। सभी घाटों पर इनके गीत बजते सुनाई पड़ते हैं। आश्‍चर्य ही है क

रोज़ाना : अलहदा हैं दर्शक बिहार-झारखंड के

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रोज़ाना अलहदा हैं दर्शक बिहार-झारखंड के -अजय ब्रह्मात्‍मज एक ट्रेड मैग्‍जीन की ताजा रिपोर्ट में पिछले नौ सालों में देश की भिन्‍न टेरिटरी में सर्वाधिक पॉपुलर फिल्‍म स्‍टारों की लिस्‍ट छपी है। यह लिस्‍ट अधिकतम बॉक्‍स आफिस कलेक्‍शन के आधार पर तैयार की गई है। इस लिस्‍ट में आमिर खान देश की सभी अैटिरी में नंबर वन हैं एक बिहार-झारखंड छोड़ कर। बिहार और झारखंड के दर्शकों की पसंद और सराहना अलहदा है। ट्रेड पंडित बताते हैं कि बिहार और झारखंड में आज भी सनी देओन,मिथुन चक्रवर्ती और सुनील शेट्टी की फिल्‍में दूसरे स्‍टारों की तुलना में ज्‍यादा पसंद की जाती हैं। छोटे शहरों और कस्‍बों के सिनेमाघरों में जब ताजा रिलीज सोमवार तक दम तोड़ने लगती हैं तो मैनेजर क्षेत्रीय वितरकों की मदद से किसी ऐसे स्‍टार की फिल्‍म रीरन में चला देते हैं। दो उदाहरण याद आ रहे हैं इस अलहदा रुचि के। अभी अक्षय कुमार देश के लोकप्रिय स्‍टारों की अगली कतार में हैं। उनकी हर फिल्‍म अच्‍छा व्‍यवसाय कर रही है। 1999 के पहले उनके करिअर में उतार आया था। तभी सुनील दर्शक के निर्देशन में उनकी फिल्‍म ‘ जानवर ’ आई थी। यह फिल्‍म त

रोज़ाना : लौटी रौनक सिनेमाघरों में

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रोज़ाना लौटी रौनक सिनेमाघरों में -अजय ब्रह्मात्‍मज अपेक्षा के मुताबि‍क ‘ गोलमाल अगेन ’ देखने दर्शक सिनमाघरों में उमड़ रहे हैं। हालांकि फिल्‍म को अच्‍छा एडवासं नहीं लगा था,लेकिन पहले ही दिन सिनेमाघरों में 70 प्रतिशत दर्शकों का आना बताता है कि यह फिल्‍म चलेगी। दर्शक तो टूट पड़ते हैं। उन्‍हें मनोरंजन मिले तो वे परवाह नहीं करते कि फिल्‍म में कोई नया कलाकार है या बासी कढ़ी ही परोसी जा रही है। ‘ गोलमान अगेन ’ की तुलना में ‘ सीक्रेट सुपरस्‍टार ’ को अधिक दर्शक नहीं मिले हैं। 35-40 प्रतिशत दर्शकों के सहारे बड़ी उम्‍मीद नहीं की जा सकती। फिर भी ट्रेड पंडित मान रहे हैं कि ‘ सीक्रेट सुपरस्‍टार ’ का जिस तरह से समीक्षकों की तारीफ मिली है,उससे लगता है कि दर्शक भी आएंगे। ‘ सीक्रेट सुपरस्‍टार ’ अलग तरह की फिल्‍म है। बजट में छोटी है। 15 साल की लड़ी जायरा वसीम फिल्‍म की हीरोइन है। ट्रेड पंडित मानते हैं कि यह फिल्‍म सिनेमाघरों में टिकी रहेगी। दोनों के प्रति दर्शकों के उत्‍साह से सिनेमाघरों में रौनक और बाक्‍स आफिस पर खनक लौटी है। पारंपरिक तरीके से दीवाली से साल के अंत तक के शुक्रवार हिं

