फिल्म समीक्षा : फरारी की सवारी
मध्यवर्गीय मुश्किलों में भी जीत -अजय ब्रह्मात्मज विनोद चोपड़ा फिल्म्स स्वस्थ मनोरंजन की पहचान बन चुका है। प्रदीप सरकार और राजकुमार हिरानी के बाद इस प्रोडक्शन ने राजेश मापुसकर को अपनी फिल्म निर्देशित करने का मौका दिया है। राजेश मापुसकर ने एक सामान्य विषय पर सुंदर और मर्मस्पर्शी कहानी बुनी हैं। सपने टूटने और सपने साकार होने के बीच तीन पीढि़यों के संबंध और समझदारी की यह फिल्म पारिवारिक रिश्ते की बांडिंग को प्रभावपूर्ण तरीके से पेश करती है। राजेश मापुसकर की कल्पना को विधु विनोद चोपड़ा और राजकुमार हिरानी ने कागज पर उतारा है। बोमन ईरानी, शरमन जोशी और ऋत्विक सहारे अपने किरदारों को प्रभावशाली तरीके से निभा कर फरारी की सवारी को उल्लेखनीय फिल्म बना दिया है। फिल्म के शीर्षक फरारी की सवारी की चाहत सहयोगी किरदार की है, लेकिन इस चाहत में फिल्म के मुख्य किरदार अच्छी तरह गुंथ जाते हैं। रूसी (शरमन जोशी) अपने प्रतिभाशाली क्रिकेटर बेटे केयो (ऋत्विक सहारे) के लिए कुछ भी कर सकता है। तीन पीढि़यों के इस परिवार में कोई महिला सदस्य नहीं है। अपने बिस्तर पर बैठे मूंगफली टूंगते हुए टीवी