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दरअसल:देसी दर्शकों से बेपरवाह फिल्म इंडस्ट्री

-अजय ब्रह्मात्मज मल्टीप्लेक्स मालिकों और निर्माता-वितरकों के बीच फिलहाल कोई समझौता होता नहीं दिख रहा है। अपवाद के तौर पर 8 बाई 10 तस्वीर रिलीज हुई, क्योंकि उसकी रिलीज तारीख पूर्वनिश्चित थी और उसके निर्माता ने फिल्म के प्रचार में काफी पैसे खर्च किए थे। पिछले दिनों जब निर्माता और वितरकों की तरफ से आमिर और शाहरुख खान मीडिया से मिलने आए थे, तब यही तर्क दिया गया था। उस समय न तो किसी ने पूछा और न ही किसी ने अपनी तरफ से बताया कि आ देखें जरा क्यों मल्टीप्लेक्स में नहीं पहुंच सकी! एक आशंका जरूर व्यक्त की गई कि अगर शाहरुख, आमिर, यश चोपड़ा या यूटीवी की फिल्म अभी रिलीज पर रहती, तो क्या तब भी इतना ही सख्त रवैया होता? इस आशंका में ही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की दोहरी नीति का सच छिपा है। आमिर खान ने चलते-फिरते अंदाज में बताया कि लाभांश शेयरिंग का मामला गजनी के समय ही तूल पकड़ चुका था, लेकिन तब उन्होंने इसे टाला। वे नहीं चाहते थे कि कोई यह कहे कि आमिर अपनी फिल्म के लिए यह सब कर रहे हैं! दोनों पक्षों की ढील और जिद में तीन महीने गुजर गए। इन तीन महीनों में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने हर तरह से दबाव बनाया, लेकि

मुम्बई में भटकते रहे दर्शक

मालूम नही आप के शहर में क्या हाल रहा?मुम्बई में तो बुरा हाल था?सारे सिंगल स्क्रीन टूट रहे हैं और उनकी जगह मल्टीप्लेक्स आ रहे हैं.इसे अच्छी तब्दीली के रुप में देखा जा रहा है,जबकि टिकट महंगे होने से चवन्नी की बिरादरी के दर्शकों की तकलीफ बढ़ गयी है.उनकी औकात से बाहर होता जा रहा है सिनेमा.आज उनके लिए थोड़ी ख़ुशी की बात थी,क्योंकि मल्टीप्लेक्स के आदी हो चुके दर्शकों को आज सिंगल स्क्रीन की शरण लेनी पड़ी। हुआ यों कि मल्टीप्लेक्स और निर्माताओं के बीच मुनाफे की बाँट का मामला आज दोपहर तक नहीं सुलझ पाने के कारण किसी भी मल्टीप्लेक्स में तारे ज़मीन पर और वेलकम नहीं लगी.चूंकि पीवीआर के बिजली बंधु तारे ज़मीन पर के सहयोगी निर्माता थे,इसलिए उनके मल्टीप्लेक्स में वह फिल्म लगी.वहाँ भी वेलकम को लेकर असमंजस बना रहा.दर्शकों को हर मल्टीप्लेक्स से निराश होकर आखिरकार सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर की शरण लेनी पड़ी.चवन्नी दो दिन पहले से टिकट लेने की कोशिश में लगा था.आज सुबह भी वह एक मल्टीप्लेक्स में पहुँचा तो बॉक्स ऑफिस पर बैठे कर्मचारी ने सलाह दी कि दो बजे आकर चेक करना.चवन्नी भला इतनी देर तक कैसे इंतज़ार करता.एक-एक कर वह

क्यों वंचित रहे चवन्नी ?

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पिछले दिनों अजय ब्रह्मात्मज ने दैनिक जागरण के मनोरंजन परिशिष्ट 'तरंग' के अपने कॉलम 'दरअसल' में चवन्नी सरीखे दर्शकों की चिंता व्यक्त की. आजकल मल्टीप्लेक्स संस्कृति की खूब बात की जा रही है, लेकिन इस मल्टीप्लेक्स संस्कृति ने नए किस्म का मनुवाद विकसित किया है. मल्टीप्लेक्स संस्कृति के इस मनुवाद के बारे में सलीम आरिफ ने एक मुलाकात में बड़ी अच्छी तरह समझाया. क्या कहा,आप उन्हें नहीं जानते? सलीम आरिफ ने गुलजार के नाटकों का सुंदर मंचन किया है. रंगमंच के मशहूर निर्देशक हैं और कॉस्ट्यूम डिजाइनर के तौर पर खास स्थान रखते हैं. बहरहाल, मल्टीप्लेक्स संस्कृति की लहर ने महानगरों के कुछ इलाकों में सिंगल स्क्रीन थिएटर को खत्म कर दिया है. इन इलाकों के चवन्नी छाप दर्शकों की समस्या बढ़ गई है. पहले 20 से 50 रूपए में वे ताजा फिल्में देख लिया करते थे. अब थिएटर ही नहीं रहे तो कहां जाएं ? नयी फिल्में मल्टीप्लेक्स में रिलीज होती हैं और उनमें घुसने के लिए 100 से अधिक रूपए चाहिए. अब चवन्नी की बिरादरी का दर्शक जाएं तो कहां जाएं ? चवन्नी चैप जिस इलाके में रहता है. उस इलाके में 6 किलोमीटर के दायरे में