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खुदा के लिए: मुस्लिम समाज का सही चित्रण

-अजय ब्रह्मात्मज पाकिस्तान से आई फिल्म खुदा के लिए वहां के हालात की सीधी जानकारी देती है। निर्देशक शोएब अख्तर ने अमेरिका, ब्रिटेन और पाकिस्तान की पृष्ठभूमि में पाकिस्तान के उदारमना मुसलमानों की मुश्किलों को कट्टरपंथ के उभार के संदर्भ में चित्रित किया है। उन्होंने बहुत खूबसूरती से जिहाद की तरफ भटक रहे युवकों व कट्टरपंथियों की हालत, 11 सितंबर की घटना के बाद अमेरिका में मुसलमानों के प्रति मौजूद शक, बेटियों के प्रति रुढि़वादी रवैया आदि मुद्दों को पर्दे पर उतारा है। ताज्जुब की बात है कि ऐसी फिल्म पाकिस्तान से आई है। पाकिस्तान में मंसूर और उसके छोटे भाई को संगीत का शौक है। दोनों आधुनिक विचारों के युवक हैं। उनके माता-पिता भी उनका समर्थन करते हैं। छोटा भाई एक दोस्त की सोहबत में कट्टरपंथी मौलाना से मिलता है और उनके तर्कों से प्रभावित होकर संगीत का अभ्यास छोड़ देता है। माता-पिता उसके स्वभाव में आए इस बदलाव से दुखी होते हैं। बड़ा भाई संगीत की पढ़ाई के लिए अमेरिका चला जाता है। वहां उसकी दोस्ती एक अमेरिकी लड़की से होती है। वह उससे शादी भी कर लेता है। 11 सितंबर की घटना के बाद उसे आतंकवादियों से संबं

सुपर स्टार: पुराने फार्मूले की नई फिल्म

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-अजय ब्रह्मात्मज यह रोहित जुगराज की फिल्म है। निश्चित रूप से इस बार वे पहली फिल्म जेम्स की तुलना में आगे आए हैं। अगर कोई कमी है तो यही है कि उन्होंने हमशक्लों के पुराने फार्मूले को लेकर फिल्म बनायी है। कुणाल मध्यवर्गीय परिवार का लड़का है। बचपन से फिल्मों के शौकीन कुणाल का सपना है कि वह फिल्म स्टार बने। उसके दोस्तों को भी लगता है कि वह एक न एक दिन स्टार बन जाएगा। अभी तक उसे तीसरी लाइन में चौथे स्थान पर खड़े होकर डांस करने का मौका मिला है। कहानी में टर्न तब आता है,जब उसके हमशक्ल करण के लांच होने की खबर अखबारों में छपती है। पूरे मुहल्ले को लगता है कि कुणाल को फिल्म मिल गयी है। कुणाल वास्तविकता जानने के लिए फिल्म के दफ्तर पहुंचता है तो सच्चाई जान कर हैरत में पड़ जाता है। नाटकीय मोड़ तब आता है,जब कुणाल से कहा जाता है कि वह करण के बदले फिल्म में काम करे। प्रोड्यूसर पिता की समस्या है कि करण को एक्टिंग-डांसिंग कुछ भी नहीं आती और उन्होंने फिल्म के लिए बाजार से पैसे उगाह लिए हैं। कुणाल राजी हो जाता है। कहानी आगे बढ़ती है। एक और जबरदस्त मोड़ आता है,जब करण की मौत हो जाती है और कुणाल को रियल लाइफ म

चमके तारे ज़मीन पर

-अजय ब्रह्मात्मज तारे जमीन पर में आमिर खान तीन भूमिकाओं में हैं। इस फिल्म में अभिनय करने के साथ ही वह निर्माता और निर्देशक भी हैं। निर्देशक के रूप में यह उनकी पहली फिल्म है। पहली फिल्म में ही वह साबित करते हैं कि निर्देशन पर उनकी पकड़ किसी अनुभवी से कम नहीं है। वैसे उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत निर्देशन से ही की थी। तारे जमीन पर न तो बच्चों की फिल्म है और न सिर्फ बच्चों के लिए बनायी गई है। यह बच्चों को लेकर बनायी गई फिल्म है, जो बच्चों को देखने और समझने का नजरिया बदलती है। निश्चित ही इस फिल्म को देखने के बाद दर्शक अपने परिवार और पड़ोसी के बच्चों की खासियत समझने की कोशिश करेंगे। आमिर खान ने तारे जमीन पर में यह जरूरी सामाजिक संदेश रोचक तरीके से दिया है। तारे जमीन पर ईशान अवस्थी की कहानी है। ईशान का पढ़ने-लिखने में कम मन लगता है। वह प्रकृति की अन्य चीजों जैसे पानी, मछली, बारिश, कुत्ते, रंग, पतंग आदि में ज्यादा रुचि लेता है। उसके इन गुणों को न तो शिक्षक पहचान पाते हैं और न माता-पिता। उन्हें लगता है कि ईशान अनुशासित नहीं है, इसलिए पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे रहा है। ईशान के माता-पिता उसे अनुशा

कहीं से भी अपील नहीं करती स्पीड

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-अजय ब्रह्मात्मज कई बार फिल्म के शीर्षक का कहानी से कोई ताल्लुक नहीं होता। स्पीड के साथ ऐसी ही बात है। पूरी फिल्म निकल जाने के बाद सहसा ख्याल आता है कि फिल्म का नाम स्पीड क्यों रखा गया? बहरहाल, स्पीड विक्रम भट्ट की फिल्म है। भट्ट कैंप से निकलने के बाद विक्रम भट्ट की कोई भी फिल्म दर्शकों को पसंद नहीं आई है। ऐसा क्यों होता है कि कैंप या बैनर से छिटकने के बाद युवा निर्देशक पस्त हो जाते हैं। कुछ निर्देशक दिशानिर्देश मिले तभी अच्छा काम कर सकते हैं। विक्रम भट्ट को जल्दी ही एक ठीक-ठाक फिल्म बनानी होगी अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए। स्पीड की कहानी लंदन में घटित होती है। इस फिल्म में मोबाइल फोन का प्रचुर इस्तेमाल हुआ है। कह लें कि वह भी एक जरूरी कैरेक्टर बन गया है। वह लिंक है कैरेक्टरों को जोड़ने का। संदीप (जाएद खान) भारत से लंदन गया है अपनी प्रेमिका संजना (तनुश्री दत्ता) को समझाने। उसे एक रांग काल आता है, जो अपहृत हो चुकी युवती (उर्मिला मातोंडकर) का है। उसका अपहरण कर फिल्म का खलनायक आफताब शिवदासानी उसके पति सिद्धार्थ (संजय सूरी) से एक हत्या करवाना चाहता है। हत्या भी किसी मामूली आदमी की नहीं, भार