फिल्‍म समीक्षा : गोलमाल अगेन

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फिल्‍म रिव्‍यू गोलमान अगेन -अजय ब्रह्मात्‍मज इस फिल्‍म में तब्‍बू अहम भूमिका में हैं। उनके पास आत्‍माओं को देख सकती हैं। उनकी समस्‍याओं का निदान भी रहता है। जैसे कि एक पिता के बेटी के पास सारे अनभेजे पत्र भेज कर वह उसे बता देती हैं कि पिता ने उसके इंटर-रेलीजन मैरिज को स्‍वीकार कर लिया है। तब्‍बू ‘ गोलमाल अगेन ’ की आत्‍मा को भी देख लेती हैं। चौथी बार सामने आने पर वह कहती और दोहराती हैं कि ‘ गॉड की मर्जी हो तो लॉजिक नहीं,मैजिक चलता है ’ । बस रोहित शेट्टीी का मैजिक देखते रहिए। उनकी यह सीरीज दर्शकों के अंधविश्‍वास पर चल रही है। फिल्‍म में बिल्‍कुल सही कहा गया है कि अंधविश्‍वास से बड़ा कोई विश्‍वास नहीं होता। फिर से गोपाल,माधव,लक्ष्‍मण 1,लक्ष्‍मण2 और लकी की भूमिकाओं में अजय देवगन,अरशद वारसी,श्रेयस तलपडे,कुणाल ख्‍येमू और तुषार कपूर आए हैं। इनके बीच इस बार परिणीति चोपड़ा हैं। साथ में तब्‍बू भी हैं। 6ठे,7वें और 8वें कलाकार के रूप संजय मिश्रा,मुकेश तिवारी और जॉनी लीवर हैं। दस कलाकारों दस-दस मिनट (हीरो अजय देवगन को 20 मिनट) देने और पांच गानों के फिल्‍मांकन में ही फिल्‍म लगभग पूर

दरअसल : हेमामालिनी की आधिकारिक जीवनी

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दरअसल हेमामालिनी की आधिकारिक जीवनी -अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री के कलाकारों की जीवनियां और आत्‍मकथाएं धड़ाधड़ छप रही हैं। कलाकारों के साठ के आसपास पहुंचते ही अप्रोच किया जाने लगता है। उनमें से कुछ तैयार हो जाते हैं। गौर करें तो ये जीवनियां और आत्‍मकथाएं ज्‍यादातर फिल्‍म पत्रकार लिख रहे हैं। देव आनंद के बाद अमरीश पुरी और नसीरूद्दीन शाह ने अपनी आत्‍मकथाएं खुद लिखीं। किसी दिन अमिताभ बच्‍चन ने आत्‍मकथा लिखी तो वह हर लिहाज से श्रेष्‍ठ होगी,क्‍यों कि उनके पास भाषा और अभिव्‍यक्ति है। उनके पिता ने लिखा था, ‘ अमित का जीवन अभी भी इतना रोचक , वैविध्यपूर्ण , बहुआयामी और अनुभव समृद्ध है - आगे और भी होने की पूरी संभावना लिए-कि अगर उन्होंने कभी लेखनी उठाई तो शायद मेरी भविष्यवाणी मृषा न सिद्ध हो ’ । मैंने इसकी याद दिलाते हुए अमित जी से पूछा था कि क्‍या वे अपने बाबूजी की बात सही सिद्ध करेंगे तो उनका जवाब था, ’ मुझमें इतनी क्षमता है नहीं कि मैं इसे सिद्ध करूं। उनका ऐसा कहना पुत्र के प्रति उनका बड़प्पन है । लेकिन एक तो मैं आत्मकथा लिखने वाला नहीं हूं। और यदि कभी लिखता

