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सिर्फ़ नाम की "हाऊसफ़ुल"-अजय कुमार झा

यह पोस्‍ट अजय कुमार झा ने लिखी है।उनके शब्‍दों में.... फ़िल्म समीक्षा लिख रहे हैं ............अरे भाई प्रौफ़ेशनली नहीं जी ....बस फ़िल्म देख ली ...तो भेजा इतन फ़ुंका कि सोचा अब दूसरों के पैसे तो बच जाएं .........सो एक समीक्षा तो लिख ही दें ..जिसने पढ ली उसके तो पैसे बच ही जाएंगे .......कम से कम ....रुकिए थोडी  देर... हाजिर है  समीक्षा.... आज दर्शक यदि मल्टीप्लेक्स में सिनेमा देखने जाता है तो कम से कम इतना तो चाहता ही है कि जो भी पैसे टिकट के लिए उसने खर्च किए हैं वो यदि पूरी तरह से न भी सही तो कम से कम पिक्चर उतनी तो बर्दाश्त करने लायक हो ही कि ढाई तीन घंटे बिताने मुश्किल न हों । साजिद खान ने जब हे बेबी बनाई थी तो उसकी बेशक अंग्रेजी संस्करण के रीमेक के बावजूद उसकी सफ़लता ने ही बता दिया था कि दर्शकों को ये पसंद आई । और कुछ अच्छे गानों तथा फ़िल्म की कहानी के प्रवाह के कारण फ़िल्म हिट हो गई । साजिद शायद इसे ही एक सैट फ़ार्मूला समझ बैठे और कुछ अंतराल के बाद , उसी स्टार कास्ट में थोडे से बदलाव के साथ एक और पिक्चर परोस दी । मगर साजिद दो बडी भूलें कर बैठे इस पिक्चर के निर्माण में , पहली रही कमजोर पटक

दरअसल:क्यों पसंद आई हाउसफुल?

-अजय ब्रह्मात्‍मज  हाउसफुल रिलीज होने के दो दिन पहले एक प्रौढ़ निर्देशक से फिल्म की बॉक्स ऑफिस संभावनाओं पर बात हो रही थी। पड़ोसन, बावर्ची और खट्टा मीठा जैसी कॉमेडी फिल्मों के प्रशंसक प्रौढ़ निर्देशक ने अंतिम सत्य की तरह अपना फैसला सुनाया कि हाउसफुल नहीं चलेगी। यह पड़ोसन नहीं है। इस फिल्म को चलना नहीं चाहिए। 30 अप्रैल को फिल्म रिलीज हुई, महीने का आखिरी दिन होने के बावजूद फिल्म को दर्शक मिले। अगले दिन निर्माता की तरफ से फिल्म के कलेक्शन की विज्ञप्तियां आने लगीं। वीकएंड में हाउसफुल ने 30 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया। अगर ग्लोबल ग्रॉस कलेक्शन की बात करें, तो वह और भी ज्यादा होगा। बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के इस आंकड़े के बाद भी हाउसफुल का बिजनेस शत-प्रतिशत नहीं हो सका। हां, दोनों साजिद (खान और नाडियाडवाला) फिल्म की रिलीज के पहले से आक्रामक रणनीति लेकर चल रहे थे। उन्होंने फिल्म का नाम ही हाउसफुल रखा और अपनी बातचीत, विज्ञापन और प्रोमोशनल गतिविधियों में लगातार कहते रहे कि यह फिल्म हिट होगी। आप मानें न मानें, लेकिन ऐसे आत्मविश्वास का असर होता है। आम दर्शक ही नहीं, मीडिया तक इस आक्रामक प्रचार के चपेट

दरअसल:क्यों पसंद आई हाउसफुल?

-अजय ब्रह्मात्‍मज  हाउसफुल रिलीज होने के दो दिन पहले एक प्रौढ़ निर्देशक से फिल्म की बॉक्स ऑफिस संभावनाओं पर बात हो रही थी। पड़ोसन, बावर्ची और खट्टा मीठा जैसी कॉमेडी फिल्मों के प्रशंसक प्रौढ़ निर्देशक ने अंतिम सत्य की तरह अपना फैसला सुनाया कि हाउसफुल नहीं चलेगी। यह पड़ोसन नहीं है। इस फिल्म को चलना नहीं चाहिए। 30 अप्रैल को फिल्म रिलीज हुई, महीने का आखिरी दिन होने के बावजूद फिल्म को दर्शक मिले। अगले दिन निर्माता की तरफ से फिल्म के कलेक्शन की विज्ञप्तियां आने लगीं। वीकएंड में हाउसफुल ने 30 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया। अगर ग्लोबल ग्रॉस कलेक्शन की बात करें, तो वह और भी ज्यादा होगा। बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के इस आंकड़े के बाद भी हाउसफुल का बिजनेस शत-प्रतिशत नहीं हो सका। हां, दोनों साजिद (खान और नाडियाडवाला) फिल्म की रिलीज के पहले से आक्रामक रणनीति लेकर चल रहे थे। उन्होंने फिल्म का नाम ही हाउसफुल रखा और अपनी बातचीत, विज्ञापन और प्रोमोशनल गतिविधियों में लगातार कहते रहे कि यह फिल्म हिट होगी। आप मानें न मानें, लेकिन ऐसे आत्मविश्वास का असर होता है। आम दर्शक ही नहीं, मीडिया तक इस आक्रामक प्रचार के चपेट

फिल्‍म समीक्षा : हाउसफुल

-अजय  ब्रह्मात्‍मज सचमुच थोड़ी ऐसे या वैसे और जैसे-तैसे साजिद खान ने हाउसफुल का निर्देशन किया है। आजकल शीर्षक का फिल्म की थीम से ताल्लुक रखना भी गैर-जरूरी हो गया है। फिल्म की शुरुआत में साजिद खान ने आठवें और नौवें दशक के कुछ पापुलर निर्देशकों का उल्लेख किया है और अपनी फिल्म उन्हें समर्पित की है। इस बहाने साजिद खान ने एंटरटेनर डायरेक्टर की पंगत में शामिल होने की कोशिश कर ली है। फिल्म की बात करें तो हाउसफुल कुछ दृश्यों में गुदगुदी करती है, लेकिन जब तक आप हंसें, तब तक दृश्य गिर जाते हैं। इसे स्क्रीनप्ले की कमजोरी कहें या दृश्यों में घटनाक्रमों का समान गति से आगे नहीं बढ़ना, और इस वजह से इंटरेस्ट लेवल एक सा नहीं रहता। दो दोस्त, दो बहनें और एक भाई, दो लड़कियां, एक पिता, एक दादी और एक करोड़पतियों की बीवी़, कामेडी आफ एरर हंसने-हंसाने का अच्छा फार्मूला है, लेकिन उसमें भी लाजिकल सिक्वेंस रहते हैं। हाउसफुल में कामेडी के नाम पर एरर है। सारी सुविधाओं (एक्टरों की उपलब्धता और शूटिंग के लिए पर्याप्त धन) के बावजूद लेखक-निर्देशक ने कल्पना का सहारा नहीं लिया है। कुछ नया करने की कोशिश भी नहीं