रोज़ाना : सपना ही हैं शाह रुख

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रोज़ाना सपना शाह रुख ही हैं -अजय ब्रह्मात्‍मज देश भर से जागती आंखों में फिल्‍म स्‍टार बनने के सपने लिए मुंबई धमके सभी युवा कलाकारों का एक ही लक्ष्‍य होता है...देर-सबेर फिल्‍म इंडस्‍ट्री में अपनी पहचान के साथ जगह हासिल करना। उनके लक्ष्‍य को फिल्‍म स्‍टार का रूप दिया जाए तो वह शाह रुख खान ही होता है। पिछले कुछ सालों में शाह रुख खान की फिल्‍में नहीं चल रही हैं। फिर भी उनके स्‍टारडम में गिरावट नहीं आई है। वे आज भी बाकी दोनों खानों(आमिर और सलमान) के समकक्ष बने हुए हैं। फिल्‍म ट्रेड में भी उनके फ्यूचर के प्रति कोई आशंका नहीं है। उन्‍होंने खुद ही फिल्‍में कम कर दी हैं। उनकी चुनिंदा फिल्‍में दर्शकों को रास नहीं आ रही हैं। इन सभी लक्षणों के बावजूद मुंबई आया हर नया कलाकार शाह रुख ही बनना चाहता है। शाह रुख खान में ऐसा क्‍या है,जो फिलवक्‍त उनसे अधिक कामयाब सलमान खान और आमिर खान में नहीं है। कई कारण हो सकते हैं। सबसे पहले तो सलमान खान सलीम खान के बेटे हैं। आमिर खान ताहिर हुसैन के बेटे हैं। ताहिर हुसैन के भाई नासिर हुसैन कामयाब निर्माता-निर्देशक थे। दोनों फिल्‍मी परिवारों से हैं। इनक

फिल्‍म समीक्षा : सीक्रेट सुपरस्‍टार

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फिल्‍म रिव्‍यू सीक्रेट सुपरस्‍टार जरूरी फिल्‍म -अजय ब्रह्मात्‍मज खूबसूरत,विचारोत्‍तेजक और भावपूर्ण फिल्‍म ‘ सीक्रेट सुपरस्‍टार ’ के लिए लेखक-निर्देशक अद्वैत चंदन को बधाई। अगर फिल्‍म से आमिर खान जुड़े हो तो उनकी त्रुटिहीन कोशिशों के कारण फिल्‍म का सारा क्रेडिट उन्‍हें दे दिया जाता है। निश्चित ही आमिर खान के साथ काम करने का फायदा होता है। वे किसी अच्‍छे मेंटर की तरह निर्देशक की सोच को अधिकतम संभावनाओं के साथ फलीभूत करते हैं। उनकी यह खूबी ‘ सीक्रेट सुपरस्‍टार ’ में भी छलकती है। उन्‍होंने फिल्‍म को बहुत रोचक और मजेदार तरीके से पेश किया है। पर्दे पर उन्‍होंने अपनी पॉपुलर छवि और धारणाओं का मजाक उड़ाया है। उनकी मौजूदगी फिल्‍म को रोशन करती है,लेकिन वे जायरा वसीम की चमक फीकी नहीं पड़ने देते। ‘ सीक्रेट सुपरस्‍आर ’ एक पारिवारिक फिल्‍म है। रुढि़यों में जी रहे देश के अधिकांश परिवारों की यह कहानी धीरे से मां-बेटी के ‘ डटे रहने ’ की कहानी बन जाती है। हमें द्रवित करती है। आंखें नम होती हैं और बार-बार गला रुंध जाता है। वडोदरा के निम्‍नमध्‍यवर्गीय मुस्लिम परिवार की इंसिया को गिटा

रोज़ाना : कुंदन शाह की याद

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रोज़ाना कुंदन शाह की याद -अजय ब्रह्मात्‍मज मुंबई में चल रहे मामी फिल्‍म फेस्टिवल में कुंदन शाह निर्देशित ‘ जाने भी दो यारो ’ का खास शो तय था। यह भी सोचा गया था कि इसे ओम पुरी की श्रद्धांजलि के तौर दिखाया जाएगा। फिल्‍म के बाद निर्देशक कुंदन शाह और फिल्‍म से जुड़े सुधीर मिश्रा,विधु विनोद चापेड़ा और सतीश कौशिक आदि ओम पुरी से जुड़ी यादें शेयर करेंगे। वे ‘ जाने भी दो यारो ’ के बारे में भी बातें करेंगे। इस बीच 7 अक्‍टूबर को कुंदन शाह का आकस्मिक निधन हो गया। तय कार्यक्रम के अनुसार शो हुआ। भीड़ उमड़ी। फिल्‍म के बाद का सेशन ओम पुरी के साथ कुंदन शाह को भी समर्पित किया गया। ज्‍यादातर बातचीत कुंदन शाह को ही लेकर हुई। एक ही रय थी कि कुंदन शाह मुंबई की फिल्‍म इंडस्‍ट्री की कार्यप्रणाली में मिसफिट थे। वे जैसी फिल्‍में करना चाहते थे,उसके लिए उपयुक्‍त निर्माता खोज पाना असंभव हो गया है। कुछ बात तो है कि उनकी ‘ जाने भी दो यारो ’ 34 सालों के बाद आज भी प्रासंगिक लगती है। आज भी कहीं पुल टूटता है तो तरनेजा-आहूजा जैसे बिजनेसमैन और श्रीवास्‍तव जैसे अधिकारियों का नाम सामने आता है। और आज भी को

रोजाना : एक उम्मीद है अनुपम खेर की नियुक्ति

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रोजाना उम्मीद है अनुपम खेर की नियुक्ति -अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों एफटीआईआई में अनुपम खेर की नियुक्ति हुई। उनकी इस  नियुक्ति को लेकर सोशल मीडिया पर लगातार प्रतिक्रियाएं और फब्तियां चल रही हैं। सीधे तौर पर अधिकांश इसे भाजपा से उनकी नज़दीकी का परिणाम मान रहे हैं। यह स्वाभाविक है। वर्तमान सरकार के आने के पहले से अनुपम खेर की राजनीतिक रुझान स्पष्ट है। खासकर कश्मीरी पंडितों के मामले में उनके आक्रामक तेवर से हम परिचित हैं। उन्होंने समय-समय पर इस मुद्दे को भिन्न फोरम में उठाया है। कश्मीरी पंडितों के साथ ही उन्होंने दूसरे मुद्दों पर भी सरकार और भाजपा का समर्थन किया है। उन्होंने सहिष्णुता विवाद के समय अवार्ड वापसी के विरोध में फिल्मी हस्तियों का एक मोर्चा दिल्ली में निकाला था। उसके बाद से कहा जाने लगा कि अनुपम खेर की इच्छा राज्य सभा की सदस्यता है। इस नियुक्ति को उनकी नज़दीकी माना जा सकता है। यह कहीं से गलत भी नहीं है। कांग्रेस और दूसरी सरकारें भी अपने समर्थकों को मानद पदों पर नियुक्त करती रही हैं। कांग्रेस राज में समाजवादी और वामपंथी सोच के कलाकार और बुद्धिजीवी सत्ता का

दरअसल : सारागढ़ी का युद्ध

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दरअसल... सारागढ़ी का युद्ध -अजय ब्रह्मात्‍मज तीन दिन पहले करण जौहर और अक्षय कुमार ने ट्वीट कर बताया कि वे दोनों ‘ केसरी ’ नामक फिल्‍म लेकर आ रहे हैं। फिल्‍म के निर्देशक अनुराग सिंह रहेंगे। यह फिल्‍म ‘ बैटल ऑफ सारागढ़ी ’ पर आधारित होगी। चूंकि सारागढ़ी मीडिया में प्रचलित शब्‍द नहीं है,इसलिए हिंदी अखबारों में ‘saragarhi’ को सारागरही लिखा जाने लगा। फिल्‍म इंडस्‍ट्री में भी अधिकांश इसे सारागरही ही बोलते हैं। मैं लगातार लिख रहा हूं कि हिंदी की संज्ञाओं को अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी लिखा जाना चाहिए। अन्‍यथा कुछ पीढि़यों के बाद इन शब्‍दों के अप्रचलित होने पर सही उच्‍चारण नहीं किया जाएगा। देवनागरी में लिखते समय लोग ‘ सारागरही ’ जैसी गलतियां करेंगे। दोष हिंदी के पत्रकारों का भी है कि वे हिंदी का आग्रह नहीं करते। अंग्रेजी में आई विस्‍प्तियों का गलत अनुवाह या प्यिंतरण कर रहे होते हैं। बहरहाल,अक्षय कुमार और करण जौहर के आने के साथ ‘ सारागढ़ी का युद्ध ’ पर फिल्‍म बनाने की तीसरी टीम मैदान में आ गई है। करण जौहर की अनुराग सिंह निर्देशित फिल्‍म का नाम ‘ केसरी ’ रखा गया है। इसके

सात सवाल : विनीत कुमार सिंह

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विनीत कुमार सिंह अजय ब्रह्मात्‍मज सात सवाल विनीत कुमार सिंह की फिल्म ‘मुक्काबाज’ का गुरुवार को मुंबई में आयोजित मुंबई फिल्‍म फेस्टिवल में एशिया प्रीमियर हुआ। इससे पहले फिल्‍म को टोरंटो इंटरनेशनल फिल्‍म फेस्टिवल में प्रदर्शित किया जा चुका है। वर्ष 1999 से हिंदी सिनेमा में सक्रिय विनीत उसमें श्रवण की केंद्रीय भूमिका में दिखेंगे। फिल्‍म के निर्देशक अनुराग कश्‍यप हैं। विनीत से हुई बातचीत के अंश :   1- यहां तक के सफर में आपने काफी धैर्य और उम्मीद कायम रखी। इन्हें कैसे कायम रख पाए ? मैं वह काम करना चाहता था, जिसमें सहज रहूं। साथ ही उसे करने में मुझे आनंद की प्राप्ति हो। डॉक्टर बनने के लिए मैंने काफी मेहनत की थी। तब जाकर फल मिला था। अभिनय करने पर खुशी की अनुभूति स्‍वत: हुई। मैं उससे थकता नहीं हूं। शूटिंग के दौरान घर जाने के लिए घड़ी नहीं देखता। यकीन था कि यहां पर मेहनत करुंगा तो बेहतर पाऊंगा। पापा ने भी हमेशा कहा कि हारियो न हिम्मत बिसारियो न हरिनाम। यानी जो हिम्मत नहीं हारता है उसे रास्ते मिल जाते हैं। इन्‍ही सब वजहों से धैर्य कायम रहा। 2- आपके अभिनय के सफर की शुरुआ

रोज़ाना : मामी हो चुका है नामी

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रोज़ाना मामी हुआ चुका है नामी -अजय ब्रह्मात्‍मज आज से दस साल पहले इफ्फी (इंटरनेशनल फिल्‍म फेस्टिवल ऑफ इंडिया) के वार्षिक आयोजन के लिए देश भर के सिनेप्रेमी टूट पड़ते थे। उन दिनों केंद्रीय फिल्‍म निदेशालय का यह यह आयोजन एक साल दिल्‍ली और अगले साल दूसरे शहरों में हुआ करता था। गोवा में इफ्फी का स्‍थायी ठिकाना बना और उसके बाद यह लगामार अपना प्रभाव खोता जा रहा है। अभी देश में अनेक फिल्‍म फेस्टिवल आयोजित हो रहे हैं। उनमें से एक मामी(मुंर्अ एकेडमी आॅफ मूविंग इमेजेज) है। इस साल 19 वां फिल्‍म फेस्टिवल आयोजित हो रहा है। इस आयोजन के लिए देश भर के सिनेप्रेमी मुंबई धमक रहे हैं। दोदशक पहले मुंबई के फिल्‍म इंडस्‍ट्री की हस्तियों और सिनेप्रेमियों को फिल्‍म फस्टिवल का खयाल आया। इफ्फी में नौकरशाही की दखल और गैरपेशवर अधिकारियों की भागीदारी से नाखुश सिनेप्रेमियों और फिल्‍मकारों का इसे पूर्ण समर्थन मिला। उन्‍हें यह एहसास भी दिलाया गया कि यह फेस्टिवल सिनेमा के जानकारों की देखरेख में संचालित होता है। उसका असर दिखा। फिल्‍मों के चयन से लेकर विदेशी फिल्‍मकारों और कलाकारों की शिरकत में दुनिया के न